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Ashwagandha Farming: अश्वगंधा का पौधा आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोग की जाने वाली लोकप्रिय जड़ी बूटी है। इसके बीज, फल और जड़ का प्रयोग कई औषधीय दवाइयां बनाने में किया जाता है।

Ashwagandha Farming: अश्वगंधा का पौधा आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोग की जाने वाली लोकप्रिय जड़ी बूटी है। इसके बीज, फल और जड़ का प्रयोग कई औषधीय दवाइयां बनाने में किया जाता है। इसका इस्तेमाल तनाव और चिंता दूर करने के अलावा कई बीमारियों में किया जाता है। अच्छा मुनाफा कमाने लिए देश में किसान परंपरागत फसल के अलावा मेडिसिनल फसल की खेती भी कर रहे हैं। सरकार भी औषधीय खेती के लिए किसानों को सब्सिडी और प्रोत्साहन कर रही है। अश्वगंधा की खेती को ठण्ड की आवश्यकता होती है, इसलिए इसकी खेती सितंबर महीने में की जाती है। देश में इसकी खेती उत्तर भारत में अधिक मात्रा में की जाती है। विश्वभर में अश्वगंधा की 3000 प्रजातियां हैं। भारत में अश्वगंधा की 2 प्रजातियां पाई जाती है। बाजार में अश्वगंधा की कीमत 70 से 80 रूपये कि.लो. के आसपास बताई जाती है।

अश्वगंधा खेती की प्रक्रिया
इसकी खेती के लिए लाल मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। इसके अलावा दोमट मिट्टी, काली मिट्टी में भी इसकी ऊपज की जाती है। खेत की जुताई कल्टीवेटर में पाटा लगाकर 2-3 बार करें, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो सके। जून महीने में बीज की बुआई कर दें और बुआई के बाद पानी से सिंचाई कर दें। ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे, इससे सप्ताहभर में पौधे अंकुरित हो जाएंगे। 8 से 12 महीने पुराने बीज में ऊर्वरक क्षमता घटकर 70 से 80 प्रतिशत हो जाती है। अच्छी उपज के लिए आई. ए. ए. या जी. ए. 03 का इस्तेमाल करना चाहिए। इसका पौधा छह सप्ताह में रोपण के लिए तैयार हो जाता है। खेत में नाली बनाकर पौधा रोपण 5 से.मी. के फासले में करना चाहिए। अच्छी उपज के लिए गोमूत्र और गोबर खाद का प्रयोग जरूरी है। कुछ शोध के अनुसार जिब्रेलिक एसिड के इस्तेमाल से जड़ों के विकास में अच्छे परिणाम मिलते हैं। पौधा रोपण के बाद पहली गुड़ाई 25-30 दिन में और दूसरी गुड़ाई- सफाई 45-50 दिन बाद करना चाहिए। इसमें मिट्टी का पीएच मान 7.5 से 8.0 खेती के लिए उपयुक्त माना गया है। वहीं तापमान 20 से 35 डिग्री के बीच फसल के लिए अच्छा होता है। 

देश में कहां की जाती है खेती
अश्वगंधा की खेती उत्तर-भारत क्षेत्र के राजस्थान, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश के अलावा हिमाचल प्रदेश के किसान खेती करते हैं। मध्यप्रदेश के नीमच, मनसा, मंदसौर, मानपुरा, जावड़ और राजस्थान के कोटा और नागौर जिले के ग्रामीण अंचलों में इसकी खेती बड़े पैमाने में की जाती है। सबसे अधिक मात्रा में अश्वगंधा की खेती मध्यप्रदेश और राजस्थान में होती है।

अश्वगंधा के सेवन से लाभ
इस पौधे के पत्ते, जड़, फल, बीज और तना का उपयोग इलाज में किया जाता है। अश्वगंधा के पत्ते और जड़ का पेस्ट बनाकर दवाइयों में इस्तेमाल करते है। इसका उपयोग चिंता और तनाव दूर करने में किया जाता है। इसके 2-4 ग्राम के सेवन से आंखों की रोशनी बढ़ाने, गला रोग, टीबी रोग, खांसी, चेस्ट दर्द, पेट की बीमारी, कब्ज समस्या, गर्भधारण, ल्यूकोरिया, इंद्रिय दुर्बलता, गठिया रोग, कमर दर्द, नीद न आने की समस्या, चोट में सहायक, त्वचा रोग, शारीरिक कमजोरी, रक्त विकार, बुखार उतारने में सहायक होता है। इसका सेवन पेस्ट और पाउड़र के रूप में अलग-अलग रोगों के अनुसार शहद, घी, गुनगुने जल, दूध के साथ लिया जाता है। इस औषधीय का भारतीय चिकित्सा पध्दतियों में काफी किया जाता है। इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह भी ले सकते हैं।

मुनाफा
किसानों के मुताबिक फसल तैयार होने के बाद पत्ते, तना, जड़ और बीज सभी को अलग-अलग कीमत में बेचा जाता है। इसका विक्रय औषधीय कंपनियां और कृषि मंडी में किया जाता है। अच्छे किस्म के अश्वगंधा की कीमत भी अच्छी मिलती है। एक एकड़ में अश्वगंधा की खेती करने पर करीब 5 क्विंटल के आसपास फसल होती है। एक क्विंटल अश्वगंधा की कीमत 8000 रूपये के आसपास की बताई गई है। किसान इस फसल की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। 

इक्षांत उर्मलिया

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