Iran-Israel War: ईरान ने एक अक्टूबर की रात में इजरायल पर 180 से अधिक मिसाइलों से हमला कर दिया। इसके बाद से आशंका जताई जा रही है इजरायल अब ईरान पर पलटवार कर सकता है। ऐसे में दोनों देशों के बीच तनाव पूर्ण स्थिति बना हुई है। लेकिन क्या आपको पता है कि कभी यही ईरान और इजरायल एक समय जिगरी दोस्त थे, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि अब दोनों देश एक-दूसरे के दुश्मन बन बैठे हैं। आज हम आपको इसके बारे में बता रहे हैं।  

साल 1979 में ईरान, इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान बना। इसके बाद उसने इजरायली सेनाओं के खिलाफ उनके संघर्ष में फिलिस्तीनी समूहों का समर्थन किया। फिलिस्तीनी-इजरायल संघर्ष में ईरान का प्रभाव काफी बढ़ गया है, खासकर लेबनान में हिजबुल्लाह और गाजा पट्टी में फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद (पीआईजे) के उद्भव के साथ। फिर भी, पिछले 75 वर्षों में, ईरान, इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संबंधों में नाटकीय उतार-चढ़ाव देखने के लिए मिला।

ईरान ने इजरायल को दी राज्य की मान्यता 
साल1979 की ईरानी क्रांति से पहले, जब मध्य पूर्व के अधिकांश अरब देशों का इजरायल से मतभेद था और उसकी संप्रभुता को स्वीकार करने से इनकार कर रहे थे। तब ईरान के शाह ने फिलिस्तीनी क्षेत्रों में बसने वाले इजरायलियों का समर्थन किया। शाह के नेतृत्व में, ईरान ने 1950 में इजरायल को एक संप्रभु राज्य के रूप में मान्यता दी गई। 

हालांकि, 1950 के दशक की शुरुआत में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध धीमे पड़ने लगे। साल 1953 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए और ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआई-6 के द्वारा किए गए तख्तापलट के बाद, शाह ने सत्ता हासिल की और अमेरिका के सबसे करीबी सहयोगी इजरायल के मित्र बन गए।

कभी ईरान और इजरायल सैन्य सहयोगी थे
साल 1960-70 के दशक में इजरायल और अरब देशों के बीच तनाव बढ़ने के चलते दोनों देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक और सैन्य सहयोग फलने-फूलने लगा। साल 1957 में, राष्ट्रवादी और वामपंथी असंतुष्टों से चिंतित शाह ने इजरायली खुफिया सेवा मोसाद की सहायता से मध्य पूर्व की सबसे कुख्यात और क्रूर खुफिया एजेंससी SAVAK की स्थापना की। 1979 की क्रांति से पहले दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग की सीमा को गुप्त रखा गया था। लीक हुए दस्तावेजों से पता चला लगता है कि दोनों देश प्रोजेक्ट फ्लावर के कोड के तहत उन्नत मिसाइल सिस्टम विकसित करने पर सहमत हुए थे।

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ईरान से भारी मात्रा में तेल खरीदता था इजरायल
1967 और 1973 में अरब देशों के साथ इजरायल का संघर्ष हुआ, जिसमें इजरायल का समर्थन करने में तेहरान और तेल अवीव के बीच आर्थिक और ऊर्जा सहयोग महत्वपूर्ण था। यह पनामा और स्विट्जरलैंड में दोनों देशों द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित एक अंतरराष्ट्रीय फर्म के माध्यम से हासिल किया गया था, जिसे ट्रांस-एशियाटिक ऑयल के नाम से जाना जाता है। जब अरब तेल उत्पादक देशों ने इजरायल पर प्रतिबंध लगाया था, तब ईरान ने इलियट-अश्कलोन गुप्त तेल पाइपलाइन से अपने तेल को इजरायल तक पहुंचाया था।

ईरानी शाह के खिलाफ इस्लामी विरोधियों ने छेड़ा संघर्ष
ईरान और इजरायल ने अपने संबंधों को मजबूत किया, तो शाह के विरोध में ईरानी वामपंथी गुरिल्ला, जॉर्डन और लेबनान में फतह आंदोलन के कैंप में शामिल हो गए। जहां उन्होंने इजरायली सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी। 

खुमैनी ने इजरायल के खिलाफ जारी किया फतवा 
एक अन्य ईरानी राजनीतिक शख्सियत अयातुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी ने इजरायल की आलोचना की। छह-दिवसीय युद्ध के बाद, कट्टरपंथी ईरानी अयातुल्ला ने एक फतवा जारी किया। अपने अनुयायियों को घोषणा से कहा कि इजरायल के साथ राजनीतिक और आर्थिक संबंध स्थापित करना और इजरायली उत्पादों का उपभोग करना "हराम" माना जाता है।

ईरान-इजरायल में दोस्ती का अंत कैसे हुआ?
साल 1979 में अयातुल्लाह खोमैनी ईरान के प्रमुख बन गए। उन्होंने देश में इस्लामी गणतंत्र लागू किया। अमेरिका और उसके सहयोगी इसराइल के साम्राज्यवाद को नकारना उनकी मुख्य पहचान थी। अयातुल्लाह की सरकार ने इसराइल के साथ संबंध तोड़ लिए।

उसने उसके नागरिकों के पासपोर्ट की वैधता को मान्यता देना बंद कर दिया और तेहरान में इसराइली दूतावास को ज़ब्त कर फ़लस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (पीएलओ) को सौंप दिया। उस समय अलग फ़लस्तीन राज्य के लिए इसराइल के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व पीएलए कर रहा था। बस यहां से ईरान और इजारायल के बीच युद्ध की शुरुआत हुई।

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