MP Political Analysis (दिनेश निगम ‘त्यागी’): भाजपा के नेता तोड़ो अभियान से मप्र कांग्रेस में भगदड़ के हालात हैं। लोकसभा प्रत्याशियों का चयन भी बड़ी संजीदगी से करना पड़ रहा है कि कहीं कोई भागीरथ न बन जाए। वहीं भाजपा खेमे में शिवराज ही सरताज हैं। उन्हें न सिर्फ पसंदीदा सीट विदिशा लोकसभा से प्रत्याशी बनाया गया, बल्कि कई समर्थक भी चुनाव लड़ रहे हैं। इंदौर और उज्जैन में शिवराज ने अपनी ताकत का लोहा मनवाया।
शिवराज ने साबित किया ‘मरा हाथी भी सवा लाख का’....
प्रचलित कहावत ‘मरा हाथी भी सवा लाख का’ पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर फिट बैठती है। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद उनके राजनीतिक भविष्य के अंत की भविष्यवाणी की जाने लगी थी। उनके लोकसभा टिकट को लेकर भी सवाल उठाए जाने लगे थे। कैलाश विजयवर्गीय ने उन्हें छिंदवाड़ा से लड़ाने तक का सुझाव दे दिया था। शिवराज ने सभी अटकलों को खारिज करते हुए ‘मरा हाथी भी सवा लाख का’ वाली कहावत चरितार्थ कर दी। उन्हें उनकी पसंद की विदिशा लोकसभा सीट से प्रत्याशी ही नहीं बनाया गया, उनके अन्य खास समर्थकों को भी टिकट दिए गए। इंदौर और उज्जैन लोकसभा सीटों में भी उन्होंने अपनी ताकत का लोहा मनवाया। इंदौर में भी उन्होंने कैलाश विजयवर्गीय को मात दी। कैलाश ने इंदौर से सांसद शंकर लालवानी के टिकट काटे जाने का ऐलान एक मंच से कर दिया था, लेकिन शिवराज लालवानी का टिकट करा लाए। इसी प्रकार उज्जैन में अनिल फिरोजिया का टिकट होल्ड कर रखा गया था। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव यहां से किसी और के लिए टिकट चाहते हैं। यहां भी शिवराज ने फिरोजिया के नाम पर मुहर लगवा दी। हालांकि, इससे पहले मुख्यमंत्री डॉ यादव की सहमति ली गई। इस तरह शिवराज ने साबित कर दिया कि उन्हें लेकर कोई मुगालते में न रहे, CM न होते हुए भी वे ताकतवर हैं।
अनीता को टिकट तो गोपाल-कैलाश के बेटों को क्यों नहीं....?
परिवारवाद पर विरोधी दलों को पानी पी-पी कर कोसने वाली भाजपा टिकट वितरण में इस मुद्दे पर ही विपक्ष के निशाने पर है। सोशल मीडिया में सूची वायरल है, जिसमें पार्टी नेताओं के परिजनों को टिकट देने पर भाजपा की आलोचना की जा रही है। खास यह भी कि इसे लेकर भाजपा में भी असंतोष है। एक ही मसले पर दोहरा रवैया अपनाने के आरोप लग रहे हैं। भाजपा में एक नियम लागू था कि यदि पार्टी का एक नेता किसी सदन का सदस्य है तो परिवार के दूसरे सदस्य को टिकट नहीं दिया जा रहा था। 75 की आयुसीमा की तरह मप्र में यह मापदंड भी टूट गया। नागर सिंह चौहान विधायक हैं और भाजपा सरकार में मंत्री भी, फिर भी भाजपा ने इनकी पत्नी अनीता नागर सिंह चौहान को रतलाम- झाबुआ सीट से टिकट दे दिया। सवाल उठ रहे हैं कि यदि इसी तरह टिकट दिए जाने थे तो पार्टी के कद्दावर नेता गोपाल भार्गव और कैलाश विजयवर्गीय के बेटों अभिषेक भार्गव और आकाश विजयवर्गीय ने क्या गलती की है? अभिषेक लंबे समय से पार्टी में सक्रिय हैं। हर बार टिकट मांगते आ रहे हैं। इसी प्रकार कैलाश विजयवर्गीय के बेटे आकाश विधायक बने तो पिता कैलाश को टिकट नहीं मिला और कैलाश को टिकट मिला तो बेटे आकाश का पत्ता काट दिया गया। सवाल है कि आखिर पार्टी नेतृत्व का यह दोहरा रवैया क्यों?
पचौरी जी, क्या आपने की थी ऐसे हश्र की कल्पना....?
