Infiltration case in India: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने सउदी अरब और बांग्लादेश के दूतावासों को नोटिस जारी किए हैं। कोर्ट ने गैरकानूनी तरीके से भारत में घुसे विदेशी नागरिक की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस दिए हैं। कोर्ट ने दोनों देशों के दिल्ली स्थिति दूतावाओं से अलमक्की के मूलनिवासी होने की जानकारी मांगी है। कोर्ट ने चार सप्ताह का समय दिया है।
जानें पूरा मामला
जानकारी के मुताबिक, ग्वालियर के पड़ाव थाना पुलिस ने 21 सितंबर 2014 को अहमद अलमक्की को गिरफ्तार किया था। अलमक्की बांग्लादेश के पासपोर्ट पर सिम खरीदने की कोशिश में था। पुलिस को अलमक्की के पास से बांग्लादेश का पासपोर्ट, सऊदी अरब का ड्राइविंग लाइसेंस मिला था। पुलिस ने अलमक्की को कोर्ट में पेश किया तो कोर्ट ने उसे 3 साल की सजा सुनाई। अलमक्की की सजा 22 अक्टूबर 2017 को पूरी हो चुकी है।
अलमक्की ने दायर की याचिका
2 जून 2018 को अलमक्की सुरक्षाकर्मियों को चकमा देकर भाग गया। पुलिस को उसकी लोकेशन हैदराबाद में मिली। पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया। जेल से भागने के आरोप में अलमक्की पर केस दर्ज कर कोर्ट ने 2021 में तीन साल की सजा सुनाई। इस बार उसे डिटेंशन सेंटर में रखा गया है। यहां रहते हुए अलमक्की ने कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लगाई है। याचिका में उसने अवैध रूप से डिटेंशन सेंटर में रखने के आरोप पुलिस और प्रशासन पर लगाए हैं।
खुद को बताया साऊदी अरब
अलमक्की ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में कहा है कि उसे गलत तरीके से हिरासत में रखा गया है। अलमक्की ने खुद को सऊदी अरब का बताते हुए अपने देश पहुंचाने की मांग रखी है। लेकिन, जब वह पकड़ा गया था, तब उसने पुलिस को पूछताछ में खुद को बांग्लादेशी बताया था। ऐसे में कोर्ट ने दोनों देशों के दिल्ली स्थिति दूतावाओं से जानकारी देने को कहा है।
क्या है बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका
बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को कानूनी भाषा में हैबियस कॉपर्स कहा जाता है। इस याचिका का इस्तेमाल हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में तब किया जाता है, जब किसी व्यक्ति को अवैध रूप से कस्टडी में रखा जाए या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ऐसा कार्य किया जाना, जो अपहरण के दायरे में आता हो।