इलाहाबाद हाईकोर्ट : महाभियोग प्रस्ताव से जज शेखर यादव को हटा पाएगा विपक्ष? जानें इसकी प्रोसेस

Judge Shekhar Yadav controversy: उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की तैयारी है। विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में उन्होंने मुस्लिम समुदाय को लेकर विवादित टिप्पणी की है। विपक्ष ने मुद्दे को संसद में उठाया और उनके खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया है। आइए महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया और प्रभाव को समझते हैं।
प्रयागराज में रविवार (8 दिसंबर) को हुए विश्व हिंदू परिषद (VHP) के कार्यक्रम उन्होंने मुस्लिम समुदाय पर विवादित टिप्पणी की थी। जस्टिस शेखर ने कहा था कि हिंदुस्तान बहुसंख्यकों की इच्छा से चलेगा। कठमुल्ला शब्द सही नहीं है, लेकिन कहने में परहेज भी नहीं है, क्योंकि देश के लिए वह घातक है। देश और जनता को भड़काने वाला है। ऐसे लोगों को सावधान रहना होगा।
जजों के खिलाफ महाभियोग क्यों और कैसे?
संविधान के अनुच्छेद 124(4) और अनुच्छेद 217 के तहत जजों को पद से हटाने की व्यवस्था है। हाईकोर्ट जज भी इस प्रक्रिया के तहत हटाए जा सकते हैं। प्रक्रिया काफी जटिल है, लेकिन जज पर अगल गलत व्यवहार और क्षमता की कमी जैसे आरोप लगते हैं तो उनके खिलाफ यह एक्शन हो सकता है। महाभियोग भी इसी नियम के तहत लाया जाता है।
महाभियोग की प्रक्रिया?
- महाभियोग का प्रस्ताव संसद (लोकसभा या राज्यसभा) में पेश किया जाता है। लोकसभा में पेश कर रहे हैं तो कम से कम 100 सांसदों और राज्यसभा के लिए 50 सांसदों की सहमति जरूरी है। जजों के खिलाफ यह प्रस्ताव सभापति या स्पीकर के सामने पेश किया जाता है।
- प्रारंभिक जांच के लिए वह एक समिति गठित करते हैं। समिति में सुप्रीम कोर्ट के जज, हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और एक विधि विशेषज्ञ का होना अनिवार्य है। यह समिति आरोपों की जांच करती है और रिपोर्ट संसद में रिपोर्ट पेश करती है।
- संसद में महाभियोग प्रस्ताव पारित करने के लिए सदन के दो-तिहाई बहुमत जरूरी है। एक सदन में प्रस्ताव पारित होने के बाद उसे दूसरे सदन में भेजा जाता है। दोनों सदनों द्वारा प्रस्ताव पारित होने के बाद राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है। उनकी मंजूरी के बाद ही जज को पद से हटाया जाता है।
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