प्रदेश के वरिष्ठ राजनेता सुरेश पचौरी को लेकर सोशल मीडया में वायरल एक वीडियो चर्चा में है। इसमें भाजपा के एक कार्यक्रम में पचौरी को अपमानित होते दिखाया गया है। सवाल किए जा रहे हैं कि सुरेश पचौरी जैसे वरिष्ठ नेता इस उम्र में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में क्यों गए? भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा का आमंत्रण ठुकराना इसका कारण नहीं हो सकता। पचौरी जी इतने ही रामभक्त होते तो तब ही पार्टी छोड़ देते जब कांग्रेस ने आमंत्रण ठुकराया था। बल्कि इससे पहले ही छोड़ देते जब कांग्रेस ने कोर्ट में राम के अस्तित्व को ही काल्पनिक बता दिया था। बहरहाल वजह चाहे जो भी हो लेकिन वायरल वीडियाे देखकर भाजपा में उनकी स्थित का पता चलता है। वीडियाे एक कार्यक्रम का है जिसमें मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ सुरेश पचौरी भी मंच पर दिख रहे हैं। इसमें भाजपा नेता पचौरी जी को बार-बार धक्का मारकर पीछे कर रहे हैं और उनके आगे खड़े हो रहे हैं। शिवराज सहित काेई भी नेता एक बार भी नहीं बोल रहा कि पचौरी जी आगे आइए। कार्यक्रम में लोगों को सम्मानित किया जा रहा है तो छोटे-छोटे नेता तक सम्मान पत्र में हाथ लगा रहे हैं लेकिन पचौरी को नहीं पूछा जा रहा। पचौरी जी खुद बता सकते हैं कि क्या उन्होंने भाजपा में ऐसे हश्र की कल्पना की थी? क्या कांग्रेस के किसी कार्यक्रम में कभी उनके साथ ऐसा हुआ?
अजय का इस्तीफा भाजपा की रणनीति का हिस्सा तो नहीं....!
राज्यसभा सदस्य और भाजपा के निष्ठावान कार्यकर्ता अजय प्रताप सिंह का पार्टी से इस्तीफा किसी के गले नहीं उतर रहा। किसी को भी उनसेे ऐसे कदम की उम्मीद नहीं थी। इस समय कांग्रेस में भगदड़ के हालात है। नेताओं में भाजपा में आने की होड़ लगी है। चुनाव में बहुमत के साथ भाजपा के सत्ता में आने की फिर संभावना है। ऐसे में भाजपा के वे नेता भी पार्टी छोड़ने के बारे में नहीं सोच रहे, जो किसी पद पर नहीं हैं। अजय प्रताप लगातार पार्टी में किसी न किसी पद पर रहे हैं और इस समय राज्यसभा के सदस्य हैं। वे सिर्फ सीधी से टिकट न मिलने पर इस्तीफा दे देंगे, इस पर भरोसा नहीं हो रहा है। इसलिए उनके इस्तीफे को दूसरी दृष्टि से भी देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि अजय प्रताप का इस्तीफा भाजपा की रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है। दरअसल, सीधी से भाजपा ने डॉ राजेश मिश्रा और कांग्रेस ने कमलेश्वर पटेल को प्रत्याशी बनाया है। विंध्य में ठाकुर और ब्राह्मणों के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहता है। क्षेत्र के बड़े ठाकुर नेता पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह कांग्रेस के साथ हैं। भाजपा को खतरा है कि ठाकुर वोट और उनका समर्थन कांग्रेस के कमलेश्वर को मिल सकता है। अजय प्रताप निर्दलीय चुनाव लड़ जाते हैं तो ठाकुर मतदाता कट कर उनके पास जा सकते हैं। यह भाजपा की तुरुप चाल साबित हो सकती है।
कांग्रेस को डर, कहीं कोई प्रत्याशी ‘भागीरथ’ न बन जाए....!
कांग्रेस इस समय बुरे दौर से गुजर रही है। भाजपा के नेता तोड़ो अभियान से पार्टी में भगदड़ के हालात हैं। ऐसे में कांग्रेस के लिए लोकसभा प्रत्याशियों का चयन सबसे बड़ी समस्या है। पार्टी टिकट वितरण में जीतने की क्षमता वाले नेता की तुलना में भरोसेमंद प्रत्याशियों को प्राथमिकता दे रही है। खतरा इस बात का है कि कहीं कोई प्रत्याशी ‘भागीरथ’ न बन जाए। बता दें, कांग्रेस ने 2014 के लोकसभा चुनाव में सेवािनवृत्त आईएएस भागीरथ प्रसाद को भिंड से पार्टी का टिकट दिया था, लेकिन टिकट मिलने के बाद वह पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। 2014 का लोकसभा चुनाव भाजपा के टिकट पर लड़कर जीते थे। हालांकि, अगली ही बार 2019 में उनका टिकट काट कर संध्या राय को दे दिया गया था। 2014 में कांग्रेस के सामने ऐसे भगदड़ के हालात नहीं थे, फिर भी भगीरथ टिकट मिलने के बाद धोखा दे गए थे। अब पूरा जीवन कांग्रेस में गुजारने वाले सुरेश पचौरी जैसे वरिष्ठ नेता तक पार्टी छोड़कर जा रहे हैं। हर रोज कांग्रेस नेताओं की नई खेप भाजपा में जा रही है। गांधी परिवार के सबसे नजदीकी कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ की निष्ठा तक संदिग्ध है। ऐसे में टिकट वितरण में खास सावधानी बरतना पड़ रही है। निष्ठा की जांच परख के बाद ही प्रत्याशी बनाया जा रहा है ताकि टिकट की घोषणा के बाद कोई नेता दगा न दे जाए।