भोपाल। युवा फ़िल्मकार सुदीप सोहनी की फ़िल्म ‘यादों में गणगौर’ का चयन केरल की संसस्कृति राजधानी त्रिस्सूर में चल रहे 7वें अंतर्राष्ट्रीय फोकलोर फ़िल्म फेस्टिवल में हुआ है। आगामी 9 जनवरी को त्रिस्सूर के 130 साल पुराने सेंट थॉमस कॉलेज के मीडिया स्टडीस सभागार में फ़िल्म का प्रदर्शन  सुबह 11 बजे होगा। इस महोत्सव में 70 देशों की 300 से अधिक सांस्कृतिक और सौंदर्य की दृष्टि से उल्लेखनीय फिल्में प्रदर्शित की जा रही हैं, जो विभिन्न देशों की जीवंत कला संस्कृति, विविधताओं और  सिनेमाई उत्कृष्टता को दर्शाती हैं। यह देश का अनूठा फ़िल्म फेस्टिवल है जिसमें त्रिस्सूर नगर के पांच अलग-अलग कला और मीडिया संस्थानों और सभागारों में फ़िल्मों का प्रदर्शन होता है। इस समारोह में सुदीप की फ़िल्म मध्य प्रदेश से एकमात्र चयनित फ़िल्म है। 

गुवाहाटी, शिकागो (अमेरिका) में हो चुका प्रदर्शन 
केरल में इस फेस्टिवल में गाँव-शहरों के हजारों दर्शकों की भागीदारी होती है और काफी बड़े पैमाने पर समूचे शहर में इस समारोह का आयोजन होता है। उल्लेखनीय है कि इस डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म के अब तक नेशनल चलचित्रम समारोह गुवाहाटी, अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म फेस्टिवल शिमला और साउथ एशियन फ़िल्म समारोह, शिकागो (अमेरिका) में प्रदर्शन हो चुके हैं। सुदीप ने बताया कि अँग्रेजी में इसे ‘रीमिनिसेंस ऑफ गणगौर’ के नाम से दिखाया जाएगा। 29 मिनट की इस फ़िल्म का निर्माण, निर्देशन व पटकथा सुदीप सोहनी ने लिखी है जबकि फिल्मांकन अशोक मीणा व सम्पादन वैभव सावंत ने किया है। फ़िल्म में ध्वनि परिकल्पना राजधानी के संगीतकार उमेश तरकसवार ने की है।

Sudeep Sohni's documentary film

गांव की पिछले 100 सालों की पारंपरिक व्यवस्था का इतिहास किया प्रदर्शित 
सुदीप ने बताया ‘गांव देहात की लोक परंपराएं किस तरह समय के साथ एक सांस्कृतिक यात्रा और इतिहास बन जाती हैं- यह फ़िल्म उसी की यात्रा करती है। साल 2015 में खंडवा के पास स्थित ननिहाल कालमुखी में पिछले सौ वर्षों से जारी गणगौर अनुष्ठान के दरमियान इसके फिल्मांकन का खयाल उन्हें आया और फिर अगले दो वर्षों तक गणगौर पर्व के समय फ़िल्म की शूटिंग की गई जिसमें पारंपरिक अनुष्ठान के अतिरिक्त जमुना देवी उपाध्याय, वसंत निर्गुणे, संजय महाजन, विनय उपाध्याय, आलोचना मांगरोले समेत ग्रामीण व लोक कलाकारों के साक्षात्कार, गणगौर के गीत और गाँव की परंपरा दर्शाई गई है। गाँव की पिछले 100 सालों की पारंपरिक व्यवस्था का इतिहास इस फ़िल्म में दर्ज है’।