Suryavanshi Thakur: अयोध्या में रामलला 500 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद 22 जनवरी को विराजमान हो गए हैं। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा न होने तक अयोध्या के सूर्यवंशी ठाकुरों की एक कसम खाई थी, कि जब तक राम मंदिर नहीं बनेगा तब तक हम ना पगड़ी पहनेंगे और ना ही कभी चमड़े के जूते पहनेंगे। आज उनकी प्रतिज्ञा पूरी हो गई है।
सूर्यवंशी ठाकुर अपने को श्रीराम का वंशज मानते हैं। उनका कहना था कि जिस दिन मंदिर बनेगा, उसी दिन हम दिवाली और होली मनाएंगे। उन्होंने कहा था कि "जन्मभूमि उद्धार होय ता दिन बड़ी भाग। छाता पग पनही नहीं और न बांधहिं पाग" इस दिन के लिए उन्होंने 500 वर्ष तक इंतजार किया। अब उनका संकल्प भी पूरा हो गया।
यहां से हुई थी शुरुआत
सन 1528 की बात है। बाबर के सेनापति मीर बांकी ने अयोध्या में हमला कर दिया और रामलला के मंदिर को तोड़कर मस्जिद का निर्माण शुरू कर दिया। यह सूर्यवंशी ठाकुरों को नागवार गुजरा तो मीर बांकी से लड़ने के लिए सरायरासी गांव के ठाकुर गजराज सिंह ने एक साथ लाखों लोगों को इकट्ठा किया और मीर बाकी की सेना से भिड़ गए।
10 दिनों तक चला था विवाद
यह विवाद मीर बांकी और ठाकुर गजराज सिंह के बीच लगभग 10 दिनों तक चला। इस युद्ध में करीब 80 हजार सूर्यवंशी अपनी जान गँवा बैठे और सूर्यवंशी ठाकुरों की हार हुई। इस हार के बाद क्षत्रिय महिलाओं ने ठाकुर गजराज सिंह को धिक्कारते हुए पगड़ी की ओर इशारा कर कहा था कि जब मंदिर नहीं बचा पाए, तो ये पगड़ी किसी काम की नहीं है, इसे उतारकर फेंक दो। यह बात सूर्यवंशी ठाकुरों के दिल में चुभ गई और उसी दिन उन्होंने प्रण लिया था कि मंदिर बनने के बाद ही सिर पर पगड़ी और पैर में चमड़े का जूता पहनेंगे।
500 साल हुए पूरे
इतना ही नहीं सूर्यवंशी ठाकुरों ने कसम खाई थी कि बेटी के शादी में मंडप को भी नहीं छाया जाएगा। और न ही कभी कोई पुरुष सिर ढकेगा। सरायरासी गांव के सूर्यवंशी ठाकुरों का 500 वर्षों का संकल्प अब पूरा हो गया है। जिसका बेसब्री से इंतजार था। राम मंदिर निर्माण के बाद से ही सूर्यवंशी ठाकुरों में जश्न का माहौल देखा जाने लगा। आज के दिन वह खुलकर पहली बार दिवाली और होली का त्यौहार दोनो एक साथ मनाएंगे।