Aditya L1 to reach L1 point on 6 january 4 PM: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधन संगठन (ISRO) को सोलर मिशन Aditya L1 अपने मंजिल के करीब पहुंच गया है। यह 6 जनवरी को शाम करीब 4 बजे एल1 लैग्रेंजियन प्वाइंट पर पहुंच जाएगा। कुछ दिनों पहले इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने आदित्य एल 1 के लैग्रेंजियन प्वाइंट एल 1 पर पहुंचने की जानकारी दी थी, लेकिन यह किस समय पहुंचेगा इसके बारे में नहीं बताया था। अब इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने इसका खुलासा कर दिया है। इसरो प्रमुख ने बुधवार को कहा है कि Aditya L1 को लैग्रेंजियन प्वाइंट में 6 जनवरी को शाम 4 बजे के आसपास प्रवेश कराया जाएगा।
क्यों अहम है लैंग्रेंजियन प्वाइंट ?
लैग्रेंजियन प्वाइंट इसलिए अहम है कि यहां पर धरती और सूर्य का गुरुत्वाकर्षण बल एक दूसरे को अपनी ओर खींचता है। दरअसल, आदित्य-एल 1 में सात पेलोड लगे हैं। इनमें से चार पेलोड ऐसे हैं जो सूर्य की ओर बढ़ते समय पड़ने वाले असर को रिकॉर्ड कर रहे हैं । वहीं तीन पेलोड मैग्नेटिक फील्ड और अंतरिक्ष में मौजूद कणों को अध्ययन कर रहे हैं और इसका डेटा जुटा रहे हैं। इससे इसरो को सूर्य के बारे में और ज्यादा जानकारी जुटाने में मदद मिलेगी।
नए साल में मिली सूरज की फुल डिस्क इमेज
ISRO के लिए साल का पहला दिन ही खुशखबरी लेकर आया। 1 जनवरी को Aditya L1 के सोलर अल्ट्रावॉयलेट इमेजिंग टेलिस्कोप (SUIT) ने पहली बार सूरज की फुल डिस्क इमेज कैप्चर किए थे। सभी इमेज 200 से 400 नैनोमीटर के वेवलेंथ में थी। इन तस्वीरों में सूर्य की सतह को 11 अलग-अलग रंगों में नजर आ रहे हैं। इमेजिंग टेलिस्कोप ने इसके साथ ही सूरज की दो सतहों फोटोस्फेयर और क्रोमोस्फेयर की तस्वीरें भी उतारी हैं।
क्या होते हैं लैग्रेंज पॉइंट?
लैग्रेंज पॉइंट को लैग्रेंजियन पॉइंट भी कहा जाता है। यह स्पेस में ऐसे खास पॉइंट हैं जहां दो बड़े ग्रह जैसे कि पृथ्वी और चंद्रमा या पृथ्वी और सूर्य का ग्रैविटी संतुलन बनाते हैं। ये पॉइंट दो प्लेनेट्स को जोड़ने वाली रेखा के समानांतर होते हैं। स्पेस का यह पॉइंट ऐसा है जहां सैटेलाइट या स्पेसक्राफ्ट स्थिर रह सकते हैं। इस पर दोनों बड़े प्लेनेट्स के ग्रैविटी फोर्स का असर नहीं होता। यह साइंटिफिक ऑब्जर्वेशन और कम्युनिकेशन सेटैलाइट्स की पोजिशनिंग के लिहाज से अहम माने जाते हैं।
पृथ्वी-सूर्य के सिस्टम में पांच लैग्रेंज पॉइंट
लैग्रेंजियन पॉइंट का नाम गणितज्ञ जोसेफ-लुई लैग्रेंज के नाम पर रखा गया है। उन्होंने 18वीं शताब्दी के अंत में सेलेस्टियन मेकेनिक्स का अध्ययन करते समय इन विशेष पॉइंट्स की खोज की थी।पृथ्वी-सूर्य के सिस्टम में पांच लैग्रेंज पॉइंट हैं, जिन्हें L1 से L5 तक लेबल किया गया है। इन बिंदुओं में, L1, L2 और L3 दो प्लेनेट्स को जोड़ने वाली रेखा की ओर हैं, जबकि L4 और L5 इनके साथ इक्वीलैटरल ट्राएंगल बनाते हैं। इन पॉइंट्स का इस्तेमाल उनकी ग्रैविटेशनल स्टैबिलिटी के कारण विभिन्न अंतरिक्ष अभियानों और उपग्रह प्लेसमेंट के लिए किया जाता है