मंडियों में लहसुन के भाव 200 रुपए के पार, जानिए क्यों बढ़े दाम, किसे हो रहा फायदा

भोपाल. लहसुन के भाव आसमान छू रहे हैं। कृषि बाजार में लहसुन 200 से 230 रुपए किलो तक बिक रहा है। वहीं फुटकर बाजार में तो 300 से 320 रुपए किलो बिक रहा है। पिछले साल लहसुन 10 रुपए किलो तक बिक रहा था, किसान फेंकने तक को मजबूर थे। इस बार के भाव ने सभी को चिंता में डाल दिया है। नरसिंहगढ़, भोपाल, विदिशा, सीहोर, जबलपुर सहित प्रदेशभर की मंडियों में लहसुन 230 रुपए किलो तक बिका।
इस बार रकबा भी हुआ कम
राष्ट्रीय स्तर पर निर्यात पर लगाई गई रोक के कारण ऐसा हुआ है। लहसुन के बढ़े भाव का फायदा किसानों को नहीं मिल पा रहा है। बिचौलियों ने जो लहसुन स्टोर कर रखा था, उन्हीं को फायदा हो रहा है। उन्हें दो से तीन गुना मुनाफा मिल पा रहा है। वहीं, किसानों पर दोहरी मार यह भी पड़ी है कि भाव के कारण इस बार का रकबा भी कम हुआ है। जिससे इसके बढ़े हुए दाम का लाभ भी उन्हें नहीं मिल पा रहा है।
ऐसे समझें बिचौलियों का गणित
किसान जब लहसुन की पैदावार करते हैं तो ज्यादा उत्पादन होने की स्थिति में भाव टूट जाते हैं। लहसुन को लंबे समय संभालकर रख पाना भी मुश्किल होता है, इसकी कलियां खराब होने लगती हैं। ऐसे में बिचौलिया इसे संभालकर रखते हैं, बड़े स्तर पर खरीदारी कर लेते हैं। किसानों से वे औने-पौने दाम में खरीद लेते हैं और इस रह भाव बढऩे के बाद सीधा मुनाफा कमा लेते हैं। व्यवस्था नहीं होने से किसान इससे वंचित रह जाते हैं।
प्रति बीघा 50 हजार का खर्च
मध्यप्रदेश के किसानों के अनुसार, सर्वाधिक मेहनती खेती लहसुन की ही होती है। इसे संभालकर रख पाना मुश्किल होता है। प्रति बीघा में 50 हजार रुपए का खर्च आता है। उन्होंने बताया कि एक बीघा में दो क्वींटल बीज डलता है। उसके बाद उसे खेतों में लगवाने का खर्च, दवाई-कीटनाशक और खाद का खर्च, ट्रैक्टर का खर्च, निंदाी-गुढ़ाई का खर्च और करीब 10 से 12 बार सिंचाई करना होती है। इसके बीच में दोबारा दवाई भी देना पड़ती है। कुल मिलाकर बेहतर भाव यदि न मिलें तो यह घाटे का सौदा रहता है।
किसान बोले-पूरा नहीं मिल पाता लाभ
किसान शिवनारायण पाटीदार ने बताया कि हम बड़े स्तर पर लहसुन की खेती करते हैं, लेकिन भाव की कमी को देखते हुए इस बार कम मात्रा में उपज की बोवनी की। जिससे दिक्कत यह आई कि अब भाव बढ़ गए। लहसुन को सहेजकर रख पाना भी मुश्किल होता है। साथ ही मेहनत भी अन्य उपज से ज्यादा है। साथ ही पानी की जरूरत भी ज्यादा होती है। ऐसे में किसान इससे बचते हैं। लेकिन जोखिम उठाकर बोवनी करने वालों को भी इसका लाभ पूरा नहीं मिल पाता।
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