Western UP Political analysis: उत्तर प्रदेश की सहारनपुर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत लोसकभा सीट पर पहले चरण यानी 19 अप्रेल को मतदान है। बुधवार यानी 20 मार्च से नामांकन प्रक्रिया शुरू हो गई है, लेकिन सपा-बसपा और भाजपा सहित किसी भी दल ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित नहीं किए। उम्मीदवारों के अभाव में मतदाता भी मौन हैं।
1st फेज वाली 8 में से 4 सीटों पर भाजपा सांसद
लोकसभा चुनाव 2024 में जिन पश्चिमी UP की जिन 8 सीटों पर पहले चरण में 19 अप्रेल को मतदान होना है। उनमें से चार सीटों पर भाजपा और तीन पर बहुजन समाज पार्टी के सांसद हैं। समाजवादी पार्टी ने मुरादाबाद और रामपुर लोकसभा सीटें जीती थी, लेकिन उपचुनाव में रामपुर हार गई। यानी उसके पास सिर्फ एक सीट है।
2024 में बदल गया पश्चिम का सियासी समीकरण
इस चुनाव में सपा-बसपा अलग अलग चुनाव मैदान में हैं। पश्चिमी यूपी में मजबूत पकड़ रखने वाली RLD भी भाजपा के साथ है। ऐसे में NDA की स्थित मजबूत मानी जा रही है। NDA में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल के अलावा अनुप्रिया पटेल, संजय निषाद और ओपी राजभर की पार्टी भी शामिल हैं। जबकि इंडिया गठबंधन में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस एक साथ हैं। मुस्लिम बहुल्य यूपी की कुछ सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी ने भी अपने प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया है।
UP की 1st फेज वाली 8 सीटों पर कौन आमने-सामने
लोकसभा क्षेत्र | NDA | INDIA | BSP | वर्तमान सांसद |
सहारनपुर | घोषित नहीं | घोषित नहीं | माजिद अली | फजलुर्रहमान बसपा |
मुजफ्फरनगर | संजीव बलियान (BJP) | हरेंद्र मलिक (SP) | दारा प्रजापति | संजीव बलियान (BJP) |
बिजनौर | घोषित नहीं | यशवीर सिंह | विजेंद्र सिंह | मालूक नागर बसपा |
नगीना | ओम कुमार (BJP) | घोषित नहीं | घोषित नहीं | गिरीश चंद्र बसपा |
मुरादाबाद | घोषित नहीं | घोषित नहीं | इरफान सैफी | ST हसन सपा |
रामपुर | घनश्याम लोधी | घोषित नहीं | घोषित नहीं | घनश्याम लोधी भाजपा |
पीलीभीत | घोषित नहीं | घोषित नहीं | अनीस अहमद खां | वरुण गांधी भाजपा |
कैराना | प्रदीप कुमार (BJP) | इकरा हसन (SP) | घोषित नहीं | प्रदीप कुमार भाजपा |
सहारनपुर: 13 चुनाव में 3-3 बार भाजपा-बसपा एक बार सपा जीती
सीरियल के हिसाब से सहारनपुर UP की पहली सीट है। यहां अभी बसपा के फजलुर्रहमान सांसद हैं। हालांकि, बसपा ने इस बार माजिद अली को प्रत्याशी बनाया है। दलित-मुस्लिम बहुल आबादी वाली इस सीट से सभी पार्टियों को मौका मिलता रहा है। 2014 में यहां से 29 फीसदी वोट लेकर भाजपा के राघवलखन पाल सांसद निर्वाचित हुए थे। 2019 में भाजपा के वोट करीब 20 फीसदी बढ़े, लेकिन सपा-बसपा गठजोड़ के चलते हार गए थे। भाजपा ने अभी प्रत्याशी नहीं तय नहीं किए। इंडिया गठबंधन की ओर से यह सीट कांग्रेस के खाते में गई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में 2 लाख से ज्यादा वोट पाने वाले इमरान मसूद प्रबल दावेदार हैं।
मुजफ्फरनगर: जाट मतदाता तय करते हैं जीत
पश्चिमी यूपी की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट में पिछले दो बार से भाजपा के संजीव बालयान सांसद हैं। जाट बहुल्य यह सीट भाजपा के काफी मुफीद मानी जाती है। हालांकि, सपा, बसपा और कांग्रेस भी एक-एक बार जीत चुकी हैं। RLD से समझौते बाद एक बार फिर भाजपा की स्थिति मजबूत मानी जा रही है। किसान आंदोलन जरूर चुनौती बन सकता है। भाजपा से संजीव बालयान, सपा से हरेंद्र मलिक और बसपा से दारा सिंह प्रजापत चुनाव मैदान में हैं।
