FOSWAL Literature Festival : नई दिल्ली स्थित एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर के परिसर में रविवार को 65वें फोसवाल महोत्सव का शानदार आगाज हुआ। इसमें नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और मालदीव से आए शिक्षाविद् और सहित्यकारों ने विचार साझा किया। सार्क देशों के रिश्तों और वैश्विक घटनाक्रमों से इसके असर पर चिंता जताई। इस दौरान सार्क अवार्ड भी वितरित किए गए।
फोसवाल महोत्सव का आयोजन फाउंडेशन ऑफ सार्क राइटर्स एंड लिटरेचर ने किया है। 4 दिवसीय महोत्सव की शुरुआत फाउंडेशन की चेयरपर्सन पद्मश्री अजीत कौर के स्वागत भाषण से हुई। उन्होंने बताया कि सार्क देशों की कला और साहित्य को एक मंच पर लाने वाला यह एक लोकप्रिय कार्यक्रम है। इसमें शामिल सभी आगंतुकों का स्वागत किया।
धरती के अंधाधुंध दोहन पर जताई चिंता
- पद्मश्री अजीत कौर ने सार्क देशों के गहरे रिश्ते को रेखांकित करते हुए बताया, सार्क देशों की सीमाओं के मध्य हम नदियों समुद्र, मानसून, सभ्यता और संस्कृति को ही नहीं बांटते, बल्कि हमारी पीड़ाएं भी एक जैसी हैं। इस पीड़ा को दूर करने के लिए सभी देशों को साथ आना होगा।
- अजीत कौर ने धरती के अंधाधुंध दोहन पर पीड़ा व्यक्त की है। कहा, बिना सोचे समझे उपजाऊ जमीन का उत्खनन, पेड़ों की बेतहाशा कटाई ने पक्षियों और जानवरों की अनेक प्रजातियों को खतरे में डाल दिया है। नीति निर्माताओं से पर्यावरण संकट से निपटने सही और कारगर नीतियां बनाने का अनुरोध भी किया।
- पद्मश्री अजीत कौर ने फोसवाल के अब तक के सफर से भी अवगत कराया। साथ ही अपने पाकिस्तानी और अफगानिस्तानी साथियों की गैर मौजूदगी पर दुख व्यक्त किया। जस्टिस विनीत कोठारी, एमएल लाहोती, अनिल सूद ने पर्यावरण संरक्षक पर अपने विचार व्यक्त किए।
धरती को मां मानते थे गुरुनाकदेव
संत बलबीर सिंह सीचेवाल ने पंजाब की काली बई नदी को साफ करने के पीछे अपनी प्रेरणा से रूबरू कराया। नदी के ऐतिहासक और धार्मिक महत्व पर चर्चा करते बताया कि गुरुनानक देव पानी को पिता और धरती को मां मानते थे। इसलिए नदियों को बचाना और उन्हें साफ रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। जब कोई नदी प्रदूषित होती है तो उसका लोगों से नाता टूट जाता है।
प्रकृति साथ नहीं जिएं न कि दखल दें: लाहोती
एमएल लाहोती ने कहा, पुर्तगाल ने बाहरी पर्यटकों को टैक्स लगाया था। उनकी यह नीति कई अन्य देशों ने भी अपनाया। ताकि, पर्यटकों की संख्या सीमित हो सके। स्पष्ट है कि लोग प्रकृति के साथ नहीं जीते, बल्कि प्रकृति में दखल देते हुए रह रहे हैं।
प्रकृति की रक्षा को बने सस्टेनेबल मॉडल
जस्टिस विनीत कोठारी ने पर्यावरण संरक्षण की दिशा में सुप्रीम कोर्ट के बड़े फैसलों की चर्चा की। बताया कि प्रकृति की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं। हमें ऐसा सस्टेनेबल मॉडल तैयार करने की जरूरत है, जहां प्रकृति और इंसान दोनों रह सकें।
जंग के खिलाफ उठाएं मुखर आवाज़: अनिल सूद
अनिल सूद ने बताया कि युद्ध देश की रक्षा के नाम पर लड़े जाते हैं, लेकिन खामियाजा जनता को भुगतना पड़ता है। वर्तमान के युद्धों से सार्क देश सीधे तौर पर प्रभावित नहीं हैं, लेकिन बम और बारूद से हवा-पानी और मिट्टी प्रदूषित होती है। जो सीमाओं में नहीं रहते। सर्वाधिक कार्बन उत्सर्जन बम और बारूद से होता है। इससे धरती का तापमान और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या बढ़ती है। जंग के खिलाफ मुखर आवाज़ उठानी होगी।
लंच ब्रेक के बाद काव्य पाठ
लंच ब्रेक के बाद काव्य पाठ हुआ। इसकी अध्यक्षता रमाकृष्णा पेरुगु ने की। प्रो सुकृता पॉल, गौतम दास गुप्ता, डॉ मौली जोसेफ, ट्रिना चक्रबोर्थी और भूटान के चडोर वांगमो और मालदीव के इब्राहिम वहीद ने अपनी कविताएं पढ़ी।
विकास का विनाशकारी मॉडल
दूसरा और तीसरा सत्र पेपर और फिक्शन रीडिंग के नाम रहा। पूनम ज़ुत्सी ने अजीत कौर की कहानी सुनाई। अमरेंद्र खटुआ ने अपना पेपर में बताया कि युद्ध कैसे लोगों को तबाह करते हैं। चौंकाने वाले आंकड़े भी प्रस्तुत किए। बताया कि विकास के विनाशकारी मॉडल और युद्ध से हर साल 1.4 डिग्री तापमान बढ़ रहा है।
खून के रिश्तों की मार्मिक कहानी
प्रो सीमा जैन ने कहानी बॉड्स ऑफ़ लव पढ़ी। यह खून के रिश्तों के निरंतर निरर्थक होने की मार्मिक कहानी है। केवी डोमिनिक ने भी प्रकृति पर केंद्रित कहानी सुनाई।
सार्क अवार्ड से नवाजा
सार्क एनवायरनमेंट अवार्ड वितरित किए गए। संत बलबीर सिंह सीचेवाल, डॉ वंदना शिवा, जस्टिस विनीत कोठारी, एमएल लाहोती, अनिल सूद और कमल कश्यप को यह सम्मान दिए गए। डॉ तारा गांधी भट्टाचार्य, प्रो शेहपार रसूल, डॉ अनामिका, डॉ वनिता, अरुंधति सुब्रमण्यम और डॉ थमीरा मंजूवाले, बिदान आचार्य को भी सार्क लिटरेचर अवार्ड से नवाजा गया।
पुस्तकों का विमोचन
एकेडमी ऑफ़ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर के वाईस प्रेजिडेंट देव प्रकाश चौधरी ने पद्मश्री अजीत कौर के सानिध्य में वर्सेज अंवेल्ड, मेमोरी कीपर्स सहित अन्य पुस्तकों का विमोचन किया। डॉ अमिता जोसफ ने धन्यवाद ज्ञापन किया।