International Day of Families: हमारे देश-समाज में परिवार की परिभाषा बहुत व्यापक रही है। इसमें परिजन के अलावा वे लोग भी शामिल होते हैं, जिनका हमारे साथ दूर-दूर तक का रक्त संबंध नहीं होता है, लेकिन ये हमारे जीवन में बहुत मायने रखते हैं। आमतौर पर रक्त संबंध वाले परिजनों को ही परिवार माना जाता है। लेकिन इससे परे भी एक परिवार होता है, जिसे हम अपने आस-पड़ोस में और अपने कार्यस्थल पर बनाते हैं। इस परिवार के सदस्यों से भी हमारा गहरा अपनापन होता है।
प्राचीन भारतीय संकल्पना(International Day of Families)
‘वसुधैव कुटुंबकम्’ हमारे सनातन धर्म का मूल संस्कार और विचारधारा रही है। हमारी संस्कृति ने माना है कि संपूर्ण धरती के लोग हमारा परिवार है। इसी परंपरा का अनुसरण करते हुए हमारे यहां परिवार से परे परिवार की महत्ता को समझा गया है, जो कई मायने में परिवार से भी ज्यादा महत्वपूर्ण और उपयोगी साबित होता है।
समाज का एक अंग है परिवार
परिवार केवल वह नहीं, जिसे हम माता-पिता, भाई, बहन, पति, पत्नी, मामा, चाचा या मौसी-बुआ जैसे नामों से संबोधित करते हैं। जब पति और पत्नी को छोड़कर यही संबोधन परिवार से जुदा लोगों के लिए किया जाता है तो वह जाने-अनजाने लोग भी हमारे परिवार का हिस्सा बन जाते हैं। परिजनों से परिवार बनता है और परिवार से बनता है समाज। यही समाज जब परिवार बन जाता है तो इसका महत्व और उपयोगिता परिवार से भी ज्यादा बढ़ जाती है।
परिजन से कम नहीं पड़ोसी
एक दौर था सारा मोहल्ला हमारा परिवार हुआ करता था, सारे अड़ोसी-पड़ोसी हमारे परिजन जैसे थे। ऐसा कहा जाता है कि जरूरत के समय परिजन तो बाद में आते हैं, पहला हाथ पड़ोसी ही बढ़ाता है। समय के साथ-साथ इस व्यवस्था मे बदलाव जरूर आया है, लेकिन यह परंपरा अभी भी जिंदा है।
सहकर्मियों से भी बनता है परिवार
परिवार से परे परिवार का दायरा काफी बड़ा होता है। इसमें एक परिवार मोहल्ले या पड़ोसियों का होता है तो दूसरा परिवार हमारे ऑफिस या दफ्तर का भी होता है। वहां पर भी हम रोजाना सात-आठ घंटे जिनके संग गुजारते हैं, उनके साथ पारिवारिक आत्मीयता पनपना स्वाभाविक ही है।
सुख-दुख के होते हैं साथी(International Day of Families)
एक जमाना था, जब मोहल्ले या कार्यस्थल के किसी व्यक्ति के परिवार में शादी-ब्याह होता था तो पूरा मोहल्ला या दफ्तर वाले एक साथ मिलकर सारे कार्यक्रम में हाथ बंटाते थे और बड़े से बड़ा कार्यक्रम आराम से संपन्न हो जाता था। आज ऐसे कार्यक्रमों का स्वरूप बदल गया है, फिर भी आज जब किसी के यहां मुसीबत आती है तो परिवार से परे वाले परिवार के लोग आगे आकर अपना सहयोग प्रदान करने से पीछे नहीं रहते हैं। यदि कोई बीमार होकर अस्पताल में भर्ती होता है तो पड़ोसी ना केवल आपके कंधे पर हाथ रखता है बल्कि यह भी कहते देखा जा सकता है कि पैसे की जरूरत हो तो हिचकिएगा नहीं। निसंकोच मांग लेना। परिवार से अलग किसी का ऐसा कहना निश्चय ही बहुत संबल देता है।
नए स्वरूप में प्यारी भावनाएं
समय के साथ-साथ परिवार से परे परिवार का स्वरूप बदल रहा है। यह अच्छी बात है कि यह परिवार अब पहले से ज्यादा परिपक्व होने लगा है। इस नए परिवार में फ्लैट और अपार्टमेंट की सोसायटी के सदस्य जॉगिंग क्लब, हास्य क्लब, किटी क्लब के सदस्य परिवार की तरह एक-दूसरे से जुड़ने लगे हैं। ये सदस्य नववर्ष से लेकर तीज-त्योहारो पर पारिवारिक आयोजन कर नए परिवार की गांठ को मजबूत कर परिवार की तरह ही एक-दूसरे का हाथ थाम कर पारिवारिक दायित्व निभा रहे हैं।