भोपाल। पत्रकारिता का धर्म ही है लोक की चिंता। आजादी के दौर में पत्रकारिता विशेष कर हिंदी पत्रकारिता ने समाज को एक दिशा दी, किंतु धीरे-धीरे वह अपने  उद्देश्यों से भटक गई। जबसे दृश्य माध्यम आया है, पत्रकारिता के स्वरूप में बदलाव आया है। यह कहना है नवनीत के संपादक विश्वनाथ सचदेव का। वे शनिवार को ज्ञानतीर्थ माधराव सप्रे संग्रहालय में हरिवंश: पत्रकारिता का लोकधर्म के विमोचन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। यह पुस्तक अपने समय के प्रखर पत्रकार और वर्तमान में राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश पर केंद्रित है। समारोह में स्वयं हरिवंश तथा पुस्तक के संपादक कृपाशंकर चौबे प्रमुख रूप से उपस्थित थे।  कार्यक्रम के दूसरे चरण में पत्रकारिता के विद्यार्थियों और सम्मानित विभूतियों के बीच संवाद भी हुआ। 

राजनीति में हरिवंश का जाना पत्रकारिता की क्षति 
विश्वनाथ सचदेव ने कहा कि हरिवंश जैसे व्यक्ति पत्रकारिता छोड़कर राजनीति में चले गए यह राजनीति के लिए बड़ी उपलब्धि हो सकती है, किंतु पत्रकारिता की बड़ी क्षति है। उन्होंने सप्रे संग्रहालय की पिछली यात्रा का स्मरण करते हुए कहा कि इस संस्थान ने हमारी कल्पना के अनुरूप तीर्थ स्थल का स्वरूप धारण कर लिया है। कार्यक्रम में उपस्थित हरिवंश ने इस अवसर पर कहा कि मुख्यधारा की पत्रकारिता उन्हीं समाचार पत्रों की मानी गई जो आमजन की आवाज बने। आदर्शवादी पत्रकारिता एक समय के बाद मुख्यधारा से दूर होती चली गई। 

लेखन बहुत ही आसान कार्य, लेकिन संपादन एक जटिल कार्य
किताब के संपादक कृपाशंकर चौबे ने कहा कि लेखन बहुत ही आसान कार्य है, लेकिन संपादन एक जटिल और चुनौतीपूर्ण कार्य है। उन्होंने अपने द्वारा पूर्व में संपादित अन्य ग्रंथों के अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि इन ग्रंथों का एक स्वरूप था, किंतु हरिवंश जैसे व्यक्तित्व के लिए सामग्री जुटाना और उसे पुस्तक की शक्ल देना कठिन था। फिर भी यह संभव हो पाया मेरे लिए संतोष की बात है।