Maa Vindhyavasini Temple Mirzapur: आज गुरुवार (3 अक्टूबर) से शारदीय नवरात्रि शुरू हो गई है। उत्तर प्रदेश के शक्तिपीठों और देवी मंदिरों में सुबह से ही भक्तों की लंबी कतार लगी हुई है। इस लेख में हम आपको उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले के विंध्याचल पर्वत पर स्थित मां विंध्यवासिनी मंदिर के बारे में बताएंगे। यह स्थान हिन्दू धर्म में मां शक्ति की उपासना के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है।
बता दें कि मां विंध्यवासिनी को विंध्यवासिनी इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे विंध्याचल पर्वत पर विराजमान हैं। विंध्याचल पर्वत को जाग्रत शक्तिपीठ माना जाता है और मां विंध्यवासिनी को यहां की पूर्णपीठ माना जाता है। विंध्याचल (विंध्य + अचल) शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘विंध्य नामक पर्वत (अचल)’, और ‘विंध्यवासिनी’ का शाब्दिक अर्थ है ‘विंध्य पर्वत में निवास करने वाली देवी’।
मंदिर की प्राचीनता और इतिहास
मां विंध्यवासिनी मंदिर को लेकर मान्यता है कि यह मंदिर हजारों साल पुराना है और इसका उल्लेख प्राचीन हिंदू ग्रंथों और पुराणों में मिलता है। कहते हैं कि यह स्थान मां दुर्गा के अवतार मां विंध्यवासिनी का निवास स्थान है, जिनकी पूजा महिषासुर मर्दिनी के रूप में की जाती है। यह मंदिर त्रिकोणीय शक्तिपीठों में से एक है, जहां मां विंध्यवासिनी, मां काली और मां अष्टभुजा के रूप में तीन प्रमुख देवी पूजित होती हैं।
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यह शक्ति पीठ भारत के अन्य 51 शक्ति पीठों शामिल है, हालांकि यहां माता सती के शरीर को कोई अंग नहीं गिरा है। लेकिन मान्यता है कि देवी मां इस स्थान पर सशरीर निवास करती हैं। सिर्फ यहीं पर आदिशक्ति के पूर्ण स्वरूप की पूजा होती है। मान्यता है कि विंध्यवासिनी देवी के आशीर्वाद से ही इस सृष्टि का विस्तार हुआ है।
मां विंध्यवासिनी की महिमा
मां विंध्यवासिनी को शक्ति और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। उनकी पूजा से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है, ऐसा माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से मां के दर्शन करते हैं, उनकी हर मुराद पूरी होती है। खासकर नवरात्रि के समय यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। मां विंध्यवासिनी की कृपा से भक्तों को स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति का आशीर्वाद मिलता है।
मां विंध्यवासिनी मंदिर को लेकर पौराणिक मान्यता
मां विंध्यवासिनी देवी के इस मंदिर को लेकर कई पौराणिक मान्यता प्रचलित है। इसमें से एक है कि राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री सती के रूप में मां जगदंबिका ने जन्म लिया और फिर उनका विवाह भगवान शिव से हुआ। इसके बाद दक्ष ने एक विशाल यज्ञ किया, जिसमें उन्होंने भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया और बाकी सभी देवताओं को बुलाया। देवी सती ने अपने पति भगवान शिव को न बुलाए जाने से नाराज होकर यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसके बाद भगवान शिव नाराज हो कर तांडव करने लगे। वहीं भगवान ब्रह्मा के आग्रह पर भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से मां सती के मृत शरीर के 51 टुकड़े कर दिए। मां सती के मृत शरीर के टुकड़े धरती पर जहां गिरे, वहां शक्तिपीठ की स्थपना हुई। हालांकि यहां माता सती के शरीर को कोई अंग नहीं गिरा है। लेकिन मान्यता है कि देवी मां इस स्थान पर सशरीर निवास करती हैं।
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मां के दर्शन करने से होती है यश और धन की प्राप्ति
ऐसा कहा जाता है कि मां विंध्यवासिनी देवी कालीखोह व अष्टभुजा के दर्शन करने से यश-कीर्ति व धन की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि इस मंदिर में दर्शन करने के लिए श्रद्धालु उत्तर प्रदेश ही नहीं बिहार, झारखंड और देश के तमाम राज्यों से हर साल लाखों की संख्या में मत्था टेकने पहुंचते हैं।
नवरात्रि पर विंध्यवासिनी मंदिर पर विशेष आयोजन
नवरात्रि के पावन अवसर पर मां विंध्यवासिनी मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और भव्य आयोजन होते हैं। यहां पर नवरात्रि मेला लगता है, जिसमें देशभर से लाखों श्रद्धालु भाग लेने आते हैं। मंदिर प्रांगण को विशेष रूप से सजाया जाता है और भक्त दिन-रात मां विंध्यवासिनी की आराधना में लीन रहते हैं। नौ दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव में मंदिर की पवित्रता और भव्यता चरम पर होती है। हर साल यहां करीब 10-12 लाख श्रद्धालु नवरात्रि के दौरान मां के दर्शन करने आते हैं।
कैसे पहुंचे मां विंध्यवासिनी मंदिर?
मां विंध्यवासिनी मंदिर तक पहुंचना काफी सुविधाजनक है। मिर्ज़ापुर रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी मात्र 8 किलोमीटर है, यहां से ऑटो या टैक्सी के जरिए जा सकते है। इसके अलावा निकटतम हवाई अड्डा वाराणसी है, जो करीब 60 किलोमीटर दूर है। वाराणसी से सीधा बस या टैक्सी द्वारा मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।