France Govt: फ्रांस के प्रधानमंत्री मिशेल बार्नियर नेशनल असेंबली में अपनी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव (Confidence Motion) पास होने के बाद पद से हटाए गए। उनका कार्यकाल महज तीन महीने का रहा। उनकी सरकार को संसद में वामपंथी और धुर-दक्षिणपंथी गठबंधन के विरोध का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही, मिशेल बार्नियर 1958 में स्थापित फ्रांस के 5वें गणराज्य के इतिहास में सबसे कम समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले नेता बन गए।
1) विवादित बजट
बार्नियर (Michel Barnier) की सरकार का पतन उनके प्रस्तावित बजट को लेकर हुआ, जिसमें €60 अरब (63 अरब डॉलर) की टैक्स बढ़ोतरी और खर्चों में कटौती का प्रस्ताव था। इस बजट का उद्देश्य 2025 तक बजट घाटे को 5% तक कम करना था, जो वर्तमान में 6.1% पर है। विपक्ष ने इसे "जनता के लिए जहरीला" करार दिया।
2) सियासी गठबंधन
धुर-दक्षिणपंथी नेशनल रैली पार्टी के नेता मरीन ले पेन और वामपंथी गठबंधन ने मिलकर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। मरीन ले पेन ने कहा कि देश को ऐसा बजट चाहिए जो सभी के लिए स्वीकार्य हो और संकेत दिया कि उनकी पार्टी नई सरकार के साथ काम करने के लिए तैयार है।
3) ऐतिहासिक घटना
मिशेल बार्नियर 60 सालों में पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें अविश्वास प्रस्ताव के चलते हटाया गया है। इससे पहले 1962 में जॉर्ज पोंपिदू को हटाया गया था, हालांकि उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति चार्ल्स डी गॉल का समर्थन मिल गया था।
4) संकट की शुरुआत
इस राजनीतिक संकट की जड़ें जून 2024 के चुनाव से जुड़ी हैं, जब राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने संसद भंग कर दी और मध्यावधि चुनाव (मिड टर्म इलेक्शन) कराए। इस चुनाव में मैक्रों की पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा और नेशनल रैली संसद में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।
5) मिशेल बार्नियर का राजनीतिक करियर
73 वर्षीय मिशेल बार्नियर एक अनुभवी नेता हैं, जिन्होंने फ्रांस के विदेश मंत्री और यूरोपीय संघ के कमिश्नर के रूप में कार्य किया है। उन्हें 2016 के ब्रेक्सिट डायलॉग में ईयू का नेतृत्व करने के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली। बार्नियर को उनकी "पद्धतिगत" कार्यशैली के लिए जाना जाता है, हालांकि उनके कार्यकाल को गहरे राजनीतिक विभाजन के कारण बाधित किया गया।
अब फ्रांस में आगे क्या होगा?
जुलाई 2025 तक नए चुनाव संभव नहीं हैं, जिससे फ्रांस राजनीतिक अस्थिरता के दौर में प्रवेश कर चुका है। नेशनल रैली पार्टी, जो संसद में प्रमुख शक्ति है, का प्रभाव बढ़ रहा है। वहीं, मैक्रों की कमजोर स्थिति के चलते नई सरकार के लिए चुनौतियां और बढ़ गई हैं। आने वाली सरकार को न केवल बजट से जुड़ी समस्याओं का समाधान करना होगा, बल्कि गहरे राजनीतिक मतभेदों से भी निपटना होगा।