मोहन सरकार: बल्लभ भवन की ‘नई एनेक्सी’ कितनी शुभ-अशुभ....?

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री मोहन यादव और उनके मंत्री राज-काज के लिए तैयार हैं। लेकिन, बल्लभ भवन में तैयार 'नई एनेक्सी' को लेकर एक अलग तरह की बहस छिड़ गई है। सवाल किए जा रहे हैं। एक विश्लेषण-;

By :  Desk
Update: 2023-12-31 13:07 GMT
Mohan Yadav Government
बल्लभ भवन में तैयार 'नई एनेक्सी' को लेकर एक अलग तरह की बहस छिड़ गई है।
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भोपाल, (लेखक: दिनेश निगम त्यागी )सरकार में बदलाव के साथ बल्लभ भवन में तैयार 'नई एनेक्सी' को लेकर अलग तरह की बहस छिड़ गई है। इसे ज्योतिष और शुभ- अशुभ के नजरिए से देखा जाने लगा है। पांच साल पहले जब से इसका उद्घाटन हुआ, तब से कोई मुख्यमंत्री यहां स्थाई होकर बैठ नहीं पा रहा है। इसे तैयार कराया था पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने, लेकिन 2018 के चुनाव बाद भाजपा हार गई और कांग्रेस सत्ता में आ गई। कांग्रेस सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 17 दिसंबर 2018 को इसका उद्घाटन किया लेकिन वे यहां डेढ़ साल भी नहीं बैठ सके। उन्हें सत्ता से बाहर होना पड़ा। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान 23 मार्च 2020 को मुख्यमंत्री बने और लगभग साढ़े तीन साल यहां बैठकर सरकार चलाई। 

2023 के चुनाव बाद भाजपा सत्ता में फिर आई। इसके लिए शिवराज सिंह ने दिन-रात मेहनत की लेकिन उनके स्थान पर मुख्यमंत्री बन गए डॉ मोहन यादव। इस तरह इस 'नई एनेक्सी' में पांच साल में तीन मुख्यमंत्री बैठ चुके। इसीलिए इसके शुभ-अशुभ होने को लेकर चर्चा चल निकली है। कुछ ने तो नए मुख्यमंत्री डॉ यादव को सलाह भी दे डाली है कि वे पूरे समय 'नई एनेक्सी' में न बैठें बल्कि बीच-बीच में बल्लभ भवन के पुराने मुख्यमंत्री कक्ष में भी बैठें। क्योंकि जब यह नई एनेक्सी बनी तब से ही पुराना मुख्यमंत्री कक्ष खाली पड़ा है। 

अब लगा, शिवराज नहीं, यह मोहन का शासन...
लगभग 18 साल के भाजपा शासनकाल में पहले भी गुना बस दुर्घटना जैसे दिल दहलाने वाले हादसे हुए हैं। अधिकांश समय शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री रहे, लेकिन गुना हादसे के बाद पहली बार लगा कि अब प्रदेश में शिवराज नहीं, मोहन का शासन है। मुख्यमंत्री डॉ यादव ने जिस तरह हादसे के लिए जवाबदार अफसरों पर कार्रवाई की, वह मिसाल बन गई। कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि बस दुर्घटना में कलेक्टर, एसपी, परिवहन आयुक्त और पीएस परिवहन का क्या दोष? याद करिए एक समय एक रेल दुर्घटना होने पर लाल बहादुर शास्त्री और विमान दुर्घटना होने पर माधवराव सिंधिया ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। दुर्घटना के लिए वे सीधे जवाबदार नहीं थे, लेकिन विभाग का मुखिया होने के नाते उन्होंने नैतिक जवाबदारी ली। अब समय आ गया है कि ऐसी दुर्घटनाओं पर अफसर या तो खुद नैतिक जवाबदारी लें, वर्ना उन्हें उसी तरह पद से  हटा देना चाहिए, जैसा मुख्यमंत्री डॉ यादव ने किया। इसका मतलब यह कतई नहीं कि ऐसी दुर्घटनाओं पर शिवराज सिंह संवेदना व्यक्त नहीं करते थे। संभवत: वे डॉ यादव की तुलना में ज्यादा संवेदनशील दिखते थे, लेकिन उन्होंने डॉ यादव जैसी कार्रवाई कभी नहीं की। इसीलिए मोहन की संवेदना शिवराज पर भारी पड़ गई। इससे अफसरों को मुख्यमंत्री के इरादे भी पता चल गए हैं। 

