Opinion: आप माननीय हैं। आप संविधान, विधान और व्यवस्था से ऊपर नहीं हैं। आपको न संसद की गरिमा का मान है न देश के गौरव का। शपथ ग्रहण में जिस तरह आपने अपने माननीय होने का परिचय दिया, वह हमारी संसदीय व्यवस्था का कभी हिस्सा नहीं हो सकता। आप अपनी हरकतों से खुद को भले गौरवान्वित महसूस कर रहे हों, लेकिन देश और लोकतंत्र शर्मसार है। आप के हाथों में संविधान की किताबें भले हों, लेकिन आपका व्यवहार संविधान की चौखट लांघता दिखा।
8वीं लोकसभा में 535 माननीय सांसदों ने शपथ ली, लेकिन किसी ने अपनी अमिट छाप नहीं छोड़ी। कुछ पुराने एवं वरिष्ठ माननीयों को छोड़कर। शपथ ग्रहण समारोह में जिस तरह की छवि हमारे माननीयों की उभर कर आई है वह अपने आप में शर्मसार करती है। देश की आत्मा कहीं से भी झलकती हुई नहीं दिखी। अनेकता में एकता की कोई गंध और सुगंध नई आई। सत्ता और विपक्ष पूरी तरह से विभाजित दिखा। माननीय सांसद देश, संविधान और संसद की व्यवस्था को ताक पर रखकर अपने-अपने राजनीतिक स्वार्थ, जातिवाद, धर्मवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद के अहम में टूटते और बिखरते दिखे।
देश की खूबसूरती हाशिये पर
इस समारोह में देश की खूबसूरती हाशिये पर रही, जबकि क्षेत्रवाद, जाति और धर्म शीर्ष पर दिखा। यह अपने आप में विचारणीय बिंदू है। हम देश को किस तरफ ले जा रहे हैं। देश की जनता ने जिन लोगों को चुनकर भेजा है उसे आप क्या संदेश देना चाहते हैं यह अपने आप में विचरणीय प्रश्न है। इस पर विस्तृत विमर्श की जरूरत है। हम वोटबैंक और सत्ता के लालच में वैचारिक विभाजन के जरिये सामाजिक अलगाववाद की तरह बढ़ रहे हैं। अब इससे बड़ी हमारी सोच क्या हो सकती है कि हमने देश के खिलाफ साजिश रचने वालों को चुनकर संसद भेज दिया है, जबकि चुनाव जीतने वाले जेल में बंद होने की वजह से शपथ भी नहीं ले पाए। यह क्षेत्रवाद का ही जहर है। फिर राष्ट्रीय एकता की बात कहां से कर सकते हैं। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) हैदराबाद का प्रतिनिधित्व कर रहे असदुद्दीन ओवैसी ने जिस तरह संसद की गरिमा और व्यवस्था को तार-तार किया वह अपने आप में काबिलेगौर है।
रतमाता और संविधान की जय बोलने के बजाय जय भीम, जय मीम, जय तेलंगाना और जय फिलिस्तीन का नारा बुलंद किया। ओवैसी को सिर्फ एक क्षेत्र विशेष से प्रतिनिधित्व की जिम्मेदारी मिली है, लेकिन वह खुद को सरकार मान बैठे हैं। देश की नीति तय करने का अधिकार उन्हें किसने दिया। फिलिस्तीन इजरायल, रूस-यूक्रेन के प्रति हमारी नीति क्या होगी यह सार्वभौमिक संसद और सरकार तय तय करेगी। निश्चित रूप ओवैसी की तरफ से दिया गया बयान बेहद घटिया और संसद की गरिमा के खिलाफ है। उनकी संसद सदस्यता खत्म करने के लिए राष्ट्रपति को जो पत्र दिए गए हैं उस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए।
राहुल गांधी की बचकानी हरकतें
सद में प्रतिपक्ष के नेता निर्वाचित हुए राहुल गांधी हाथ में संविधान लेकर शपथ ग्रहण करने पहुंचे। उन्होंने अपनी शपथ अंग्रेजी में और शपथ ग्रहण के बाद जय संविधान का नारा लगाया। यह उनकी बचकानी हरकतें हैं। वह पुराने सदस्य हैं उन्हें राजनीतिक स्टंट से दूर रहना चाहिए। अपने गंभीर व्यक्तित्व का परिचय देना चाहिए, उस स्थिति में जब वे विपक्ष के नेता चुने जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश नगीना सीट से पहली बार विजयी हुए चंद्रशेखर आजाद रावण ने एक साथ कई नारे बुलंद किए जिसमें नमो बुद्धाय, जय भीम, जय भारत, जय संविधान, जय मंडल, जय जवान, जय किसान, भारतीय लोकतंत्र जिंदाबाद, भारत की महान जनता जिंदाबाद के नारे लगाए। इससे भी सत्ता और विपक्ष के सांसदों के बीच नोकझोंक हुई।
