भारत में लोकसभा चुनाव 2024 के लिए मतदान की प्रक्रिया चल रही है। यह चुनाव सात चरणों में पूरा होगा। अभी तक तीन चरणों का मतदान हो चुका है, जबकि चौथे चरण का मतदान 13 मई को होगा। पहले चरण का चुनाव 19 अप्रैल को हुआ था, जबकि सातवें चरण के लिए एक जून को मतदान होना है। इसके बाद 4 जून को चुनाव के नतीजे घोषित किए जाएंगे।
खास बात है कि पिछले सालों के मुकाबले इस साल चुनाव पर सबसे ज्यादा खर्चा किया जा रहा है। बावजूद इसके मतदाताओं की संख्या में लगातार कमी दर्ज की जा रही है। यही कारण है कि न केवल निर्वाचन आयोग बल्कि राजनीतिक दल भी चिंतित हैं। ऐसे में लोगों से अपील की जा रही है कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में मतदान करें। आइये इस खबर में बताते हैं कि मतदान के प्रति आपकी उदासीनता कितनी भारी पड़ती है। सबसे पहले बताते हैं कि निर्वाचन आयोग के लिए एक वोट की कीमत कितनी पड़ रही है।
लोकसभा चुनाव पर कितना खर्चा ?
आजाद भारत का पहला चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 के बीच हुआ था। यह चुनाव 68 चरणों में कराया गया। इस पर 10.50 करोड़ रुपये का खर्चा आया था। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज यानी सीएमएस की रिपोर्ट के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव पर 3870 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में यह खर्चा बढ़कर 50 हजार करोड़ के आसपास पहुंच गया। यही नहीं, इस बार के चुनाव में एक लाख करोड़ करोड़ रुपये का अनुमानित खर्चा बताया गया है। मतलब यह है कि 2019 लोकसभा चुनाव के मुकाबले 2024 लोकसभा चुनाव में खर्चा लगभग दोगुना हो गया है।
रिपोर्ट बताती है कि सब खर्चों को जोड़ा जाए तो एक वोट पर करीब एक हजार रुपये खर्च हो रहे हैं। दुखद पहलु यह है कि इतने खर्च के बावजूद पिछले तीनों चरणों में मतदाताओं की चुनावों के प्रति उदासीनता देखी गई है।
क्यों बढ़ रहा चुनावी खर्चा ?
अब सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसा क्या हो रहा है, जिससे पांच सालों में ही चुनावी खर्चा दोगुना हो गया है। मीडिया रिपोर्ट्स में चुनाव आयोग के अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि मतदाताओं की संख्या और प्रत्याशियों की संख्या बढ़ने के साथ ही पोलिंग बूथों की भी संख्या बढ़ानी पड़ती है। हरियाणा की बात करें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में 80 लाख 56 हजार 896 मतदाता थे, जिनके लिए राज्य में कुल 19433 पोलिंग बूथ बनाए गए।
2024 की बात करें तो नए मतदाताओं के जुड़ने से 19812 पोलिंग बूथ बनाए गए। यही नहीं पोलिंग बूथों की संख्या बढ़ने से ही नहीं बल्कि चुनाव कर्मचारियों का मेहनताना भी बढ़ गया है। ईवीएम के रखरखाव, मतदाता परिचय पत्र, वोटिंग पर लगने वाली इंक, चुनावकर्मियों के खाने पीने की व्यवस्था, सुरक्षा इंतजाम के साथ ही मतदाताओं को वोटिंग के प्रति जागरूक करने के लिए भी खर्चा किया जाता है।
चुनाव आयोग के पास कहां से आते हैं पैसे
लोकसभा चुनाव पर खर्चे की जिम्मेदारी भारत सरकार पर होती है। वहीं, राज्य में विधानसभा चुनाव होता है, तो राज्य सरकार खर्चा उठाती है। अगर किसी राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, तो केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर इस खर्चे का वहन करना पड़ता है। यह व्यवस्था 1979 में मिनिस्ट्री ऑफ लॉ एंड ऑर्डर की गाइडलाइन के तहत बनी है।
आप मतदान अवश्य करें
अभी तक आप समझ गए होंगे कि आपका वोट कितना बहुमूल्य है। आपका एक वोट ही देश का भविष्य तय करता है। बावजूद इसके पढ़े लिखे लोग भी वोटिंग करने की जिम्मेदारी नहीं उठाते हैं। यही वजह है कि राजनीतिक दलों से लेकर चुनाव आयोग तक सभी मतदाताओं को मतदान के लिए अपील कर रहे हैं। अगर आपके इलाके में भी अभी तक मतदान नहीं हुआ है, तो लोकतंत्र के इस बड़े पर्व में अवश्य भागीदारी निभाएं।