AIIMS Bhopal: भोपाल एम्स में अब कैशलेस इलाज होगा। मरीजों को परेशानी न हो इस लिए कैशलेस प्रणाली लागू की गई है। इस सुविधा से मरीज़ आसानी से इलाज करा सकेंगे। अब मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने के लिए लंबी लाइन का इंतजार नहीं करना होगा। मरीज़ के साथ आने वाले परिजन एक तय राशि जमा कर मरीज को आस्पताल में भर्ती करा सकेंगे। यह राशि इलाज के दौरान होने वाली जांचों के लिए क्रेडिट के रूप में काम करेगी। इससे मरीजों को हर बार जांज के लिए  भुगतान नहीं करना पड़ेगा। बुधवार को एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक और सीईओ प्रोफेसर (डॉ.) अजय सिंह ने जानकारी दी। 
 
सीईओ (डॉ) अजय सिंह ने कहा- परिवारों पर बोझ को कम करना हमारा उद्देश्य
इस दौरान सीईओ प्रोफेसर (डॉ) अजय सिंह ने कहा, "हमारा उद्देश्य भुगतान प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करके मरीजों और उनके परिवारों पर बोझ को कम करना है। इसके साथ यह सुनिश्चित करना है कि उन्हें वित्तीय परेशानी के बगैर आवश्यक देखभाल हो सके।  डॉ अजय सिंह ने कहा कि वित्तीय लेनदेन में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करते हुए, प्रारंभिक जमा राशि से किसी भी अप्रयुक्त राशि को तुरंत मरीजों या उनके रिश्तेदारों को अस्पताल से छुट्टी के समय वापस कर दी जाएगी।" उन्होंने कहा- हमारा अंतिम लक्ष्य एक ऐसा स्वास्थ्य देखभाल वातावरण बनाना है जहां मरीज़ ठीक होने के साथ समर्थित और सशक्त महसूस करें।"

किसे मिलेगा फायेदा
यह विशेष रूप से सेवानिवृत्त पेंशनभोगी के लिए फायदेमंद होगा, जिन्हें व्यक्तिगत प्रतिपूर्ति दावों को पेश करने और अनुमोदनों का पालन करने में मुश्किल होती है। इस पहल से समय की बचत होगी, कागजी कार्रवाई कम होगी और व्यक्तिगत दावे भी कम होंगे। अब तक यह सुविधा भुवनेश्वर, पटना, जोधपुर, रायपुर और ऋषिकेश के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मराजों को मिल रहा है। 

3-डी बायोप्रिंटेड स्तन कैंसर मॉडल विकसित करने के लिए मिला अनुदान 
एम्स भोपाल को भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) द्वारा स्थापित जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) से लगभग एक करोड़ रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ है। यह अनुदान दवा परीक्षण और व्यक्तिगत चिकित्सा के लिए प्रयोगशाला में विकसित 3-डी बायोप्रिंटेड स्तन कैंसर मॉडल विकसित करने के लिए दिया गया है। यह शोध राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान राउरकेला, ओडिशा के सहयोग से हो सकेगा।  एम्स भोपाल के ट्रांसलेशनल मेडिसिन विभाग की डॉ. नेहा आर्य अनुदान की प्रमुख अन्वेषक बनाई गईं हैं।  उन्होंने कहा कि प्रयोगशाला में विकसित 3-डी बायोप्रिंटेड ब्रेस्ट ट्यूमर ऑर्गेनॉइड मॉडल दवा परीक्षण प्रोटोकॉल में क्रांति लाने में एक महत्वपूर्ण कदम है। एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक और सीईओ प्रोफेसर (डॉ.) अजय सिंह ने इस उपलब्धि पर डॉ. आर्य और टीम को बधाई दी है।