Raksha Bandhan 2024: एक घर में साथ-साथ पलने-बढ़ने वाले भाई-बहन का रिश्ता आपस में बहुत खास होता है। इसमें एक-दूसरे पर भरोसा, स्नेह, साथ-साथ परिपक्व होने की साझी गति और तमाम प्रतिद्वंद्विताओं से गुजरकर, प्रतिद्वंदिताओं से परे का एहसास होता है। कुछ लोगों को जरूर लग सकता है कि रक्षाबंधन में बॉन्डिंग का पारंपरिक धागा अब जीवंत प्रतीक नहीं रहा। लेकिन ऐसा नहीं है। राखी का यह धागा आज भी भाई-बहन के प्रेम, एक-दूसरे के लिए भरोसे और समर्पण का प्रतीक है। इस रिश्ते के केंद्र में मौजूद इस धागे के कारण ही आज भी भाई और बहन का रिश्ता बेहद खूबसूरत, बेहद संवेदनशील और दुनिया के सभी रिश्तों से ज्यादा उदार, खुला हुआ और विविध आयामी है।
भाई पर बहन के सम्मान की जिम्मेदारी
इंसान ने जब से अपनी आधुनिक जिंदगी का सफर शुरू किया है, पुरुषों में हमेशा अपनी प्रकृति के मुताबिक महिलाओं पर जुल्म ढाए हैं। महिलाओं के प्रति पुरुषों के अपराध कभी घटे नहीं बल्कि हर दौर में पहले से ज्यादा बढ़ते ही रहे हैं। आज भी पूरी दुनिया में हर साल महिलाओं के विरुद्ध अपराध की जो करोड़ों वारदातें होती हैं, वे भी पुरुष ही अंजाम देते हैं। ऐसे परिदृश्य में जब महिलाओं के वजूद के लिए पुरुष लगातार खतरा बने हों, भाई-बहन के अनोखे रिश्ते को संबोधित रक्षाबंधन जैसा पर्व, इसी वास्तविकता को चुनौती देने का एक सांकेतिक तरीका है।
रक्षाबंधन के लिए जो भाई अपनी बहन की प्रतीकात्मक सुरक्षा करने की जिम्मेदारी लेता है, वह भी तो एक पुरुष ही है, जो एक महिला यानी अपनी बहन को हर तरह के अपराधों से बचाए रखने, उसकी सुरक्षा करने का संकल्प करता है, तो यह संकल्प भले व्यावहारिक कम लगता हो, लेकिन संवेदना के रूप में इसका आज भी उतना ही महत्व है, जितना तब रहा होगा, जब पहली बार किसी भाई ने अपनी बहन के मान, सम्मान की सुरक्षा की जिम्मेदारी रक्षा के एक धागे के एवज में ली होगी।
भावनात्मक रूप से मजबूत है राखी का धागा
रक्षाबंधन का यह पर्व अपनी इसी ऐतिहासिक और सैद्धांतिक संवेदना के लिए बहुत खास है। सगे भाई-बहन ही नहीं बल्कि इस रिश्ते के दायरे में मुंहबोली बहनें भी आती हैं, जिनकी सुरक्षा का नैतिक दायित्व उनके धर्म भाई लेते हैं, जो पुरुष हैं और उसी पुरुष प्रजाति का हिस्सा हैं, जो आज भी महिलाओं के विरुद्ध अपराध के केंद्र में हैं। रक्षाबंधन के पर्व से जो ऐतिहासिक और पौराणिक कहानियां जुड़ी हुई हैं, उनका भी प्रतीक रूप में यही संदेश है कि यह मामूली सा-धागा भावनात्मक रूप से कितना मजबूत है। रक्षाबंधन का पर्व अपने पूरे देश में मनाया जाता है। कई जगहों पर इसके नाम अलग हो जाते हैं। हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन यह पर्व मनाया जाता है।
पारंपरिक रूप से सावन वह महीना होता है, जब महिलाएं अपनी ससुराल से मायके आती हैं और एक तरह से वे दिन उनके खूब खुशी और उल्लास के दिन होते हैं। इसी सावन के महीने की पूर्णिमा को बहनें अपने भाइयों की कलाइयों पर राखी बांधती हैं। जिन बहनों की शादी हो चुकी होती है और अब वे ससुराल में रहती हैं, तो इस दिन ससुराल से आकर मायके में भाई के हाथ में राखी बांधती हैं या भाई खुद ही उनके पास चला जाता है, इस खास रिश्ते को पूरा करता है।
इंसानी समाज की धरोहर है राखी का पर्व
रक्षाबंधन का त्योहार बहन और भाई के खास जज्बातों से जुड़ा है। इस त्योहार का आज भी यही संदर्भ और यही संकेत है कि हर महिला का कोई न कोई भाई उसे दुनियाभर की परेशानियों से बचाने के लिए खड़ा है। यह इस पर्व की बहुत बड़ी और बहुत मानवीय विशेषता है। यह पर्व दुनियाभर के स्त्री-पुरुषों को संदेश देता है कि पुरुषों का दायित्व महिलाओं की सुरक्षा है और महिलाओं का एक रिश्ता पुरुषों के साथ स्नेह, गरिमा और अटूट अपनेपन का है। इसलिए यह पर्व जीवन जीने के तमाम तौर तरीकों के बदल जाने के बाद भी आज भी इंसानी समाज की धरोहर है।