बिजनौर: RLD के गढ़ 30 साल बाद मिली थी मायवती को जीत
पश्चिमी यूपी की जाट बहुल बिजनौर लोकसभा सीट कभी आरएलडी का गढ़ हुआ करती थी। वर्तमान में बसपा के मालूक नागर सांसद हैं। 1989 में इसी सीट से मायावती चुनाव जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंची थीं। तीन बार भाजपा, एक बार सपा और दो बार आरएलडी ने जीत दर्ज की है। सपा ने यशवीर सिंह, बसपा ने बिजेंद्र सिंह और NDA की ओर से RLD ने प्रत्याशी उतारा है। जीत का सेहरा किसके सिर होगा, जाट, दलित और मुल्मिम मतदाता ही तय करते हैं।
मुरादाबाद: मुस्लिम मतदाता ही लिखते हैं जीत की पठकथा
पश्चिमी यूपी की मुस्लिम बहुल मुरादाबाद सीट समाजवादी पार्टी के लिए मुफीद मानी जाती है। यहां से भाजपा और कांग्रेस ने एक-एक बार ही चुनाव जीती है। बसपा खाता नहीं खोल पाई। जबकि, समाजवादी पार्टी ने चार बार जीत दर्ज की है। खास बात यह है कि मुराबाद में 1971 के बाद हुए 13 में से 11 चुनाव मुस्लिम चेहरों ने ही जीत दर्ज की है।
रामपुर: सपा-कांग्रेस के गढ़ में 22 साल बाद खिला कमल
उत्तर प्रदेश की मुस्लिम बहुल रामपुर लोकसभा सीट से अभी भाजपा के घनश्याम लोधी सांसद हैं। 2019 में 52 फीसदी वोट लेकर आजम खान सांसद निर्वाचित हुए थे, लेकिन बेटे के फर्जी जाति प्रमाण पत्र मामले में सजा के बाद उनकी सांसदी चली गई। 2022 के उपचुनाव में भाजपा को 22 साल बाद जीत मिली और घनश्याम लोधी सांसद निर्वाचित हुए। पिछले 13 चुनाव में छह बार कांग्रेस, तीन बार भाजपा और तीन बार सपा के प्रत्याशी चुनाव जीते हैं।
पीलीभीत: गांधी परिवार के गढ़ में सपा-बसपा का नहीं खुला खाता
उत्तर प्रदेश की पंबाज सीमा पर स्थित पीलिभीत सीट में पिछले 38 साल से गांधी परिवार का कब्जा है। 1989 के बाद से छह बार मेनिका गांधी और दो बार फिरोज गांधी इस सीट से चुनाव निर्वाचित हुए हैं। मेनिका गांधी दो बार भाजपा, दो बार निर्दलय और दो बार जनता दल से सांसद बनी हैं। जबकि, बेटे वरुण गांधी दोनों बार भाजपा के सिम्बल पर लोकसभा पहुंचे हैं। सपा-बसपा का यहां से खाता नहीं खुला। भाजपा सांसद वरुण गांधी किसानों और बेरोजगारी के मुद्दे पर अपनी ही पार्टी की सरकार सवाल उठाते रहे हैं। अब तक यहां किसी पार्टी ने प्रत्याशी घोषित नहीं किए।
नगीना: सपा, बसपा और भाजपा तीनों के बराबर मौका
पश्चिमी उत्तर प्रदेश की नगीना लोकसभा सीट 2009 के परिसीमन में अस्तित्व में आई है। यहां अभी बसपा के गिरीश चंद्र सांसद हैं। 2014 में भाजपा के यशवंत सिंह ने 24 फीसदी वोट लेकर सपा प्रत्याशी यशवीर सिंह को तकरीबन 80 हजार वोटों से हराया था। जबकि, 2009 में सपा के यशवीर सिंह ने बसपा के रामकिशोर सिंह को 2 लाख वोटों से हराया था। इस चुनाव भाजपा का प्रत्याशी नहीं था। आरएलडी को 13 फीसदी वोट मिले थे।
कैराना: RLD-भाजपा गठबंधन से मजबूत हुई NDA
पश्चिमी यूपी की जाट-मुस्लिम बहुल इस कैराना सीट पर पिछले 10 साल से भाजपा का कब्जा है। 2014 के चुनाव में हुकुम सिंह ने 15 साल बाद भाजपा को जीत दिलाई थी। अभी उनके बेटे प्रदीप कुमार सांसद हैं। इसके पहले एक-एक बार सपा-बसपा और दो-दो चुनाव RLD-जनता दल ने जीते हैं। 2019 के चुनाव में सपा और बसपा के संयुक्त प्रत्याशी को 42 फीसदी वोट मिले थे। जबकि भाजपा के प्रदीप कुमार ने 50 फीसदी से ज्यादा वोट लेकर जीत दर्ज की थी। सपा ने इस बार इकरा हसन और भाजपा ने प्रदीप कुमार को उम्मीदवार बनाया है।