थ्रम्बोलिसिस: भोपाल में लकवाग्रस्त मरीजों का स्पेशल ट्रीटमेंट, एक्सपर्ट बोले-गोल्डन पीरिएड में करा लें पैरालिसिस का इलाज 

Bhopal Hamidia Hospital: भोपाल की हमीदिया अस्पताल में पैरालाइज्ड (लकवाग्रस्त) मरीजाें के लिए थ्रम्बोलिसिस इलाज शुरू किया गया है। इसमें टेनेक्टेप्लेज इंजेक्शन देते हैं, जो मरीज की नशों में क्लाटिंग खत्म कर देता है।;

Update: 2025-04-17 17:47 GMT
Thrombolysis treatment for paralyzed patients
Thrombolysis treatment for paralyzed patients
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भोपाल (सचिन सिंह बैस)। मध्य प्रदेश के सीहोर निवासी 40 साल के मोहनकुमार को सात दिन पहले पैरालिसिस हो गया। उनके शरीर के दांए हिस्से पूरी तरह से काम करना बंद कर दिए थे। परिजनों ने तत्काल उन्हें लेकर भोपाल की हमीदिया अस्पताल पहुंचे। यहां इमरजेंसी में जांच और सिटी स्कैन कर दवा शुरू की गई। मरीज को एक दिन बाद ही आराम मिलना शुरू हो गया। अब मरीज पूरी तरह से ठीक हैं। 

दरअसल, हमीदिया अस्पताल में पैरालिसिस से बचाने नया इलाज शुरू किया गया है। मरीज को इमरजेंसी में विशेष इंजेक्शन दिया जाता है। इस इंजेक्शन से पैरालिसिस मरीज कुछ दिन में ही ठीक हो जाता है। इस इलाज को थ्रम्बोलिसिस कहते हैं। जो निजी अस्पतालों में उपलब्ध था।

40 हजार इंजेक्शन बिल्कुल मुफ्त 
इस इलाज में मरीज को टेनेक्टेप्लेज इंजेक्शन लगाया जाता है। निजी अस्पतालों में जिसकी कीमत 40 हजार है, लेकिन हमीदिया अस्पाल में यह नि:शुल्क उपलब्ध है। हमीदिया में हर सप्ताह एक मरीज को इस इजेक्शन की जरूरत होती है।

नसों में जमे ब्लड को खोलता है इंजेक्शन
हमीदिया अस्पताल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. आयुष दुबे ने बताया कि ब्लड की क्लॉटिंग की वजह से लकवा (पैरालिसिस) होता है। थ्रंबोलाइसिस इंजेक्शन मरीज की नसों में जमा खून (ब्लड) को खोल देता है। यह इंजेक्शन क्लॉटिंग और ब्लड जमने से भी रोकता है। 

शुरुआती 4.30 घंटे गोल्डन पीरिएड
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. आयुष दुबे ने बताया कि पैरालिसस के मामले में समय पर ईलाज शुरू होना ही सबसे महत्चपूर्ण है। पैरोलिसिस के बाद शुरुआती 4.30 घंटे बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इस दौरान क्लॉट सॉफ्ट होते हैं और आसानी से खत्म किए जा सकते हैं। इसे विंडो पीरिएड या गोल्डन पीरिएड कहा जाता है।

ये लक्षण देख तुरंत पहुंचे अस्पताल
व्यक्ति को अचानक हाथ-पैर में कमजोरी, पैरों में लड़खड़ाहट, बैलेंस बिगड़ना, आवाज में बदलाव या चेहरा टेढ़ा हो जाना स्ट्रोक या लकवा की पहचान है। 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में, स्ट्रोक होने की संभावना अधिक होती है। हाई ब्लड प्रेशर, शुगर, हाई कोलेस्ट्रॉल अथवा अनियमित दिल की धड़कन, यह बीमारियों में स्ट्रोक की संभावना ज्यादा होती है।

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