मधुरिमा राजपाल, भोपाल। मध्यप्रदेश के विदिशा और रायसेन जिले के चार से छह गांव जहां बेड़नी प्रथा काफी पुरानी हो गई है, वहां छोटी से छोटी बच्ची को इस प्रथा का शिकार बनाया जाता हैं, कभी परिवार तो कभी समाज की वजह से इन बच्चियों को इस प्रथा का शिकार बनना ही पड़ता है। लेकिन इन बच्चियों को इस प्रथा से मुक्ति दिलाने की अलख जगाई है सिस्टर डोर्थी ने। जिन्होंने करीब सात वर्षों से रायसेन और विदिशा जिले के आस पास के गांवों की सैकड़ों बच्चियों को न केवल इस प्रथा से मुक्ति दिलाई, बल्कि इन्हें शिक्षित करने का भी प्रयास किया।

आज के हमारे फाइटर महिला कॉलम में हरिभूमि ने चुना सिस्टर डोर्थी को। जो पिछले छ: सालों से गुलाबगंज विदिशा में बेड़नी समुदाय की बच्चियों के उत्थान के लिए काम कर रही हैं।

Sister Dorthy

ड्राइवर ने बताई बेड़नी समुदाय की हकीकत, तो सुनकर रह गई हक्की बक्की
सिस्टर डोर्थी ने कहा कि एक बार मैं दुलाई गांव जा रही थी कि जहां मेरे ड्राइवर ने मुझे जाने से रोका। मेरे बार-बार पूछे जाने पर उसने बेड़नी समुदाय की हकीकत बताई कि कैसे गांव की महिलाएं वैश्यावृत्ति के काम में धकेली जाती हैं। जिसे सुनकर मैं हक्की बक्की रह गई और बेड़नी समुदाय की हकीकत के बारे में पता चलने पर मैंने निर्णय लिया कि अब सारा जीवन इन बच्चियों का जीवन संवारने में लगाऊंगी।

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पढ़ाई का इतना शौक लेकिन परिवार के सदस्य हाथों से छीन लेते किताब
यह सुनकर मैंने इन्हीं के लिए काम करने का निर्णय लिया और मैं इन्हीं के गांवों में रुक गई, वहां रहकर इन बच्चियों के उत्थान के लिए काम करने लगी। जब मैं इनके गांव में गई तो हकीकत देखकर मैं हैरत में पड़ गई कि कैसे छोटी छोटी बच्चियों को भी इस पेशे में जबरदस्ती थकेला जाता था। इनमें से कई बच्चियों को पढ़ाई का इतना शौक था लेकिन परिवार के सदस्य इनके हाथों से किताब छीन लेते और इन्हें जबरन वैश्यावृत्ति में धकेला जाता। 

मैंने काम शुरू किया तो महिलाओं ने भी दिया साथ
सिस्टर डोर्थी ने बताया कि फिर मैंने उसी गांव में रुक कर इन बच्चियों के लिए काम करने की ठानी, और इसमें मुझे कई अन्य महिलाओं ने भी सपोर्ट किया। हमने सेल्फ हेल्प ग्रुप चलाया, जिसमें बच्चियों को शिक्षित किया जाता, उन्हें नैतिक शिक्षा दी जाती। आज मेरे सात साल के प्रयासों से कई बच्चियों को इस प्रथा से निकालकर मैंने उन्हें शिक्षा का पाठ पढ़ाया है।