रावण बसपा यानी मायावती को कमजोर देख दलितों को खुद का मसीहा दिखाने के लिए तेवरदार राजनीति का नैरेटिव गढ़ रहे हैं। उनकी राजनीति वोटबैंक के लिए अच्छी हो सकती है, लेकिन समाज व्यवस्था के लिए बिल्कुल नहीं। शपथ ग्रहण के दौरान भाजपा सांसदों ने धार्मिक नारों का उपयोग किया। बरेली सीट से भाजपा सांसद छत्रपाल गंगवार ने जहां जय हिंदू राष्ट्र का नारा दिया। वहीं मेरठ से टीवी सीरियल रामायण में राम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल जय श्रीराम का जयघोष किया। विपक्ष ने दोनों सांसदों के नारे का प्रबल विरोध किया। अरुण गोविल के जय श्री राम नारे के विरोध में समाजवादी पार्टी के सांसदों ने जय अवधेश नारा बुलंद किया, क्योंकि अयोध्या की फैजाबाद सीट से अवधेश कुमार निर्वाचित हुए हैं। इस सीट पर भाजपा की हार को लेकर गंभीर चर्चा हो रही है और अयोध्या के लोगों पर सोशल मीडिया पर टिप्पणियां की जा रही हैं, जबकि मथुरा से भाजपा सांसद हेमा मालिनी ने शपथ ग्रहण के बाद राधे-राधे कर लोगों का अभिवादन किया। क्योंकि वह मथुरा से चुनकर आती हैं और मथुरा भगवान कृष्ण से जड़ा है।
नारे लगाने की होड़ चल रही हो
शपथ ग्रहण समारोह में सांसदों के व्यवहार और नारेबाजी को लेकर ऐसा लग रहा था जैसे नव निर्वाचित माननीयों में नारे लगाने की होड़ चल रही हो। इस नारेबाजी की होड़ में कोई पिछड़ना नहीं चाह रहा था। डीएमके सांसदों ने उदय नीति स्टालिन जिंदाबाद के नारे लगाए, जबकि गाजियाबाद से निर्वाचित भाजपा सांसद अतुल गर्ग ने अटल बिहारी और नरेंद्र मोदी जिंदाबाद के नारे लगाए। इसके बाद उन्होंने डॉ. हेडगेवार जिंदाबाद के भी नारे लगाए। पूर्वांचल की भदोही लोकसभा सीट से निर्वाचित सांसद डॉ. विनोद बिंद ने जय बिंद, समाज, जय निषाद जैसे जातिवादी नारों का प्रयोग किया। देवरिया से संसद पहुंचे शशांक मणि ने अपने अंतिम उद्बोधन में जय देवरिया का नारा लगाया। देश के विभिन्न हिस्सों से चुनकर आए माननीय सांसदों का व्यवहार संसद के प्रति कितना उत्तरदायी था यह कहना बड़ा मुश्किल है। पुराने और कई वरिष्ठ सांसदों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश माननीयों ने शपथ ग्रहण के दौरान संसद और लोकतंत्र के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं दिखाई। देश के मीडिया में शपथ ग्रहण समारोह की खूब चर्चा है। अब वक्त आ गया है जब शपथ ग्रहण के लिए भी एक विशेष गाइडलाइन बननी चाहिए, जिसमें कोई भी निर्वाचित सांसद क्षेत्रवाद, धर्म-जाति, भाषा का नारा बुलंद नहीं कर सकता।
समारोह चाहे जिस भाषा में हो लेकिन देश, संविधान और संसद की गरिमा का सम्मान आवश्यक है। अगर जिंदाबाद करना है तो सिर्फ भारत माता और संविधान की करिये। सत्ता हो या विपक्ष सभी को इस मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए। सरकार को आगे आकर मानसून सत्र में इस पर गंभीर चर्चा करानी चाहिए। विपक्ष को इस पर सहयोग करना चाहिए, क्योंकि यह सवाल सिर्फ सत्ता-विपक्ष का नहीं बल्कि देश, संसद और लोकतंत्र की गरिमा का है। शपथ ग्रहण समारोह के लिए एक विशेष नियम और कानून की व्यवस्था होनी चाहिए। जिस तरह हमारे माननीयों ने जिंदाबाद की संस्कृति का ईजाद किया वह पूरी तरह संसद की संस्कृति, संस्कार, विधान, व्यवस्था, गरिमा और मर्यादा के खिलाफ है।
प्रभुनाथ शुक्ल: (लेखक वरिष्ठ पत्रकार है, ये उनकेअपने विचार है।)