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Kannauj Lok Sabha Election: उत्तर प्रदेश की कन्नौज सीट 2019 के चुनाव तक सपा की गढ़ रही है। 1999 में मुलायम सिंह, 2000, 2004 और 2009 में अखिलेश यादव ने और 2012 और 2014 में उनकी पत्नी डिंपल ने चुनाव जीता था। 2019 के चुनाव में भाजपा के सुब्रत पाठक ने जीत हासिल की थी।

Kannauj Lok Sabha Election: उत्तर प्रदेश की कन्नौज सीट... एक ऐतिहासिक सीट है। कभी समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया की कार्यस्थली रही। बीते 48 घंटे के भीतर इस सीट का समीकरण ऐसा बिगड़ा कि फिर चर्चा में आ गई है। इस सीट पर तेज प्रताप मैदान में थे। तेज प्रताप यादव अखिलेश यादव के भतीजे और मुलायम यादव के भाई रणवीर के पोते हैं और उन्होंने 2014 के चुनाव में मैनपुरी सीट जीती थी। लेकिन सपा ने उनका टिकट काट दिया और पार्टी मुखिया अखिलेश यादव खुद मैदान में आ गए हैं। अखिलेश आज, गुरुवार (25 अप्रैल) की दोपहर कन्नौज सीट से अपना पर्चा भरेंगे। 

अखिलेश ने बुधवार दोपहर चुनाव लड़ने के संकेत दिए थे। शाम होते-होते पार्टी ने उनके नाम की मुहर लगा दी। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि अखिलेश यादव ने खुद चुनाव लड़ने का मन क्यों बनाया? क्या दबाव की राजनीति है या सीट खोने का डर? जानिए सबकुछ...

पहला सवाल: अखिलेश यादव इतने कन्फ्यूज क्यों?
अखिलेश 2024 के लोकसभा चुनाव में बड़े कन्फ्यूज नजर आ रहे हैं। वजह उनकी बार-बार टिकट बदलने की रणनीति। उन्होंने सभी राजनीति दिग्गजों को टिकट काटने और बदलने की नीति में पीछे छोड़ दिया है। सपा ने 4 सीटों पर 2 बार अपना प्रत्याशी बदला। इसमें गौतमबुद्धनगर, मिश्रिख, मेरठ और बदायूं सीट शामिल हैं। जबकि 9 सीटों पर एक बार प्रत्याशी बदले जा चुके हैं। इनमें मुरादाबाद, रामपुर, बिजनौर, बागपत, सुल्तानपुर, वाराणसी और कन्नौज जैसी सीटें शामिल हैं। 

दूसरा सवाल: कन्नौज से ही क्यों उतरे अखिलेश यादव?
अखिलेश यादव 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल की आजमगढ़ सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। उन्होंने भोजपुरी स्टार और भाजपा प्रत्याशी निरहुआ को हराया था। लेकिन 2022 में करहल से यूपी विधानसभा के लिए चुने जाने के बाद उन्होंने पद छोड़ दिया। ऐसे में उन्होंने कन्नौज को क्यों चुना? दरअसल, कन्नौज जिला ईकाई के प्रतिनिधि मंडल ने लखनऊ में अखिलेश यादव से मुलाकात की। उन्हें बताया गया कि अगर अखिलेश यादव चुनाव लड़ते हैं तो ठीक रहेगा। क्योंकि कन्नौज की आधी जनता तेज प्रताप को पहचानती तक नहीं है। तेज प्रताप के व्यक्तित्व का करिश्मा भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक के आगे असरदार नहीं होगा। 

अखिलेश यदि खुद कन्नौज सीट से उतरते हैं तो प्रदेश में सकारात्मक संदेश जाएगा और विपक्ष परिवारवाद के आरोपों को भी धार नहीं दे पाएगा। चुनाव न लड़ने का भी नकारात्मक संदेश नहीं जाएगा, पार्टी को नुकसान से भी बचाया जा सकता है। 

तीसरा सवाल: आसपास की सीटों को भी साधने की कोशिश?
सपा का मानना है कि अखिलेश यादव के चुनाव लड़ने से कन्नौज के आसपास की सीटों जैसे इटावा, अकबरपुर, हरदोई, मिश्रिख, मैनपुरी और फर्रुखाबाद सीटों पर भी असर होगा। इन सब तर्कों और समीकरणों को देखते हुए अखिलेश यादव ने चुनाव लड़ने के लिए हामी भर दी। 

कन्नौज सीट पर कई सालों तक रहा सपा का दबदबा
कन्नौज एक ऐसी सीट है, जिसने अखिलेश यादव को तीन बार संसद भेजा। अपनी पत्नी डिंपल यादव और दिवंगत सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को भी सदन तक पहुंचा। 2019 में भाजपा के सुब्रत पाठक ने कन्नौज सीट को 14,000 से भी कम वोटों से जीता था। तब तक कन्नौज समाजवादी पार्टी का गढ़ था। यह सीट 2012 में एक उपचुनाव में अखिलेश यादव की पत्नी ने जीती थी। उन्होंने 2014 के चुनाव में इसे बरकरार रखा, लेकिन सुब्रत पाठक से हार गईं। बाद में मुलायम सिंह यादव के निधन के कारण डिंपल यादव को 2022 के उपचुनाव में मैनपुरी से मैदान में उतारा गया। वह करीब तीन लाख वोटों से जीतीं थीं। उन्हें मैनपुरी सीट से दोबारा उम्मीदवार बनाया गया है।

कन्नौज सीट का इतिहास

साल सांसद पार्टी
1967 राम मनोहर लोहिया संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी
1971 सत्य नारायण मिश्रा कांग्रेस
1977 राम प्रकाश त्रिपाठी जनता पार्टी
1980 छोटे सिंह यादव जनता पार्टी
1984 शीला दीक्षित कांग्रेस
1989 छोटे लाल यादव जनता दल
1991 छोटे सिंह यादव जनता पार्टी
1996 चंद्रभूषण सिंह भाजपा
1998 प्रदीप यादव सपा
1999 मुलायम यादव सपा
2000 अखिलेश यादव सपा
2004 अखिलेश यादव सपा
2009 अखिलेश यादव सपा
2012 डिंपल यादव सपा
2014 डिंपल यादव सपा
2019 सुब्रत पाठक भाजपा

13 मई को होगा मतदान
कन्नौज में 2024 चुनाव के चौथे चरण में यानी 13 मई को मतदान होगा। नतीजे 4 जून को आएंगे। इस चुनाव में सपा ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गुट के साथ गठबंधन किया है। वह यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से सबसे ज्यादा 63 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। अन्य 17 सीटें कांग्रेस को आवंटित की गई हैं। इसमें पार्टी का गढ़ कहे जाने वाले रायबरेली और अमेठी भी शामिल हैं। जहां अभी तक उम्मीदवारों के नाम तय नहीं किए गए हैं। चर्चा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा रायबरेली से और राहुल गांधी भाजपा की स्मृति ईरानी के साथ तीसरे मुकाबले के लिए अमेठी सीट पर उतर सकते हैं।  

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