भोपाल। गणेश उत्सव 7 सितंबर से शुरू हो रहा है। गणेशोत्सव के लिए पंडालों के निर्माण से लेकर मूर्ति की तैयारियां दिन-रात चल रही हैं। इस बार गणेशोत्सव में तीन से लेकर 18 फीट ऊंची मूर्ति विराजेंगी। ज्यादातर पंडालों में राजा स्वरूप में गणेशजी विराजेंगे। इसके लिए तैयारियां चल रही हैं। बंगाली कारीगर गणेशजी की मिट्टी की मूर्ति पंडालों के लिए बना रहे हैं। सभी पंडालों में शोभायात्रा के रूप ढोल नगाड़ों के बीच मूर्ति लाकर गणेशजी को विराजित किए जाएगा। 10 दिनों तक विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। गणेशोत्सव के लिए पंडालों का निर्माण किया जा रहा है। इसके लिए कारीगरों के साथ पंडाल आयोजकों की टीम भी जुटी हुई है। आयोजन समिति का कहना है कि तेज बारिश इस बार जरूर चुनौती बन रही है, लेकिन गणेश पंडाल का काम अंतिम चरणों में हैं। अगले तीन दिन अधिकांश स्थानों पर पंडालों का काम पूरा हो जाएगा।

ईको फ्रेंडली मूर्तियों की बढ़ी डिमांड
ईको फ्रेंडली मूर्तियां मिट्टी, पेपर-माशे, पुराने कपड़े और बांस की मदद से बनाई जा रही हैं। यह पानी में पूरी तरह से घुल जाती है और पर्यावरण को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाती हैं। खास बात यह है कि इन्हें बनाने में हानिकारक रसायनों और रंगों का इस्तेमाल नहीं किया जाता। ऐसे में यह जल और भूमि के प्रदूषण को कम करने में मददगार साबित हो रही हैं। इनकी कीमत 500 रुपए से लेकर 12 हजार रुपए तक है।

बाजारों पर पूजन सामग्री की बिक्री
गणेश चतुर्थी से पहले ही बाजारों में उत्सव दिखना शुरू हो गया है। शहर के मुख्य मार्गों पर गणेशजी के विभिन्न स्वरूपों की आर्कषक प्रतिमाएं खरीदी और बेची जा रही हैं। यह मूर्तियां विभिन्न आकारों और डिजाइनों में उपलब्ध हैं। न्यू मार्केट, प्लाटिनम प्लाजा, जवाहर चौक, मंगलवारा,  करोंद, कोलार समेत विभिन्न बाजार गणेश मूर्तियों से सजने लगे हैं। वहीं दूसरी ओर बाजारों में गणेशजी की पूजा के सामान, फूल, मिठाइयां, अगरबत्तियां, दीपक, और नारियल की बिक्री बढ़ गई है। इसके अलावा विशेष सजावट के सामान भी बाजारों में उपलब्ध हैं।

10 दिनों तक बप्पा की आराधना में लीन
तीन दिन बाद गणेश उत्सव की शहरभर में धूम शुरू हो जाएगी। घर-घर और गलियों में बप्पा के पांडालों को सजाकर 10 दिनों तक बप्पा की आराधना होगी। विशेष संयोग में गणेश चतुर्थी विशेष फल देने वाली साबित होगी। मान्यता है कि गणेशजी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मध्याह्न काल में, सोमवार, स्वाति नक्षत्र एवं सिंह लग्न में हुआ था। इसलिए यह चतुर्थी मुख्य गणेश चतुर्थी कहलाती है।