Goonda Act : सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के गुंडा एक्ट यानी गैर सामाजिक गतिविधि रोकथाम कानून को बहुत सख्त बताया है। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने बुधवार को एक याचिका पर सुनवाई करते योगी सरकार में बने इस कानून पर टिप्पणी की है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मई-2023 में गुंडा एक्ट के तहत लंबित कार्रवाई रोकने से इनकार कर दिया था। शीर्ष कोर्ट ने बुधवार को मामले में सुनवाई की।   

सुप्रीम कोर्ट ने गत वर्ष यूपी सरकार से इस संबंध में जवाब तलब भी किया था। साथ ही याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रस्तावित कार्रवाई रोक दी थी। सीनियर एडवोकेट गौरव अग्रवाल और तन्वी दुबे ने एफआईआर पर सवाल उठाते हुए पुलिस और न्यायिक मशीनरी का का आरोप लगाया है। 

क्या है गुंडा एक्ट ?
उत्तर प्रदेश का गुंडा नियंत्रण अधिनियम-1970 सबसे सख्त कानून है। इसके तहत ज़िला मजिस्ट्रेट किसी अपराधी को 'गुंडा' करार देते हुए जिला बदर कर सकते हैं। सम्पत्तियां अटैच करने का भी प्रावधान है। गुंडा एक्ट के तहत जिला बदर 2 साल का हो सकता है। इस दौरान अपराधी के लिए जरूरी दिशा निर्देश और शर्तें भी जारी की जाती हैं। उस पर कुछ प्रतिबंध भी लगाए जा सकते हैं।

कोर्ट ने क्या कहा ? 
याचिकाकर्ता के वकील ने बताया, उनके मुअक्किल के खिलाफ अवैध खनन का केस पहले से दर्ज था। इसके बाद उसी मामले में गुंडा एक्ट की धाराएं लगा दी गई हैं। एक ही आरोप में दो मामले दर्ज हैं। कोर्ट ने इस दौरान गुंडा एक्ट की आलोचना करते हुए कहा, इस कानून के कुछ प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती वाली याचिका लंबित है। उस पर भी सुनवाई जरूरी है। 

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द की थी कार्रवाई 
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी एक मामले में सुनवाई करते हुए गुंडा एक्ट के दुरुपयोग पर सवाल उठाए थे। कोर्ट ने तय प्रावधानों के तहत ही गुंडा एक्ट लगाने का आदेश दिया था। गोरखपुर के रवि ने याचिका दायर की थी। कोर्ट ने इस कार्रवाई को अवैधानिक बताते हुए प्रकरण रद्द कर दिया था। राज्य सरकार के खिलाफ 20 हजार जुर्माना भी लगाया गया था।