MP By-election 2024 Result : मध्य प्रदेश की दो विधानसभा सीटों में हुए उपचुनाव में भाजपा को बड़ा झटका लगा है। मोहन सरकार में वन मंत्री अपनी परंपरागत सीट विजयपुर से चुनाव हार गए। कांग्रेस के मुकेश मल्होत्रा ने उन्हें करीब 7 हजार वोटों से चुनाव हरा दिया। जबकि, सीहोर जिले की बुधनी कांटे की टक्कर के बीच भाजपा प्रत्याशी रमाकांत भार्गव ने जीत दर्ज कर ली।
श्योपुर की विजयपुर सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट मानी जाती है। रामनिवास रावत यहां से 6 बार विधायक रहे। 2023 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने जीत दर्ज की थी, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा ज्वाइन कर ली। लेकिन 5 माह बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस के नए चेहरे मुकेश मल्होत्रा ने उन्हें चुनाव हरा दिया।
कौन हैं मुकेश मल्होत्रा?
- श्योपुर की विजयपुर विधानसभा सीट से वन मंत्री रामनिवास रावत को हराने वाले मुकेश मल्होत्रा आदिवासी समुदाय से आते हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने विजयपुर से चुनाव लड़ा था और निर्दलय प्रत्याशी के तौर पर 40 हजार से अधिक वोट प्राप्त किए थे। मुकेश मल्होत्रा 42 साल के हैं। उनका जन्म कराहल जनपद के शिलपुरी गांव में छोटेलाल आदिवासी के यहां हुआ था। पिता सामान्य किसान हैं।
- मुकेश मल्होत्रा ने एलएलबी और समाजशास्त्र से एमए किया हुआ है। उनके दो बेटियां और एक बेटा है। सम्पत्ति के नाम पर उनके पास शिलपुरी गांव में दो कमरे का कच्चा मकान और कराहल में एक पक्का घर है।
- मुकेश मल्होत्रा गाड़ियों के शौकीन हैं। उनके पास 2023 मॉडल की थार जीप, एक महिंद्र पिकअप, एक्टिवा और एक बाइक है। पत्नी के नाम पर एक खदान भी आवंटित हैं। जबकि, उन्होंने अपना पेशा मजदूरी बताया है।
- मुकेश मल्होत्रा और उनकी पत्नी के पास 46 लाख की सम्पत्ति है। चुनाव अयोग को दिए एफिडेविड में उन्होंने करीब दो लाख रुपए नकदी होना भी बताया है। उन्होंने यह भी बताया वह अधबटाई में खेती कर जीवन यापन करते हैं।
विजयपुर उपचुनाव में वोटों का गणित
विजयपुर में कुल 2,54,714 मतदाता हैं। इनमें से 1,33,581 पुरुष और 1,21,131 महिलाएं हैं। भाजपा-कांग्रेस सहित यहां 11 प्रत्याशी मैदान में उतरे थे। इनमें से 9 उम्मीदवार जमानत नहीं बचा पाए। 8 प्रत्याशियों को नोटा से कम वोट मिले हैं। भाजपा और कांग्रेस ने 90 फीसदी से अधिक वोट झटक लिए। कांग्रेस के मुकेश मल्होत्रा ने 100469 और भाजपा के रामनिवास रावत को 93105 वोट मिले हैं।
रामनिवास रावत की हार के 5 प्रमुख कारण
- ग्वालियर-चंबल की सियासत में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का खासा दखल है। लेकिन विजयपुर उपचुनाव से वह लगातार दूरी बनाए रहे। रामनिवास रावत और सिंधिया की अदावत करीब 4 साल पुरानी है। 2020 में उन्होंने सिंधिया के साथ कांग्रेस से बगावत नहीं की थी, लेकिन 2024 में उन्होंने सिंधिया की गैर मौजूदगी में भाजपा ज्वाइन कर ली।
- रामनिवास रावत पुराने कांग्रेसी हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव के समय भाजपा ज्वाइन की और मंत्री बन गए। इससे बाबूलाल मेवाड़ और सीताराम आदिवासी जैसे भाजपा के पुराने नेता नाराज हो गए। भाजपा नेतृत्व ने सीताराम को सहरिया विकास प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बनाकर आदिवासी वोटर्स को साधने की कोशिश की, लेकिन असफल रही।
- विजयपुर की जीत हार में आदिवासी वोटर्स की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। कांग्रेस में रहते रावत को भी आदिवासी वोट मिलते रहे हैं, लेकिन कांग्रेस ने इस बार मुकेश मल्होत्रा जैसे युवा आदिवासी चेहरे को उतारकर सियासी समीकरण साधने में सफल रही। वोटिंग से पहले आदिवासियों पर हुई फायरिंग से भी बीजेपी की स्थिति कमजोर हुई है।
- विजयपुर उपचुनाव में कांग्रेस ने दलबदल का मुद्दा जोर शोर से उठाया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी सहित पार्टी के कई विधायक लगातार डेरा जमाए रहे। चुनाव के दौरान हुई घटनाओं को भाजपा और मंत्री रामनिवास रावत से जोड़कर तीखा हमला बोला। प्रशासनिक मशीनरी के दुरुपयोग का मुद्दा भी उठाया। इससे आदिवासी वोटर्स एकजुट हो गए।
- विजयपुर कांग्रेस की परंपरागत सीट है। कांग्रेस यहां लगातार बेहतर परफार्मेंस करती रही है। मुरैना लोकसभा चुनाव में भी उसे काफी वोट मिले थे। कांग्रेस ने लोकसभा प्रत्याशी नीटू सिकरवार, हेमंत कटारे, उमंग सिंघार, सिद्धार्थ कुशवाहा और बैजनाथ कुशवाहा सहित अन्य विधायकों को लगाकर जातिगत समीकरण साधने में कामयाब रही। बागियों को भी ऐन वक्त पर मना लिया।
वियजपुर का जातिगत समीकरण
श्योपुर की वियजपुर विधानसभा आदिवासी बहुल्य सीट है। यहां 60 हजार के आसपास आदिवासी और करीब 30 हजार कुशवाहा मतदाता हैं। दोनों जातियों के मतदाता कांग्रेस के पक्ष में एकजुट नजर आए। पिछले चुनाव में भाजपा ने यहां से पूर्व विधायक सीताराम आदिवासी को प्रत्याशी बनाया था और रामनिवास रावत कांग्रेस की टिकट पर निर्वाचित हुए थे। रावत की इस जीत में मुकेश मल्होत्रा का बड़ा योगदान माना जा रहा है। क्योंकि आदिवासी वोट काफी हद तक बांटने में कामयाब रहे थे।