भोपाल. सीहोर के जंगल और पहाड़ों में देवबड़ला नामक पुरातात्विक स्थल की खोज की गई। जावर का यह क्षेत्र मध्य भारत के एक प्रमुख कला केंद्र के रूप में उभर सकता है। क्योंकि देवबड़ला में परमार युग के 15 मंदिरों के अवशेष पाए गए हैं। 2016 में शुरू हुई खुदाई अगले दस साल तक जारी रहेगी। खुदाई में अब तक 15 मंदिरों के अवशेषों में से दो की पुनर्संरचना कर दी गई। बाकी को संरक्षित किया जा रहा है।
कई खंड लोगों ने कर दिए गायब
परियोजना के निदेशक और संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एवं संग्रहालय के पुरातत्वविद डॉ. रमेश यादव का कहना है कि खुदाई में प्राप्त मंदिरों में अब तक शिव तांडव नटराज, उमाशंकर, जलधारी, नंदी, विष्णु, लक्ष्मी की प्रतिमा सहित कुल 30 प्रतिमाएं मिली हैं। कुछ खंडित हैं बाकी सब ठीक हालत में हैं। उन्हें सुरक्षित स्थान पर रख दिया है। रमेश ने बताया कि मंदिरों के साथ ही गहरी खाई में जैन मंदिरों के अवशेष भी पाए गए हैं। जिनमें से कई खंड स्थानीय लोगों ने गायब कर दिए हैं।
11वीं-12वीं शताब्दी में हुआ था मंदिर का निर्माण
यादव ने बताया कि देवबड़ला के शास्त्रीय भूमिज शैली में निर्मित इन मंदिरों का निर्माण 11वीं और 12वीं शताब्दी में परमार काल में हुआ था। देवबड़ला के मंदिर कालांतर में प्राकृति आपदा और बाह्य आक्रमण के कारण नष्ट हो गए थे। वर्ष 2016 में तत्कालीन सीहोर कलेक्टर ने क्षेत्र में मंदिर जैसी संरचनाओं के अवशेषों के बारे में लिखे जाने के बाद पुरातत्व विभाग ने टीम गठित कर वन और पर्वतीय क्षेत्र में खुदाई की। खुदाई से 15 मंदिरों का पता चला है।
दुर्गम इलाके में जिला प्रशासन के माध्यम से कराया जाएगा पथ निर्माण
यादव ने कहा कि मुझे यकीन है कि जैसे-जैसे काम आगे बढ़ेगा, हमें वहां जमीन में दबे और भी मंदिर मिलेंगे। इससे देवबड़ला न केवल एक पर्यटन स्थल के रूप में उभरेगा, बल्कि इतिहास और पुरातत्व के विद्वानों के लिए परमार युग की मंदिर वास्तुकला के बारे में जानकारी का एक मूल्यवान स्रोत भी होगा। इसके साथ ही दुर्गम पहाड़ी इलाके में होने के कारण देवबड़ला तक लोगों की पहुंच के लिए स्थानीय व जिला प्रशासन के माध्यम से पथ निर्माण कराया जाएगा।
इन स्थानों पर मिले परमार कालीन मंदिर
परमार राजपूत थे जिन्होंने नौवीं शताब्दी ईसा से 400 वर्षों तक मालवा में शासन किया। आशापुरी (रायसेन), गंधर्व पुरी (देवास), ओंकारेश्वर (खंडवा), ऊन (खरगोन), हिंगलाजगढ़ (मंदसौर), उदयपुर (विदिशा) और नेमावर (सीहोर) में उनके द्वारा निर्मित मंदिर परिसरों का पहले ही पता लगाया जा चुका है।