Exclusive On Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ पिछले कुछ दिनों विवादों में हैं। वह देश के पहले ऐसे उपराष्ट्रपति बन गए हैं, जिनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। हरिभूमि और Inh 24x7 के एडिटर-इन-चीफ डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने अपने खास शो 'शख्सियत' में जगदीप धनखड़ की शख्सियत का विश्लेषण किया। यह जानने की कोशिश की गई कि एक शानदार एजुकेशनल बैकग्राउंड और अपनी पार्टी को लेकर प्रतिबद्ध रहने के बावजूद धनखड़ विवादों में क्यों हैं? इस खास शो में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रतापभानु शर्मा, भाजपा के पूर्व सांसद डीपी वत्स, राजनैतिक विश्लेषक राजकुमार सिंह और मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव भगवान देव इसरानी पैनल का हिस्सा रहे। आइए जानते हैं कि इन नेताओं और विश्लेषकों ने क्या कहा।
प्रतापभानु शर्मा ने जगदीप धनखड़ पर क्या कहा?
प्रतापभानु शर्मा ने कहा कि मैंने जगदीप धनखड़ को हर दौर में देखा है। धनखड़ ने सार्वजनिक जीवन में कई बार दल बदला, यह सही नहीं है। बंगाल के राज्यपाल रहते हुए भी उनके ममता बनर्जी सरकार के साथ अच्छे संबंध नहीं रहे। हालांकि, भानुप्रताप शर्मा ने उन्हें एक अच्छा वक्ता बताया। भानुप्रताप ने कहा कि जगदीप धनखड़ अपने स्वार्थ की वजह से कांग्रेस छोड़ी। मौजूदा समय में वह सभापति और राष्ट्रपति हैं। ऐसे में उनको सदन के कस्टोडियन के तौर पर काम करना चाहिए। किसी पार्टी के प्रति उनका झुकाव नहीं होना चाहिए।
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डीपी वत्स ने की जगदीप धनखड़ की तारीफ
डीपी वत्स ने कहा कि जगदीप धनखड़ एक एग्रिकल्चरिस्ट हैं। एक मार्शल बैक्रग्राउंड से आते हैं और संघर्षशील शख्स हैं। वह पहले गांव में पढ़े और फिर सैनिक स्कूल चले गए। वह फौज में सेलेक्ट हुए, लेकिन जॉइन नहीं किया। धनखड़ चाहे जहां भी गए शानदार प्रदर्शन किया। चाहे वह चौधरी देवी लाल के साथ रहे, चाहे वीपी सिंह के साथ, चाहे कांग्रेस के साथ या फिर हमारे साथ (BJP) रहे, उन्होंने हर जगह अच्छा काम किया है। वह एक अनुशासन प्रिय शख्स हैं। जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा में विपक्ष को अनुशासन में रखने का काम किया। बंगाल में भी उन्होंने संवैधानिक ढंग से काम नहीं कर रहीं मुख्यमंत्री के खिलाफ सख्ती दिखाई।
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क्या बोले इसरानी और राजकुमार सिंह
मध्य प्रदेश विधानसभा के पूर्व प्रमुख सचिव भगवान देव इसरानी ने भी कहा कि देश के उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जाना चाहिए था। इससे बचना चाहिए था। वहीं, राजनैतिक विश्लेषक राजकुमार सिंह ने कहा कि जगदीप धनखड़ जाट समुदाय से आते हैं। ऐसे में बीजेपी ने जगदीप धनखड़ को चुना। राजस्थान के जिस इलाके से आते हैं, वहां पर जाट हमेशा से कांग्रेस के लिए वोट करते रहते हैं। ऐसे में बीजेपी ने जगदीप धनखड़ के जरिए राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पैठ बनाने की कोशिश की। जगदीप धनखड़ कई तरह से बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हुए।
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शानदार रहा है जगदीप धनखड़ का एजुकेशनल बैकग्राउंड
जगदीप धनखड़ का एजुकेशनल बैकग्राउंड बेहद प्रभावशाली रहा। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा राजस्थान के चुरू जिले के सैनिक स्कूल में पूरी की। राजस्थान यूनिवर्सिटी (University of Rajasthan) से विज्ञान और कानून की पढ़ाई की। इसके बाद वह 1979 में राजस्थान हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। 1990 में वह सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate) भी बने। काला हिरण मामले में सलमान खान को जमानत दिलाने वाली वकीलों की टीम में भी जगदीप धनखड़ शामिल रहे। इसके साथ ही वह बंगाल और तमिलनाडु के राज्यपाल रहे।
कैसा रहा है जगदीप धनखड़ का राजनीतिक सफर
जगदीप धनखड़ ने 1989 में वीपी सिंह की सरकार के दौरान जनता दल से राजनीति में कदम रखा। उन्हें जनता दल का समर्थन हासिल था और वे झुंझुनूं से लोकसभा सांसद चुने गए। चौधरी देवी लाल के करीबी माने जाने वाले धनखड़ ने जनता दल के पतन के बाद कांग्रेस का दामन थामा, लेकिन 2003 में पार्टी छोड़ दी। इसके बाद वह टीएमसी में शामिल हुए, लेकिन वैचारिक मतभेदों के कारण उन्होंने टीएमसी भी छोड़ दी। इसके बाद वह बीजेपी में शामिल हुए और मौजूदा समय में वह पार्टी के कद्दावर नेताओं में से एक हैं।