बालाघाट। "जब बेटे की उम्र के लड़कों को देखती हूँ, तो अपने आंसू चुपचाप पोछ लेती हूँ… मेरा बेटा कभी लौटकर नहीं आएगा क्या?" ये शब्द हैं वृद्ध मां शांता बाई के, जिनका इकलौता बेटा जितेंद्र जायनाकार बीते एक साल से लापता है।
बालाघाट जिले की तिरोड़ी तहसील के ग्राम कोसुंबा में रहने वाले माता-पिता की इस सच्ची कहानी ने हर किसी का दिल दहला दिया है। 32 वर्षीय जितेंद्र 22 अप्रैल 2024 को पांच साथियों के साथ छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के केरलापार में तेंदूपत्ता भराई का काम करने गया था। लेकिन 24 अप्रैल से वह रहस्यमय तरीके से लापता हो गया, और तब से उसका कोई सुराग नहीं मिला है।
बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराई
परिजनों को बेटे की गुमशुदगी की सूचना 9 दिन बाद तब मिली, जब उसका एक साथी भाउलाल परिहार बीमार होकर गांव लौटा। बेटे की खबर सुनकर टूटे हुए माता-पिता ने महकेपार पुलिस चौकी और फिर केरलापार में गुमशुदगी दर्ज करवाने की कोशिश की, लेकिन "इलाका हमारा नहीं" कहकर पुलिस ने शिकायत दर्ज करने से इनकार कर दिया।
लगातार चक्कर काटने के बाद 6 जुलाई को किसी तरह गुम इंसान की रिपोर्ट दर्ज हुई, लेकिन मामला यहीं ठंडे बस्ते में चला गया। जितेंद्र की खोज अब तक सिर्फ फाइलों में चल रही है, जमीन पर कोई खोजबीन नहीं की जा रही।
"हमें बस इतना बता दो कि हमारा बेटा जिंदा है या मर गया" - ये दर्द है जितेंद्र के पिता हेमराज जायनाकार का, जो अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का सहारा लेने पर मजबूर हो चुके हैं।
आसमा ट्रेडर्स कंपनी में काम करता था जितेंद्र
जितेंद्र ‘आसमा ट्रेडर्स’ नामक कंपनी के लिए काम करने गया था, लेकिन कंपनी के मैनेजर युवराज मेश्राम ने पूरी तरह पल्ला झाड़ते हुए कहा कि उन्हें जितेंद्र के बारे में कोई जानकारी नहीं है। अब इस गरीब और बुज़ुर्ग जोड़े को न्याय दिलाने के लिए ना तो कंपनी सामने आ रही है और ना ही पुलिस कोई ठोस कार्रवाई कर रही है। एक साल से माता-पिता हर सरकारी दफ्तर, पुलिस थाने और अधिकारियों के दरवाज़े खटखटा रहे हैं, लेकिन मिला है तो सिर्फ़ "तलाश जारी है" का जवाब।