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Faridabad Constituency Analysis: हरियाणा में लोकसभा चुनाव में फरीदाबाद सीट से बीजेपी ने गुर्जर के खिलाफ गुर्जर का दांव खेला है। इस बीच भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समधी करण सिंह दलाल ने बगावती तेवर दिखाए हैं। ऐसे में यह इस बार इस सीट पर मुकाबला रोमांचक होने की उम्मीद है।

Faridabad Constituency Analysis: हरियाणा में लोकसभा चुनाव में फरीदाबाद सीट से बीजेपी ने गुर्जर के खिलाफ गुर्जर का दांव खेला है। लगभग सेवानिवृत्ति ले चुके पूर्व मंत्री महेंद्र प्रताप को कांग्रेस ने मैदान में उतारा है। हालांकि, महेंद्र प्रताप बेटे के लिए टिकट मांग रहे थे लेकिन पार्टी ने उन्हें ही मैदान में उतारने का फैसला किया है।  पलवल के पूर्व विधायक करण सिंह दलाल ने बागी तेवर दिखा डाली। करण सिंह दलाल एक पहचान और भी कि वे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समधी हैं। दलाल ने पंचायत करके चेतावनी दी है कि अगर कांग्रेस 6 अप्रैल तक टिकट पर कोई निर्णय नहीं लेती है तो वह कुछ बेहद अहम फैसला ले सकते हैं।

क्या करण सिंह दलाल मानेंगे?
ऐसे में इस बात पर निगाहें टिकी हैं कि क्या भूपेंद्र सिंह हुड्डा करण सिंह दलाल को मना पाते हैं या नहीं। फरीदाबाद का चुनाव अब बहुत कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि करण सिंह दलाल क्या फैसला लेंगे।  अगर आज के हालात देखें तो महेंद्र पाल गुर्जर और  कृष्णपाल  गुर्जर के बीच कांटे का टक्कर है। इस सीट पर कृष्णपाल गुर्जर ने पिछले लोकसभा चुनाव में 6 लाख 38 हजार वोटों से जीत हासिल की थी। हालांकि, पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से अब तक राजनीतिक स्थिति काफी बदल गई है।

महेंद्र प्रताप के मैदान में उतरने से गुर्जर वोट बंटने की संभावना बढ़ गई है। वहीं, कई विधानसभा सीटों पर तस्वीर बदल गई है। उदयभान सिंह कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष हैं। हर्ष कुमार भी कांग्रेस के पाले में आ खड़े हैं। वहीं, कृष्णपाल गुर्जर भी किसी से कम नहीं है। सीमा त्रिखा कृष्णपाल गुर्जर के लिए तुरुप का इक्का हैं। ऐसे में चुनाव को जातिगत आंकडा बड़े पैमाने पर असर डाल सकता है।

क्या है फरीदाबाद लोकसभा सीट पर जातिगत समीकरण
जातिगत आंकड़ों के माहिर जोगेंदर कथूरिया ने हरिभूमि के वरिष्ठ पत्रकार मोहिंदर पंडित के साथ बातचीत में जातिगत आंकडों को लेकर विश्लेषण किया है। जोंगेदर कथूरिया के मुताबिक, फरीदाबाद लोकसभा सीट हरियाणा की दूसरी सबसे बड़ी सीट है। यहां पर करीब  गुरुग्राम के बाद दूसरी सबसे बड़ी सीट है। यहां पर 23 लाख 55 हजार वोटर हैं। जातिगत आंकडों की बात करें तो यहां पर 54.2 फीसदी सामान्य जाति के वोटर हैं। 30.4 फीसदी वोटर ओबीसी हैं और 15.4 एससी कैटेगरी के वोटर हैं। जनरल कैटगरी में सबसे ज्यादा 15.6 वोटर जाट जाति हैं, 8.1 फीसदी ब्राह्मण वोटर हैं।

11.25 फीसदी पंजाबी, 5.9 फीसदी बनिया, 5.3 वोटर राजपूत जाति के वोटर, 1.97 फीसदी जट-सिख और 4.7 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। फरीदाबाद लोकसभा क्षेत्र में मेव मतदाताओं को ओबीसी कैटेगेरी में रखा गया है, मेव मतदाता 5.8 फीसदी हैं, 1.56 फीसदी सैनी वोटर, 1.2 फीसदी कुम्हार, 1 फीसद फैन वोटर, 12.8 फीसदी गुर्जर वोटर, यादव वोटर 1.72 फीसदी और लोहार पांचाल कैटेगरी वोटर 1 फीसद तक सिमित हैं। अगर एससी कैटेगरी मतदाता की बात करें तो 8.9 फीसदी रविदासिया वोटर, 4.9 फीसदी बाल्मिकी समाज के वोटर हैं। फरीदाबाद लोकसभा सीट में धानुक वोटर 0.56 फीसद है।

गुर्जर वोट बंटने से कांग्रेस पर हो सकता है असर

नवीन धमीजा ने कहा कि फरीदाबाद सीट से रामचंद्र बैंगा के बाद किसी पार्टी ने जाट पर दांव नहीं खेला है।  रामचंद्र बैंगा फरीदाबाद से करीब तीन बार चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद किसी पार्टी ने जाट प्रत्याशी को चुनावी मैदान में नहीं उतारा। जबकि, फरीदाबाद लोकसभा क्षेत्र में जाट वोटर की संख्या सबसे ज्यादा है। इस बार करण सिंह दलाल कांग्रेस के प्रबल दावेदार थे। करण सिंह दलाल लगातार पार्टी से टिकट मांग कर रहे थे।

करण सिंह दलाल भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समधि ऐसे में भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी यही चाह रहे थे कि उनको टिकट मिले। हालांकि, कांग्रेस हाईकमान ने गुर्जर बिरादरी के ही दूसरे कैंडिडेट कृष्णपाल सिंह को मैदान में उतारा हैं। अब यह समझने की बात है कि बीजेपी ने भी एक जाट बिरादरी के शख्स को मैदान में उतारा है। करणसिंह दलाल भी बगावती तेवर दिखा रहे हैं। ऐसे में जाट वोट बंट सकता है। इसका चुनाव पर काफी असर होगा। 

बहुत ही ज्यादा क्लोज कंटेस्ट होने की संभावना 
रिपोर्टर बिजेंद्र शर्मा का कहना है कि करण सिंह दलाल अपना महत्व दिखाने के लिए प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहे हैं। कृष्णपाल पाल गुर्जर और महेंद्र प्रताप सिंह दोनों ही कद्दावर नेता है। दोनों नेता एक दूसरे के खिलाफ पहले भी चुनाव लड़ रहे हैं। दोनों ही नेता एक दूसरे को एक-एक बार हरा चुके हैं। ऐसे में इस बार काफी क्लोज कंटेस्ट है। पिछले लोकसभा चुनाव में जो परिणाम और मार्जिन देखने को मिला था, वह इस बार चुनाव में देखने को नहीं मिलेंगे। 

देखें हरिभूमि के चुनाव विश्लेषण का पूरा वीडियो:

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