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प्रेगनेंसी के दौरान क्या खाएं और क्या नहीं, यह सवाल अधिकतर महिलाओं को परेशान करता है। अगर आप प्रेगनेंट हैं और आप भी  कुछ मिथ्स को लेकर परेशान हैं, तो यहां हम बता रहे हैं इन मिथ्स से जुड़े मेडिकल फैक्ट्स के बारे में।

Pregnancy Diet Plan: गर्भवती महिलाओं को खान-पान के मामले में लोग कई तरह की सलाह देते हैं कि उन्हें क्या खाना चाहिए और क्या नहीं? इस संबंध में सही जानकारी ना होने के कारण कई बार बहुत कंफ्यूजन की स्थिति हो जाती है। इससे बचने के लिए जरूरी है कि डॉक्टर या डाइटीशियन से कंसल्ट कर मिथ्स के फैक्ट चेक कर लें।

मिथ: पपीता और अन्नानास जैसे ठंडे फलों का सेवन नहीं करना चाहिए।
फैक्ट: कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि ऐसे फलों के सेवन से मिसकैरेज की आशंका बढ़ जाती है, लेकिन यह आशंका निराधार है। इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि इन फलों का सेवन गर्भस्थ शिशु के लिए नुकसानदेह होता है। प्रेगनेंसी के दौरान हर तरह के मौसमी फलों की डेली कम से कम चार सर्विंग जरूर लेनी चाहिए। यह पोषण के लिए जरूरी हैं।

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मिथ: प्रेगनेंसी के दौरान विटामिंस और मिनरल सप्लीमेंट्स जरूरी हैं। 
फैक्ट: यह बात कुछ हद तक सही है। प्रेगनेंसी के फर्स्ट ट्राइमिस्टर में फॉलिक एसिड का सेवन जरूरी माना जाता है। वैसे तो गर्भवती स्त्री प्रोटीनयुक्त संतुलित और पौष्टिक आहार लें तो उनको अलग से कोई सप्लीमेंट लेने की जरूरत नहीं होती, लेकिन कुछ मामलों में सिचुएशन अलग होती है। जैसे अगर कोई महिला वेजीटेरियन है या मॉर्निंग सिकनेस की वजह से सही से डाइट नहीं ले पा रही हैं या उसकी दो प्रेगनेंसीज के बीच में अंतराल कम हो, तो उनको न्यूट्रिशन के लिए सप्लीमेंट्स लेने की जरूरत होती है। लेकिन डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही इनका सेवन करना चाहिए।

मिथ: मछली या सी फूड खाने से शिशु को स्किन एलर्जी होती है। 
फैक्ट: यह काफी पुरानी धारणा है। इस बात का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि प्रेगनेंसी के दौरान मछली या सी फूड खाने से शिशु को स्किन एलर्जी हो सकती है। मछली या सी फूड प्रोटीन, आयरन और जिंक के अच्छे सोर्स माने जाते हैं। ये गर्भस्थ शिशु के डेवलपमेंट में सहायक होते हैं। इनमें मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड शिशु की आंखों और ब्रेन के लिए फायदेमंद होता है। हां, सी फूड या मछली खाने से पहले इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि उसे अच्छी तरह साफ करने के बाद देर तक पकाया गया हो। इसे ताजा ही खाना बेहतर है। 

मिथ: चाय-कॉफी के सेवन से शिशु त्वचा की रंगत काली होती है। 
फैक्ट: इस बात का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि गहरे रंग की चीजों के सेवन से शिशु की त्वचा की रंगत काली होती है। त्वचा की रंगत का संबंध आनुवंशिक कारणों से होता है, खान-पान से इसका कोई संबंध नहीं है। हां, ज्यादा चाय-कॉफी पीने से गैस और एसिडिटी जैसी प्रॉब्लम हो सकती हैं। इससे बचने के लिए रोजाना दो कप से ज्यादा चाय या कॉफी का सेवन नहीं करना चाहिए।

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मिथ: डिब्बाबंद या फ्रोजन फूड प्रेगनेंसी में सेफ नहीं होते हैं।  
फैक्ट: यह बात बहुत हद तक सही है। फूड आइटम को डिब्बाबंद करने की वजह से इसमें फोलेट और विटमिन सी जैसे पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसमें मौजूद नमक और प्रिजरवेटिव सेहत के लिए नुकसानदेह होते हैं, इसलिए गर्भावस्था के दौरान डिब्बाबंद या फ्रोजन फूड आइटम को अवॉयड किया जाना चाहिए।

मिथ: प्रेगनेंसी के दौरान दोगुना खाना चाहिए। 
फैक्ट: गर्भस्थ शिशु के बेहतर डेवलपमेंट के लिए न्यूट्रिएंट्स की जरूरत होती है, इसलिए सामान्य से कुछ अधिक मात्रा में भोजन करना सही रहता है, लेकिन दोगुना खाने का कोई लॉजिक नहीं है। दोगुना या बहुत ज्यादा खाने से प्रेगनेंसी के दौरान डायबिटीज की समस्या हो सकती है। गर्भस्थ शिशु का वजन सामान्य से अधिक हो सकता है, इससे नॉर्मल डिलीवरी में रुकावट पैदा हो सकती है। इससे बेहतर यही होगा कि जितनी भूख हो उतना ही खाएं। बैलेंस और न्यूट्रिशस डाइट लें।

[यह जानकारी डॉ.अदिति शर्मा डाइटीशियन (मणिपाल अस्पताल, एनसीआर) से बातचीत पर आधारित है।]

प्रस्तुति: विनीता

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