कोई भी राजा और मंत्री नहीं बिता पाया उज्जैन में एक रात, जानिए इसका रहस्य

प्राचीनकाल से उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर की यह मान्यता रही है कि यदि कोई राजा उज्जैन में रात गुजार लेता था। तो उसे अपनी सल्तनत गंवानी पड़ती थी और आज भी उज्जैन के लोगों की यही मान्यता है कि यदि कोई भी राजा,सीएम,प्रधानमंत्री या जन प्रतिनिधि उज्जैन शहर की सीमा के भीतर रात बिताने की हिम्मत करता है, तो उसे इस अपराध का दंड भुगतना होता है। आखिर ऐसा क्या रहस्य जुड़ा है उज्जैन नगरी के महाकालेश्वर मंदिर से , जहां कोई भी मानव रूपी राजा रात नहीं बीता सकता है। आइये जानते हैं उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर का वो रहस्य जिससे अभी तक बिल्कुल अंजान थे।
महाकालेश्वर मंदिर की बनावट
भारत के उज्जैन शहर का महाकालेश्वर मंदिर रूद्र सागर झील के तट पर बना हुआ है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर को मुख्य रूप से तीन भागो में विभाजित किया गया है। मंदिर के सबसे निचले हिस्से में महाकाल दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग हैं। जहां भगवन शिव के साथ माता पार्वती ,गणेश और कार्तिकेय की मूर्तियों के दर्शन के लिए विराजित हैं। मंदिर के बीच वाले हिस्से में ओंकारेश्वर मंदिर और सबसे ऊपर नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित हैं। भागवन शिव के 'महाकाल रूपी' प्रतिमा का ये एकमात्र मंदिर है। जहां भस्म आरती (राख से की जाने वाली आरती) की रस्म निभाई जाती है। और इस आरती का हिस्सा बनने के लिए दुनिया भर से पर्यटकों और भक्तों की भारी भीड़ जमा होती है।
महाकालेश्वर मंदिर का इतिहास
किंवदंती और मान्यताओं के अनुसार, उज्जैन में महाकाल के प्रकट होने और मंदिर की स्थापना से जुड़ी एक कहानी है। इस कहानी के अनुसार दूषण नामक असुर से उज्जैन निवासियों की रक्षा करने के लिए भगवन शिव महाकाल के रूप में प्रकट हुए थे। महाकाल द्वारा असुर के वध के बाद भक्तों ने भगवान शिव से उज्जैन प्रान्त में ही निवास करने की प्रार्थना की, जिसके बाद महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां विराजमान हो गए। वर्तमान मंदिर को श्रीमान रानाजिराव शिंदे ने 1736 में बनवाया था। इसके बाद श्रीनाथ महाराज महादजी शिंदे और महारानी बायजाबाई शिंदे ने इस मंदिर में कई बदलाव किए और समय-समय पर मरम्मत भी करवाई थी।
महाकालेश्वर मंदिर से जुड़ा रहस्य
पौराणिक कथाओं और सिंघासन बत्तीसी के अनुसार राजा भोज के समय से ही कोई भी राजा उज्जैन में रात्रि निवास नहीं करता है। क्योंकि आज भी बाबा महाकाल ही उज्जैन के राजा हैं। महाकाल के उज्जैन में विराजमान होते हुए, कोई और राजा,मंत्री या जन प्रतिनिधि उज्जैन नगरी के भीतर रात में नहीं ठहर सकता है। यदि कोई भी राजा या मंत्री यहां रात गुज़ारने की कोशिश करता है, तो उसे इसकी सज़ा भुगतनी पड़ती है। इस धारणा को सही ठहराते हुए कई ज्वलंत उदाहरण उज्जैन के इतिहास में उपस्थित हैं।
1 देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जब महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन के बाद उज्जैन में एक रात रुके थे। तो मोरारजी देसाई की सरकार अगले ही दिन ध्वस्त हो गई।
2 उज्जैन में एक रात रुकने के बाद कर्नाटक के सीएम वाईएस येदियुरप्पा को 20 दिनों के भीतर इस्तीफा देना पड़ा।
3 वर्तमान कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उज्जैन शहर में रात में नहीं रुकते हैं।
किंवदंती के अनुसार, राजा विक्रमादित्य के बाद से, उज्जैन के किसी भी मानव राजा ने कभी भी शहर में रात नहीं बिताई है और जिन्होंने ऐसा किया, वे आपबीती कहने के लिए जीवित नहीं थे।
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