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CJI DY Chandrachud: चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने बुधवार (25 सितंबर) को कहा कि भारत के किसी हिस्से को पाकिस्तान नहीं कहा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस श्रीशानंदा की माफी के बाद मामला बंद किया।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार(25 सितंबर) को कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस श्रीशानंदा के खिलाफ चल रहे मामले को बंद कर दिया। यह निर्णय तब लिया गया जब जस्टिस श्रीशानंदा ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को न्याय और न्यायपालिका की गरिमा को ध्यान में रखते हुए बंद करने का फैसला किया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई में पांच जजों की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की।

मुस्लिम बहुल इलाके को "पाकिस्तान" कहने पर विवाद
यह मामला तब शुरू हुआ जब जस्टिस श्रीशानंदा ने बेंगलुरु के एक मुस्लिम बहुल इलाके को "पाकिस्तान" कहा। साथ ही, उन्होंने एक महिला वकील पर आपत्तिजनक टिप्पणी भी की। उनकी ये टिप्पणियां सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गईं, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्वतः संज्ञान लिया। कर्नाटक हाई कोर्ट ने इस मामले की रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जज की माफी को स्वीकार किया।

भारत के किसी हिस्से को पाकिस्तान कहना गलत" - चीफ जस्टिस
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस मामले पर कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, "कोई भी भारत के किसी हिस्से को पाकिस्तान नहीं कह सकता। यह हमारे देश की क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ है।" उन्होंने यह भी कहा कि अदालतों में होने वाली घटनाओं को दबाने की बजाय, उन्हें सार्वजनिक करना चाहिए ताकि न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता बनी रहे। कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीशों को अपने शब्दों का चयन ध्यान से करना चाहिए, खासकर जब वे किसी समुदाय या लिंग के बारे में टिप्पणी कर रहे हों।

जजों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने इस मामले के बाद यह संकेत दिया कि संवैधानिक अदालतों के न्यायाधीशों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश आवश्यक हैं। बेंच ने कहा कि न्यायाधीशों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके बयान अदालत की गरिमा के अनुरूप हों। CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायालय की टिप्पणियों में किसी भी प्रकार की व्यक्तिगत पूर्वाग्रह को जगह नहीं मिलनी चाहिए, खासकर जब यह किसी समुदाय या लिंग से संबंधित हो।

न्यायिक टिप्पणियों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सोशल मीडिया की बढ़ती भूमिका को ध्यान में रखते हुए न्यायिक टिप्पणी पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। सोशल मीडिया पर न्यायालय की गतिविधियों का व्यापक रूप से प्रसार होता है, जिससे न्यायालय की टिप्पणियां जनता के बीच पहुंचती हैं। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता जरूरी है, लेकिन साथ ही, न्यायिक मर्यादा का पालन भी किया जाना चाहिए।

जस्टिस श्रीशानंदा की माफी के बाद मामला बंद
जस्टिस श्रीशानंदा के माफी मांगने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को बंद कर दिया। यह निर्णय न्यायपालिका की गरिमा और न्याय के हित में लिया गया। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले से सीख लेते हुए भविष्य में न्यायिक टिप्पणियों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देशों की जरूरत है ताकि ऐसी विवादास्पद टिप्पणियों से बचा जा सके। यह फैसला न्यायालय की मर्यादा बनाए रखने के उद्देश्य से लिया गया।

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