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Oberoi Family Dispute: दिवंगत होटल कारोबारी पीआरएस ओबेरॉय की बेटी अनास्तासिया का दावा है कि वसीयत में पिता ने EIH Ltd और Oberoi Hotels के शेयरों का आधा हिस्सा (50%) उनके और AO ट्रस्ट के लिए छोड़ा है। 

Oberoi Family Dispute: दिल्ली हाईकोर्ट ने ओबेरॉय फैमिली के बीच चल रहे विवाद में पिछले दिनों अहम फैसला सुनाया, जिसमें EIH Ltd, Oberoi Hotels और Oberoi Properties के शेयरों के ट्रांसफर पर अस्थायी तौर पर रोक लगा दी गई है। यह मामला दिवंगत पीआरएस ओबेरॉय (PRS Oberoi) की वसीयत पर आधारित है, जिसे उनकी बेटी अनास्तासिया ओबेरॉय ने चुनौती दी है। अनास्तासिया ने अपने भाई-बहन, विक्रमजीत, नताशा, और चचेरे भाई अर्जुन पर वसीयत के क्रियान्वयन में बाधा डालने का आरोप लगाया है।

ओबेरॉय परिवार में क्या है विवाद? 
दिल्ली हाईकोर्ट तक पहुंचा यह मामला 25 अक्टूबर 2021 की वसीयत और 27 अगस्त 2022 की कोडिसिल (वसीयत में बदलाव) के इर्द-गिर्द घूम रहा है। ओबेरॉय की बेटी अनास्तासिया ने दावा किया है कि वसीयत में उनके पिता द्वारा EIH Ltd और Oberoi Hotels के शेयरों का आधा हिस्सा (50%) उनके और AO ट्रस्ट के लिए छोड़ा गया है, जिसमें वह इकलौती लाभार्थी हैं। इसके उलट उनके भाई-बहनों ने इस वसीयत को कोर्ट में चुनौती दी है और 20 मार्च 1992 की एक पुरानी वसीयत पेश की है। उनका दावा है कि एक मौखिक पारिवारिक समझौता हुआ था, जो बाद की वसीयत पर लागू होना चाहिए।

दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या दिया आदेश?
इस मामले में हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि पीआरएस ओबेरॉय के किसी भी शेयर का ट्रांसफर या ट्रांसमिशन नहीं किया जाएगा। हालांकि, रेगुलेटरी जरूरतों को पूरा करने के लिए हर कंपनी में एक क्लास-A शेयर को एक नामित पार्टी को ट्रांसफर करने की इजाजत दी गई है। इस शेयर का इस्तेमाल सिर्फ नियामक उद्देश्यों के लिए किया जा सकेगा और इसके वोटिंग अधिकार सामान्य बैठकों में नहीं होंगे।

'अनास्तासिया जमीन और बिल्डिंग्स के कब्जे में हस्तक्षेप न करें'
साथ ही कोर्ट ने अनास्तासिया ओबेरॉय को दिल्ली के कापसहेड़ा में स्थित जमीन और बिल्डिंग्स के कब्जे में कोई हस्तक्षेप नहीं करने का आदेश दिया है, ताकि कानूनी विवाद के दौरान संपत्ति की मौजूदा स्थिति बनी रहे। कोर्ट ने यह माना है कि अनास्तासिया की ओर से पेश किए गए दस्तावेजों में वसीयत की वैधता का प्रारंभिक सबूत है और मामला काफी हद तक उनके पक्ष में है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में फैसला आने से पहले कोई भी ट्रांसफर हुआ तो अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है। हालांकि, कोर्ट ने साफ किया है कि यह आदेश अस्थायी है और इसे अंतिम फैसले के तौर पर नहीं देखा जाए।

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