Hindi Film Dialogues: समाज को सिनेमा बहुत प्रभावित करता है। यह तथ्य अच्छे और बुरे दोनों संदर्भों में है और भाषा के संबंध में भी। सिनेमा की भाषा में हर शब्द और संवाद का अपना अलग असर होता है। अगर समाज में किसी शब्द, वाक्य या विचार को चलन में लाना है, तो उसका फिल्मों में प्रयोग करके उसको लोकप्रिय बनाया जा सकता है। ऐसे कई शब्द और संवाद हैं, जो सिर्फ सिनेमा की वजह से चलन में आए हैं।
आशय यह कि सिनेमा के संवादों की भाषा के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वास्तव में हम सिनेमा की भाषा से फिल्म के पात्रों के व्यवहार को समझते हैं और दृश्यों से कहानी को। फिल्म देखने के बाद तो कई संवाद हमारी बोल-चाल का हिस्सा तक बन जाते हैं। ऐसे ही कुछ फिल्मों के संवाद फिल्म इतिहास में बहुत ज्यादा चर्चित हुए हैं। फिल्म के कुछ संवाद लोगों की जुबान पर ऐसे चढ़ गए, जैसे उन्हीं के लिए लिखे गए हों।
पुराने दौर से जारी है सिलसिला...
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कहानी फिल्म की जान होती है। कहानी ही फिल्म में रंग भी भरती है। लेकिन उसी कहानी में अगर सटीक और प्रभावी संवादों का सहारा मिल जाए तो फिल्म की पहचान सालों तक बनी रहती है। हालांकि अब फिल्मों में याद रह जाने लायक संवाद कम ही सुनाई देते हैं।
आजादी से पहले जरूर कुछ फिल्में सिर्फ संवादों की वजह से ही चर्चित हुई थीं। सोहराब मोदी की ‘पुकार’ और ‘सिकंदर’ ऐसी ही फिल्में थीं। इन फिल्मों में दर्शक को देश प्रेम के प्रति जज़्बात पैदा करने की गजब की ताकत थी। बीआर चोपड़ा की ‘कानून’ और ‘इंसाफ का तराजू’ में संवादों से ही कानून की कमियों को उभारा गया था।
डायलॉग्स से मिली फिल्मों को पहचान
कुछ फिल्में तो सिर्फ उनके संवादों के कारण ही आजतक याद की जाती हैं। ऐसी फिल्मों में ‘मुगले आजम’, ‘शोले’, ‘दीवार’ सबसे प्रमुख हैं। पृथ्वीराज कपूर द्वारा ‘मुगले आजम’ में बोला गया संवाद ‘सलीम की मोहब्बत तुम्हें मरने नहीं देगी और हम तुम्हें जीने नहीं देंगे।’ इसी तरह ‘शोले’ का डायलॉग ‘तेरा क्या होगा कालिया!’ और ‘कितने आदमी थे?’ और इसी तरह ‘दीवार’ का डायलॉग ‘मेरे पास मां है।’ ऐसे संवाद हैं, जिनको सुनते ही पूरी फिल्म याद आ जाती है। सहजता से बोले गए इन संवादों ने फिल्मों को कालजयी बनाने में खास योगदान दिया।
ये डायलॉग्स भी हुए पॉपुलर
अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘डॉन’ का संवाद ‘डॉन का इंतजार तो ग्यारह मुल्कों की पुलिस कर रही है, लेकिन डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है...’ आज भी सुनाई देता है, तो आंखों के सामने अमिताभ का शातिर चरित्र घूम जाता है। शत्रुघ्न सिन्हा जब अपने करियर के शिखर पर थे, तब ‘कालीचरण’ और ‘विश्वनाथ’ के संवाद गली-गली में सुनाई देते थे और ये आज भी उनकी पहचान बने हुए हैं।
शाहरुख खान का ‘बाजीगर’ में बोला गया संवाद, ‘कभी-कभी कुछ जीतने के लिए कुछ हारना पड़ता है और हार के जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं।’ फिल्म के पूरे कथानक का निचोड़ता है। ऐसा ही सलमान खान का ‘वॉन्टेड’ में डायलॉग ‘एक बार जो मैंने कमिटमेंट कर दी, फिर तो मैं अपने आपकी भी नहीं सुनता।’ बहुत पॉपुलर हुआ। सनी देओल का ‘दामिनी’ का संवाद ‘तारीख पर तारीख’ और ‘यह ढाई किलो का हाथ किसी पर पड़ जाता है तो आदमी उठता नहीं, उठ जाता है।’ दर्शक आज भी खूब दोहराते हैं।
डायलॉग्स ने बना दी इमेज
संवादों का जोरदार असर तभी अच्छा होता है, जब उसे उसी शिद्दत से बोलने वाला एक्टर भी मिले। तभी हर संवाद चरित्र की पहचान से जुड़ता भी है। राजकुमार, शत्रुघ्न सिन्हा और नाना पाटेकर के संवादों में अकड़ की झलक देखी गई है। लेकिन, राजकुमार के ‘पाकीज़ा’ में बोले गए उनके एक संवाद ने उनकी पहचान ही बदल दी थी। वो संवाद था ‘आपके पैर देखे, बहुत हसीन हैं। इन्हें जमीन पर मत उतारिएगा मैले हो जाएंगे।’ इसी तरह रोमांटिक हीरो राजेश खन्ना के भी कुछ संवाद कालजयी बन गए। जैसे ‘आनंद’ का संवाद ‘तुझे क्या आशीर्वाद दूं बहन, यह भी तो नहीं कह सकता कि मेरी उम्र तुझे लग जाए।’ या फिर ‘अमर प्रेम’ का संवाद ‘पुष्पा, आई हेट टियर्स।’
विलेन के पॉपुलर डायलॉग
अजित, प्रेम चोपड़ा और अमरीश पुरी के बोले गए हर संवाद में क्रूरता का अंदाज झलकता था। प्रेम चोपड़ा का ‘बॉबी’ में बोला गया संवाद कितना सहज है ‘प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा।’ लेकिन उनकी अदायगी की क्रूरता ने इसे यादगार बना दिया। ‘कालीचरण’ में अजित का संवाद ‘सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है’ और ‘मिस्टर इंडिया’ में अमरीश पुरी का ‘मोगैंबो खुश हुआ।’ भी अपने अलग अंदाज की वजह से यादगार बना हुआ है।
एक्ट्रेसेस के यादगार डायलॉग्स
यादगार संवाद सिर्फ हीरो के हिस्से में ही नहीं आए, कुछ हीरोइनों के संवाद भी दर्शक भूल नहीं पाए। जैसे ‘दबंग’ में सोनाक्षी सिन्हा का संवाद ‘थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब प्यार से लगता है।’ इसी तरह ‘द डर्टी पिक्चर्स’ में विद्या बालन का डायलॉग, ‘फिल्म तीन वजह से चलती है एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट’ लोकप्रिय हुआ। ‘ओम शांति ओम’ में दीपिका पादुकोण के संवाद ‘एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू’ से फिल्म में दीपिका के अंदाज का सहज पता लग जाता है। ‘गैंगस्टर’ में कंगना रनोट का संवाद ‘सपनों को देखना और सपनों का पूरा हो जाना बहुत अलग बातें हैं।’
(प्रस्तुति- हेमंत पाल)