Parenting Tips: किशोर अवस्था की उम्र किसी भी बच्चे के लिए काफी चैलेंजिंग होती है। इस उम्र में शरीर में आने वाले हार्मोनल बदलाव उनके व्यवहार पर भी असर डालते हैं। कई बच्चे बेहद शांत होते हैं लेकिन टीनएज में आते ही उनके बिहेवियर में चेंज नजर आने लगते हैं। कई बच्चे अपने माता-पिता की कही छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा और बहस करने लगते हैं। बच्चों का बदलता एटिट्यूड पेरेंट्स को भी प्रभावित करता है। कई बार बच्चे बड़ों की इंसल्ट भी करने लगते हैं। ऐसे में जरूरी है कि उन्हें सही तरीकों से समझाइश दी जाए, जिससे वे बागी भी न हों और उनके नेचर में भी अंतर दिखाई देने लगे।
पेरेंटिंग वेबसाइट parentingforbrain के अनुसार, टीनएजर बच्चों को डांटने या फटकारने की बजाय उनसे समझदारी से पेश आना जरूरी होता है। बच्चों को गुस्से के बजाय तार्किक ढंग से समझाने की कोशिश करना चाहिए। आइए जानते हैं टीनएज बच्चों को किस तरह से हैंडिल किया जा सकता है।
दोस्ताना व्यवहार - कहते हैं कि बाप का जूता जब बेटे के पैर में आने लगे तो उसके साथ दोस्ताना व्यवहार शुरू कर देना चाहिए। टीनएज ऐसी ही होती है जब माता-पिता को अपने बच्चों से फ्रेंडली पेश आना चाहिए। बच्चों पर अगर आप बात-बात में चिल्लाएंगे तो वे आपको पलटकर जवाब देने लगेंगे। ऐसे में आपका गुस्सा बच्चों को और भी ज्यादा गुस्सैल और हिंसक बना सकता है। इसके बजाय बच्चों को अपने पास बिठाकर प्यार से और शांति से समझाएं।
बदलाव पर दें ध्यान - टीनएजर बच्चों में होने वाले बदलावों पर पेरेंट्स को लगातार नजर रखनी चाहिए। कुछ पैरेंट्स बच्चों में होने वाले बदलाव सामान्य मानकर ध्यान नहीं देते हैं। ऐसे में कई बार बच्चे अपनी समस्या में खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं और वे गलत रास्ते पर जा सकते हैं। ऐसे में उनके लिए कुछ नियम बनाएं और सुनिश्चित करें कि बच्चे उन नियमों का सख्ती से पालन करें।
संगत पर दें ध्यान - टीनएज में बच्चों के बिगड़ने का सबसे ज्यादा खतरा होता है। ऐसे में पेरेंट्स के लिए ये जरूरी है कि वे अपने बच्चे की संगत पर विशेष ध्यान दें। बच्चा किन दोस्तों से मिल रहा है, किसके साथ घूम रहा है या ज्यादा वक्त बिता रहा है, इस पर नजर रखें। चाहें तो बच्चे के दोस्तों को घर बुलाकर उनसे बात करें और उन्हें समझें। इसके साथ ही बच्चों के स्कूल और कोचिंग के टीचर्स से मिलकर भी अपडेट लेते रहें।
आत्मविश्वास कम न होने दें - टीनएज में शरीर में तेजी से हार्मोनल बदलाव होते हैं, यही वजह है कि बच्चे का मूड तेजी से स्विंग होता है। इस उम्र में छोटी सी असफलता भी बच्चे के आत्मविश्वास को काफी गिरा सकती है और उसे डिप्रेशन में ला सकती है। इसीलिए जरूरी है कि अगर बच्चा किसी काम में असफल होता है तो उसे डांटने या लेक्चर देने के बजाय उसे सांत्वना देकर दोबारा नई शुरुआत करने का हौसला दें।