क्या सच में तय होने के बाद कट गया इनका पत्ता...?
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के मंत्रिमंडल का विस्तार जब से हुआ तब से ही एक चर्चा ने जोर पकड़ रखा है। यह कि दिल्ली से फाइनल होकर आई सूची काट- छांट की गई। कुछ नाम काट दिए गए, उनके स्थान पर दूसरे जुड़ गए। शपथ से पहले जब संभावित मंत्रियों के नामों की चर्चा चल रही थी, तब ही यह खबर चल पड़ी थी कि अभी नाम काटने-जोड़ने का काम चल रहा है। इसलिए सूची जारी होने में विलंब हो रहा है। अब कहा जा रहा है कि सूची में निमाड़ से अर्चना चिटनीस का नाम था, लेकिन एनवक्त पर काट कर उनके स्थान पर विजय शाह जोड़ दिए गए। शाह लगातार मंत्री रहे हैं। इसी तरह संजय पाठक का नाम लगातार चर्चा में था लेकिन वे मंत्री नहीं बन सके। गोपाल भार्गव के नाम को लेकर कोई आशंका ही नहीं थी। सब मानकर चल रहे थे कि वे मंत्री बन रहे हैं,  लेकिन रह गए। सिंधिया कैम्प से खबर है कि पहले प्रभुराम चौधरी का नाम फाइनल था। तब तक गोपाल भार्गव ही सागर से सूची में शामिल थे। लेकिन प्रभुराम के विरोध के चलते जैसे ही उनका नाम काट कर गोविंद सिंह राजपूत का नाम जुड़ा, गोपाल भार्गव  का पत्ता कट गया। हालांकि तर्क दिया जा रहा है कि 70 प्लस का होने के कारण उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। भाजपा सूत्रों का कहना है कि भार्गव को जल्दी कहीं न कहीं एडजस्ट किया जाएगा।

लोकसभा चुनाव में इस तरह चौंका सकती भाजपा....
नरेंद्र मोदी-अमित शाह के युग में भाजपा द्वारा चौंकाने का दौर जारी है। पहले विधानसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव को चुनाव लड़ा कर अचरज में डाला गया था। इसके बाद नेतृत्व ने मुख्यमंत्री के चयन और मंत्रिमंडल के गठन में सभी को चौंकाया, और अब चार माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ऐसा ही करने की तैयारी में है। खबर है कि कई राज्य सभा सदस्यों को लोकसभा का चुनाव लड़ाया जा सकता है। इसके लिए उनका इस्तीफा भी लिया जा सकता है। वे जीत गए तो ठीक, हारे तो भी उनके स्थान पर किसी और नेता को राज्यसभा भेजा जा सकता है। 

खबर यह भी है कि मंत्री बनने से वंचित गोपाल भार्गव जैसे कुछ विधायकों को लोकसभा का चुनाव लड़ाया जा सकता है। बता दें, विधानसभा चुनाव से निबटने के साथ भाजपा ने लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। इस संदर्भ में नवगठित मंत्रिमंडल, भाजपा पदाधिकारियों और विधानसभा चुनाव हारे प्रत्याशियों की बैठक में रणनीति बनाई जा चुकी है। इधर, कांग्रेस भी हार कर चुप नहीं बैठी। वहां भी लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो चुकी है। पार्टी के नए प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह की  मौजूदगी में हुई बैठक में तय किया गया है कि सभी बड़े नेताओं को लोकसभा चुनाव लड़ाया जाएगा। टिकट भी जल्दी घोषित किए जाएंगे। 

बाजी हार कर भी चर्चा में शिवराज, गोपाल, नरोत्तम....
भाजपा में पीढ़ीगत बदलाव के बाद कुछ नेताओं की झोली खुिशयों से भरी है तो कुछ पर वज्राघात जैसा हुआ है। खास यह है कि बदली परिस्थिति में कुछ नेता बाजी हार गए हैं तब भी सुर्खियों में बने हुए हैं। इनमें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मंत्री गोपाल भार्गव एवं पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा को शामिल किया जा सकता है। शिवराज डॉ मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने पर दी गई पहली प्रतिक्रिया में ही नेतृत्व को चुनौती देते नजर आए, इसके बाद बहनों-भान्जियों के बीच रोकर चर्चित हुए और अब चर्चा में बने रहने के लिए उन्होंने अपने नए बंगले में जनता दरबार शुरू कर दिया है। वे अब भी हारी बजी जीतने की कोशिश में हैं। गोपाल भार्गव मंत्री न बनने पर अपने ढंग से भावुक टिप्पणी लिखकर चर्चा में आए। इसके बाद गढ़ाकोटा चले गए और अपनी स्टाइल में उसी तरह कार्यक्रमों में शामिल हो रहे हैं, जैसे मंत्री रहते हुआ करते थे। तीसरे नरोत्तम मिश्रा, थे मुख्यमंत्री पद के दावेदरार लेकिन विधानसभा का चुनाव ही हार गए। लिहाजा वे मंत्री नहीं बन सके लेकिन उनके रुतबे में कोई कमी नहीं। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव से लेकर कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल सहित शायद ही कोई मंत्री हो, जो उनसे सौजन्य भेंट करने उनके बंगले नहीं जा रहा। इसे कहते हैं रुतबा और धमक।

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