अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने दोबारा जीत हासिल कर ली है। अमेरिका के सभी सातों स्विंग स्टेट में भी ट्रंप को पहली पसंद के रूप में चुना गया है। ट्रंप की जीत के बाद चर्चा तेज हो गई है कि भारत और अमेरिका को रिश्ते में इसका क्या असर पड़ेगा। आज हम इसलके बारे में आपको समझाते हैं।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच की केमेस्ट्री भी खूब चर्चा में रही है। कई बार दोनों नेता बड़े कार्यक्रमों में मंच साझा कर चुके हैं। 2019 में टेक्सास में “हाउडी, मोदी!” रैली में दोनों नेता साध दिखे थे। यहां ट्रंप ने लगभग 50,000 लोगों के सामने प्रधानमंत्री नरेंद मोदी की मेजबानी की थी। यह किसी विदेशी नेता के लिए अमेरिका में अब तक की सबसे बड़ी सभाओं में से एक थी।
ट्रंप का पीएम मोदी ने किया था भव्य स्वागत
डोनाल्ड ट्रंप के भारत आने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनकी मेहमाननवाजी दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट स्टेडियम में की थी। वहां 1 लाख 20 हजार से भी ज्यादा लोग अमेरिकी राष्ट्रपति के स्वागत के लिए मौजूद थे। दोनों नेताओं के बीच ये तालमेल सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं है। दोनों के राष्ट्रवादी विचार भी तकरीबन एक जैसे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'इंडिया फ़र्स्ट' विजन और डोनाल्ड ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति काफी मिलते-जुलते हैं, जिसमें दोनों नेता घरेलू विकास, आर्थिक राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा पर जोर देते हैं।
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इकोनॉमिक और ट्रेड पॉलिसीज डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाला प्रशासन साफ तौर पर अमेरिका केंद्रित ट्रेड पॉलिसीज पर ही जोर देगा। साथ ही भारत पर व्यापार बाधाओं को कम करने और टैरिफ का सामना करने का दबाव डालेगा। ऐसे में भारत का आईटी, फ़ार्मास्यूटिकल्स और टेक्सटाइल क्षेत्र का निर्यात बड़े स्तर पर प्रभावित हो सकता है। इसी साल सितंबर में ट्रंप ने आयात शुल्क के मामले में भारत को एब्यूजर यानी दोहन करने वाले की संज्ञा दी थी।
इसके बावजूद उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए उन्हें शानदार व्यक्ति बताया था। मिशिगन के फ्लिंट में एक टाउन हॉल के दौरान, व्यापार और शुल्कों पर चर्चा करते हुए ट्रंप ने कहा था कि इस मामले में भारत एक बहुत बड़ा एब्यूजर है। ये लोग सबसे चतुर लोग हैं। वे पिछड़े नहीं हैं। भारत आयात के मामले पर शीर्ष पर है, जिसका इस्तेमाल वह हमारे खिलाफ करता है।
भारत-अमेरिका के बीच 42.2 बिलियन डॉलर का कारोबार
आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो 2023-24 में भारत ने अमेरिका से 42.2 बिलियन डॉलर की वस्तुओं का आयात किया था। वहीं, भारत ने अमेरिका में तकरीबन 77.52 बिलियन डॉलर का निर्यात किया। इसको लेकर ट्रंप ने कहा था कि अगर उनकी सरकार आती है तो इस स्थिति को बदलेंगे और भारत पर टैरिफ शुल्क कम करने को लेकर भी दबाव बनाएंगे। अगर फिर भी बात नहीं बनी तो उन्होंने भारत से निर्यात होने वाले प्रोडक्ट्स पर टैक्स बढ़ाने की चेतावनी दी है। इसके अलावा ट्रंप ने ये भी कहा था कि आयात शुल्क के मामले में भारत बहुत सख्त है, ब्राजील बहुत सख्त है।
चीन सबसे ज्यादा सख्त है, लेकिन हम शुल्कों के साथ चीन का ख्याल रख रहे थे। ऐसे में अगर ट्रंप प्रशासन अमेरिकी कंपनियों को अपनी सप्लाई चेन कहीं और ले जाने और चीन पर निर्भरता कम करने को प्रोत्साहित करता है तो यह भारत के पक्ष में काम कर सकता है। ऐसे में भारत अनुकूल नीतियों के साथ अधिक अमेरिकी कंपनियों को आकर्षित कर सकता है, जिससे आर्थिक संभावनाओं को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि, ट्रंप प्रशासन भारत पर टैरिफ शुल्क कम करने को लेकर भी दबाव बना सकता है।
रक्षा-सुरक्षा का क्या मामला है?
चीन को लेकर भारत की जो भी चिंताएं हैं, वह डोनाल्ड ट्रंप के रुख से मेल खाता है। ट्रंप प्रशासन के नेतृत्व में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग और बेहतर और मजबूत होने की संभावनाएं हैं। पिछली बार ट्रंप के ही कार्यकाल में ही इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीनी प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच सुरक्षा साझेदारी क्वाड को मजबूत किया गया था। चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ तनाव के बीच अतिरिक्त संयुक्त सैन्य अभ्यास, हथियारों की बिक्री और टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत कर सकते हैं।
इमिग्रेशन और H-1B वीजा का क्या होगा?
पॉलिसीज इमिग्रेशन पर डोनाल्ड ट्रंप की प्रतिबंधात्मक नीतियों, विशेष रूप से H-1B वीजा प्रोगाम ने अमेरिका में भारतीय प्रोफेशनल्स पर काफी ज्यादा प्रभाव डाला है। ऐसी नीतियों की वापसी से भारतीयों के लिए अमेरिका जॉब मार्केट में नौकरी हासिल करना थोड़ा कठिन हो जाएगा। साथ ही जो भी क्षेत्र भारतीय श्रमिकों पर अधिक निर्भर है, उन पर प्रभाव पड़ सकता है। इसके अलावा सख्त इमिग्रेशन कानून भारतीय तकनीकी फर्मों को अन्य बाजारों की खोज करने या फिर डोमेस्टिक मार्केट में अधिक अवसर बनाने के लिए प्रेरित कर सकता है।
जियो पॉलीटिकल प्रभाव
साउथ एशिया में डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां भारत के क्षेत्रीय हितों को भी प्रभावित कर सकती हैं. दरअसल, हाल ही में ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ काम करने की इच्छा तो जताई थी, लेकिन संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए उन्होंने आतंकवाद विरोधी प्रयासों में जवाबदेही पर जोर दिया है। हालांकि, ट्रंप के 'ताकत के जरिए शांति' मंत्र के कारण अमेरिका आतंकवाद और उग्रवाद पर कड़ा रुख अपना सकता है, जो भारत के पक्ष में काम कर सकता है। ट्रंप ने अपने पिछले कार्यकाल में भी पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य सहायता में कटौती कर दी थी।
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