भोपाल। प्रबोधन कार्यक्रम के अंतिम दिन विधायकों को प्रश्न, बजट, स्थगन, विशेषाधिकार सहित अन्य संसदीय मामलों की जानकारी दी गई। उन्हें यह बताने की कोशिश की गई कि प्रश्नों की बहुत बड़ी ताकत होती है। लेकिन इसका उपयोग जनहित के लिए किया जाए। विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एवं भाजपा विधायक डॉ. सीतासरन शर्मा ने विधायकों को उनके प्रश्नों की ताकत बताते हुए कहा कि सरकार को किसी काम के बारे में पत्र लिख दो और उस पत्र पर से एक प्रश्न बना दो, तेजी से दौड़ता है। हमारे पत्रों के उत्तर यदि प्रशासन नहीं दे रहा है तो उस पर भी प्रश्न किए जा सकते हैं। जब विपक्ष में थे तब हम लोग भी इसका खूब उपयोग किया है। उन्होंने कहा कि प्रश्नों की ताकत बहुत बड़ी है, इसका उपयोग जनता के लिए के लिए करें।
उन्होंने कहा कि प्रश्नकाल बहुत महत्वपूर्ण होता है, एक घंटे के इस प्रश्नकाल के एक-एक मिनट का उपयोग होता है। इसमें विधायक क्षेत्र के विकास कार्यों सहित अन्य महत्वपूर्ण कार्यो के लिए प्रश्न पूछते हैं। प्रश्नकाल समाप्त होने में यदि एक मिनट भी शेष है तो भी स्पीकर सवाल पूछने का मौका दे देते हैं, कहने का तात्पर्य यह है कि प्रश्नकाल का एक मिनट भी बेकार नहीं दिया जाता। विधायकों को अपने प्रश्नों की ताकत समझना चाहिए।
अर्जुन सिंह बोलते कम थे, सुनते ज्यादा थे - राजेन्द्र सिंह
राजेन्द्र सिंह ने कहा कि मध्यप्रदेश के गठन के बाद कई सरकार आईं। जब मैंने होश संभाला तबसे एक से एक धाकड़ सीएम को देखा। पीसी सेठी और श्यामाचरण का कार्यकाल देखा, अर्जुन सिंह का कार्यकाल देखा। सिंह ने कहा कि सुंदरलाल पटवा का कार्यकाल भी देखा। दिग्विजय सिंह और उमा भारती का कार्यकाल देखा। उन्होंने कहा कि राज्य के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह बोलते कम थे, सुनते ज्यादा थे। अर्जुन सिंह अधिकारियों से बहुत कम सीधा संवाद करते थे। चीफ सेक्रेटरी बात करते थे लेकिन यह परंपरा अब टूट गई है। नौकरशाही की मैं आलोचना नहीं करता। पहले सदन में जो शब्द प्रयोग होते थे वह आज नहीं हो सकता। राजेन्द्र सिंह ने बजट प्रक्रिया एवं आय-व्यय, अनुदान मांगों सहित बजट से जुड़े अन्य विषयों के टिप्स विधायकों को दिए। उन्होंने बताया कि वर्ष 1947 में देश का पहला बजट पास हुआ था जो 197 करोड़ था। 92 करोड़ रक्षा क्षेत्र के लिए निर्धारित था। उस समय देश की परिस्थितियां ही कुछ ऐसी थीं। आज प्रदेश के ऊपर बहुत कर्ज है। आज सबसे बड़ा कर्जदार देश अमरीका है। उन्होंने कहा कि जिस दिन विनियोग विधेयक पेश होता है, उस दिन उस पर सदन में चर्चा नहीं होती। एक मौका ऐसा भी आया जब अनुदान मांग परा चर्चा के दौरान सरकार गिर गई थी।
महत्वपूर्ण होता है स्थगन प्रस्ताव - एपी सिंह
विधानसभा प्रमुख सचिव एपी सिंह ने विधायकों को कार्य संचालन नियमों की जानकारी देते हुए कहा कि कई बार कार्यसूची जारी होने के बाद भी उसमे बदलाव हो सकता है। जरूरत पडऩे पर पूरक कार्यसूची लाई जाती है। जैसे 1984 में भोपाल में गैस त्रासदी हुई जिसमे हजारों लोग मरे। ऐसे समय में अगर सदन की कार्यवाही चल रही होती तो ऐसे संवेदनशील विषय पर चर्चा सदन में हो तो स्थगन प्रस्ताव लाना होता है जिससे महत्वपूर्ण विषय पर तत्काल चर्चा हो सके। एक दिन में एक स्थगन प्रस्ताव और दो ध्यानाकर्षण लाया जा सकता है। स्थगन प्रस्ताव में शामिल विषय पर सरकार ज़बाब देती है। अगर विषय महत्वपूर्ण है तो अध्यक्ष उस विषय पर चर्चा कराते है जिसमें पक्ष और विपक्ष के लोग शामिल होते हैं। उन्होंने बताया कि क्षेत्र विशेष से जुड़ी समस्या अल्प सूचना के दायरे में आएगी। अध्यक्ष की सहमति के बाद इसे चर्चा के लिए शामिल किया जाता है। लोकसभा की विशेषाधिकार समिति के अध्यक्ष एवं सांसद सुनील कुमार ङ्क्षसह विशेषाधिकार की जानकारी दी।
शून्यकाल फिर से शुरू होगा - तोमर
विधानसभा अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि शून्यकाल में लिखित सूचनाओं पर बोलने का प्रावधान अभी है, किंतु आगामी सत्र में यह भी निर्धारित किया जाएगा कि शून्यकाल में महत्वपूर्ण तत्कालीन घटनाओं पर भी सदस्य अपनी बात रख सकेंगे। तोमर ने कहा कि इस बार 69 विधायक पहली बार चुन कर आए हैं। उन्हें एक पत्र भेजकर उनसे इस दो दिवसीय प्रबोधन का अनुभव लिया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि नए विधायकों के लिए एक और प्रबोधन कार्यक्रम अगर आवश्यक लगे तो उस दिशा में विचार करना चाहिए।