लक्ष्मी नारायण मंदिर कैसे बना बिड़ला मंदिर- ये है इसकी असली कहानी

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के प्रमुख स्थलों में से एक है लक्ष्मी नारायण मंदिर जिसे बिड़ला मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर से जुड़ी खास बात यह है कि 1938 में बने इस मंदिर का उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था।
उस समय गांधीजी ने कहा था कि इस मंदिर के द्वार सदैव सभी के लिए खुले रहने चाहिए और इसमें जाति अथवा धर्म के नाम पर किसी से कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
इस मंदिर का निर्माण उडियन शैली में किया गया है। बताया जाता है कि इस मंदिर का सबसे पहले 1622 में वीर सिंह देव ने निर्माण करवाया था।
बाद में पृथ्वी सिंह ने 1793 में इसका जीर्णोद्धार करवाया। 1938 में भारत के मशहूर औद्योगिक परिवार बिड़ला समूह ने इसका विस्तार कार्य करवाया। तभी से इसे बिड़ला मंदिर के नाम से जाना जाता है।
इस समय जो मंदिर है उसका बाहरी हिस्सा सफेद संगमरमर और लाल बालु पत्थर से बना है। इसे देखते ही मुगल शैली की याद आ जाती है। मंदिर के पिछले भाग में बगीचे और फव्वारे तथा आगे के भाग में तीन और दो मंजिला बरामदे हैं।
मुख्य बरामदे में लक्ष्मी नारायण की भव्य मूर्ति स्थापित है। साथ ही मंदिर परिसर में भगवान शिव, गौतम बुद्ध और भगवान श्रीकृष्ण के मंदिर भी स्थित हैं।
इसके अलावा कई कमरों में विभिन्न देवी देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर के पिछले भाग में दो गुफाएं और एक सरोवर भी है। इस मंदिर में कलाकारों द्वारा रासलीला का मंचन किया जाता है।
इसके अलावा यहां नवरात्र और दीपावली के समय भी काफी आयोजन किये जाते हैं। दीपावली पर मंदिर की साज सज्जा देखने लायक होती है।
साढ़े सात एकड़ परिसर में स्थित इस मंदिर का वास्तुशिल्प विदेशी सैलानियों को भी खूब आकर्षित करता है। दिल्ली के हृदय स्थल क्नाट प्लेस से कुछ ही दूरी पर स्थित यह मंदिर सदैव कड़ी सुरक्षा और सीसीटीवी की निगरानी में रहता है।
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