भोपाल। किसी भी शैलाश्रय का निर्माण मानव जीवन की प्रारंभिक अवस्था में ही होता है, लेकिन मध्य प्रदेश में कई ऐसे भी शैलाश्रय हैं, जिनका निर्माण मानव जीवन से पूर्व में हुआ,ऐसा ही एक शैलाश्रय है भीमबेटका। रायसेन जिले में स्थित भीमबेटका शैलाश्रय विश्व का सबसे पुराना पुरातात्विक स्थल है। जिसके लिए माना जाता है कि इसके शैलाश्रय का निर्माण कम से कम 54 करोड़ साल पहले हुआ था। लेकिन भीमबेटका के इस प्राचीन कालीन शैलाश्रय की उम्र जानने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने एक नई परियोजना शुरू की है। यह परियोजना भूवैज्ञानिक और पुरातात्विक दोनों दृष्टिकोणों से यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल की उम्र तय करने की पहल है। इस परियोजना को पूर्ण होने में करीब चार से पांच माह लगने की उम्मीद है।

मानव जीवन से पहले शैलाश्रयों का निर्माण
एएसआई की इस परियोजना का निर्देशन और पर्यवेक्षण करने वाले भोपाल सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वविद्, मनोज कुमार कुर्मी ने बताया कि इन शैल आश्रयों का निर्माण जब मानव इस धरती पर प्रकट नहीं हुए थे, तब की हैं, लगभग 40 लाख वर्ष पहले प्रागैतिहासिक मानव ने इन आश्रय स्थलों की खोज की और इन्हें अपना घर बनाया। 1957 में अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त के पुरातत्वविद् विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा खोजे जाने तक ये शैलाश्रय घने जंगलों में खोए हुए थे। 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया।
 
अन्य वस्तुओं तुलना में शैलाश्रय कितने पुराने हैं
कुर्मी ने बताया कि अध्ययन में कलाकृतियों और पर्यावरणीय तथ्यों की मदद से जगह के पर्यावरण का पुनर्निर्माण करने, आश्रयों के भूवैज्ञानिक गठन, मानव विकास पर उनके प्रभाव और कलाकृतियों व चित्रों पर आगामी प्रभाव के साथ-साथ मनुष्यों व पारिस्थितिकी के बीच संबंधों को समझने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भीमबेटका आश्रय स्थलों की डेटिंग पहले भी की गई थी,लेकिन अंतर यह है कि जहां पहले रिलेटिव डेटिंग की गई थी, अब हम अब्सोल्यूट डेटिंग कर रहे हैं। इसके माध्यम से पता चलेगा कि अन्य वस्तुओं तुलना में शैलाश्रय कितने पुराने हैं।
 
कई चरणों में पूरी होती डेटिंग प्रक्रिया
दरअसल, डेटिंग एक बारीक और समय लेने वाली प्रक्रिया है, जो कई चरणों में पूरी होती है। इसमें लेआउटिंग, प्लाटिंग, खुदाई, माइक्रो कंटूरिंग, फोटोग्राफी और स्क्रिप्टिंग शामिल है। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद नमूनों को प्रयोगशाला में भेजा जाएगा। उन्होंने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि नमूनों पर प्रकाश न पड़े, इसलिए एक ऐसे उपकरण का उपयोग किया जाता है, जो सूर्य की रोशनी के संपर्क में आए बिना मिट्टी को सुखा देता है। खुदाई आम रास्ते से पांच सौ मीटर दूर एक स्थान पर की जा रही है। प्रक्रिया पूरी होने में अभी कुछ समय लगेगा। इस परियोजना के परिणाम यूनेस्को के लिए भी महत्वपूर्ण होंगे। परियोजना के तहत काम का शुभारंभ 18 जनवरी को एएसआई के क्षेत्रीय निदेशक भुवन विक्रम ने किया था। एएसआई के एडीजी आलोक त्रिपाठी ने भी हाल ही में साइट का दौरा किया है।

मनोज कुमार कुर्मी