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Parenting Tips: कई बार बच्चे अपनी गलती के लिए खुद को दोषी मानने लगते हैं, मनोविज्ञान की भाषा में इसे टॉक्सिक शेम कहते है। ऐसा व्यक्तित्व बच्चों के विकास के लिए सही नहीं है। वे हीन भावना के शिकार हो जाते हैं।

Parenting Tips: अगर आपका बच्चा अपनी गलती मानकर उसके लिए आपसे माफी मांगता है तो यह अच्छी बात है, लेकिन छोटी-छोटी बातों के लिए खुद को दोषी मानकर हमेशा अपने मन में ग्लानि की भावना रखने की आदत बच्चे को भावनात्मक रूप से कमजोर बना देती है। इससे उनके मन में हीनभावना घर कर सकती है, जहां उनकी कोई गलती नहीं होती। ऐसी स्थिति में भी वह खुद को दोषी मानने लगता है। हमें बच्चों को इस मन:स्थिति से बचाना चाहिए।

क्या है वजह
सबसे पहले हमें यह समझना चाहिए कि बच्चों में आखिर ऐसी मन:स्थिति क्यों पैदा होती है? दरअसल, जिन बच्चों के साथ पैरेंट्स बहुत सख्त व्यवहार करते हैं, हर बात पर रोक-टोक करते हैं, दूसरों के सामने डांटते हैं, ऐसे बच्चों को टॉक्सिक शेम की प्रॉब्लम हो जाती है। यह भी सही नहीं है, बच्चे की हर गलती को उसके व्यक्तित्व के साथ जोड़कर देखा जाए।

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उदाहरण के लिए अगर शीशे का गिलास बच्चे के हाथ से गिरकर टूट जाए तो उसे टोकने के बजाय यह कहना, ‘तुम तो हो ही लापरवाह, हमेशा ऐसे ही चीजें तोड़ते रहते हो।’ यह सुनकर उसके कोमल मन में यह बात बैठ जाएगी, ‘मैं बहुत लापरवाह हूं, कोई भी काम ढंग से नहीं कर सकता हूं।’ इस तरह वह हर गलती के लिए खुद को दोषी समझने लगेगा। कई बार पैरेंट्स अनजाने में बच्चों के साथ बहुत ज्यादा रोक-टोक करते हैं, डांट देते है, जिससे टॉक्सिक शेम की समस्या होती है।

क्या है नुकसान
टॉक्सिक शेम की वजह से बच्चों का मनोबल टूट जाता है। दोस्तों और भाई-बहनों से अपनी तुलना करके वे खुद को कमतर समझने लगते हैं। उनके मन में हीनभावना  जन्म लेने लगती है, जिससे उनका आत्मविश्वास कमजोर पड़ने लगता है। ऐसे बच्चे नए दोस्त बनाने से झिझकते हैं। इनका समाजीकरण सही ढंग से नहीं हो पाता, इसलिए वे अकेले गुमसुम और उदास रहते हैं। अपनी उदासी दूर करने के लिए ऐसे बच्चे सोशल मीडिया के साथ ज्यादा वक्त बिताने लगते हैं। पढ़ाई और एक्टिविटीज में पिछड़ने लगते हैं।

कैसे करें बचाव
हर बच्चा दूसरे से अलग होता है, इसलिए सभी बच्चों की परवरिश के लिए एक समान नियमों का पालन सही नहीं है। अपने बच्चे की क्षमता को पहचानें और उसी के अनुरूप उससे उम्मीदें रखें। बच्चे से बहुत ज्यादा अपेक्षा रखने से अगर वह उन्हें पूरा नहीं कर पाता है तो उसे घबराहट होने लगती है, जिससे वह टॉक्सिक शेम का शिकार हो जाता है। समय के साथ अब पैरेंटिंग का तरीका बदलना जरूरी है, इसलिए बच्चे के साथ बातचीत के दौरान शब्दों का चयन सोच-समझ कर करें। बच्चे के हर अच्छे प्रयास की प्रशंसा जरूर करें। सहज बातचीत के जरिए उसके साथ आपसी विश्वास का रिश्ता कायम करें, उसे भरोसा दिलाएं कि आप उसकी भलाई के लिए ही उसे टोकती और समझाती हैं।

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इससे वह खुलकर आपके साथ अपनी बातें शेयर करेगा, समाधान के लिए आपके पास अपनी समस्याएं लेकर आएगा। अगर कभी बच्चे की कोई बात पसंद नहीं आती है तो बाद में उसे प्यार से समझाएं। उसके व्यवहार पर नजर रखें, अगर वह अकसर डरा-सहमा या उदास रहता है तो उसके साथ बातें करके उसकी परेशानी की वजह जानकर उसे दूर करने की कोशिश करें। परीक्षा में कम अंक लाने पर दोस्तों से तुलना करके उसे कभी ना डांटें बल्कि प्यार से समझाएं कि अगर तुम कोशिश करते रहोगे तो अगली बार तुम्हारे रिजल्ट में जरूर सुधार होगा। 

बनाए रखें धैर्य
बच्चों को टॉक्सिक शेम की प्रॉब्लम से बचाने के लिए धैर्य बहुत जरूरी है, इसलिए प्रतिकूल परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखें। अगर इन प्रयासों के बावजूद बच्चे के व्यवहार में कोई सकारात्मक बदलाव नजर ना आए तो किसी काउंसलर से सलाह लें। समय रहते बच्चे में सुधार जरूरी है।

(चाइल्ड काउंसलर पूनम कामदार से बातचीत पर आधारित)

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