Exit Polls 2024: देश में लोकतंत्र के सात चरणों वाला महापर्व शनिवार को संपन्ना हो गया। आखिरी वोट डाले जाएंगे और फिर 4 जून को घोषित होने वाले नतीजों को लेकर कयासबाजी शुरू हो गई। हर बार की तरह इस बार भी वोटिंग खत्म होने के बाद Exit Poll सामने आ गए हैं। इस Exit Poll में NDA को स्पष्ट बहुमत मिलता नजर आ रहा है।आइए जानते हैं कि देश में Exit Poll को लेकर क्या है कानून और नियम, क्यों वोटिंग के आधे घंटे बाद तक इस पर होता है प्रतिबंध, जानते हैं Exit Poll के बारे में सबकुछ।
क्या होता है Exit Poll?
बता दें कि Exit Poll में अलग-अलग न्यूज एजेंसियां चुनाव के नतीजों को लेकर कुछ न कुछ भविष्यवाणियां करती हैं। कई बार ये भविष्यवाणियां इतनी सटीक रही हैं कि पहली नजर में यकीन करना मुश्किल होता है। हालांकि कई बार ये नतीजों से बिल्कुल उलट भी रही हैं। ऐसे में यह देखना होगा कि क्या भाजपा की अगुवाई वाला एनडीए 400 के पार जाएगा? या विपक्ष का भारत गठबंधन सबको चौंका देगा, जैसा कि राहुल गांधी दावा कर रहे हैं?
क्या है एग्जिट पोल तैयार करने की प्रक्रिया?
एग्जिट पोल चुनाव के नतीजों से पहले राजनीतिक दलों की जीत-हार और उनकी जीत के अंतर का अनुमान लगाते हैं। इसमें मतदान केंद्र पर वोट देकर बाहर निकले मतदाताओं से बात करके डेटा जुटाया जाता है। इसी डेटा के आधार पर चुनावी चाणक्य राजनीतिक पार्टियों की जीत और हार का अनुमान लगाता है। यह अंदाजा लगाया जाता है कि किस पार्टी या गठबंधन को कितनी सीटों पर जीत मिलेगी। भारत में चुनाव आयोग और कानून मंत्रालय ने इस प्रक्रिया से जुटाई गई जानकारी को दिखाने के लिए कई नियम और कानून बनाए हैं।
भारत में Exit Poll को लेकर क्या है कानून?
भारत में Exit Poll को दिखाने को लेकर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 124 (ए) के प्रावधान लागू होता है। इस कानून के तहत चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक या मीडिया के किसी अन्य माध्यम में किसी भी तरह के एग्जिट पोल को प्रसारित या प्रकाशित करने पर रोक है। इस नियम के तहत चुनाव के अंतिम चरण में वोटिंग खत्म होने के 30 मिनट बाद तक एग्जिट पोल पर प्रतिबंध लागू होता है।
पहली बार भारत में कब लगा था Exit Poll पर प्रतिबंध?
वर्ष 1998 में चुनाव आयोग ने अनुच्छेद 324 के तहत 14 फरवरी से 7 मार्च तक एग्जिट पोल के प्रसारण पर रोक लगा दी थी। इससे पहले चुनाव आयोग ने पहले चरण से लेकर आखिरी चरण तक किसी भी तरह के एग्जिट पोल पर रोक लगा दी थी। इस फैसले के बाद मीडिया संगठनों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया था। बाद में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनाैती भी दी थी।
दरअसल उस समय देश में इंद्र कुमार गुजराल की अगुवाई वाली यूनाइटेड फ्रंट की सरकार थी। कांग्रेस ने अचानक इस सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था। सरकार गिर गई थी। इसके बाद देश में आम चुनाव का ऐलान किया गया था। पहली बार इसी चुनाव मे Exit Poll को लेकर सख्ती की गई थी। इसे लेकर काफी हो हंगामा मचा था।
EC ने 1998 में Exit Poll को लेकर जारी किए थे निर्देश
इलेक्शन कमीशन ने 1998 के चुनाव में Exit Poll को लेकर सख्त निर्देश जारी किया था। आयोग ने 14 फरवरी से 7 मार्च तक एग्जिट पोल टेलिकास्ट करने पर प्रतिबंध लगा दिया था। चुनाव के दौरान पहले फेज से लेकर आखिरी फेज तक इस पर रोक लगा दी गई थी। इसके साथ ही कहा था कि अगर, अखबार या न्यूज चैनल Exit Poll प्रकाशित या प्रसारित करते हैं तो उन्हें इसके सोर्स के बारे में सभी जानकारी भी ऑडियंस और पाठकों को देनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के बीच टकराव
1999 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के एग्जिट और ओपिनियन पोल के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई की थी। पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग को अनुच्छेद 324 के तहत इस तरह के दिशा-निर्देश बनाने का कोई अधिकार नहीं है। इसके बाद चुनाव आयोग को अपने दिशा-निर्देश वापस लेने पड़े और मीडिया ने इसे प्रेस की स्वतंत्रता की जीत बताया।
एग्जिट पोल पर रोक लगाने के लिए कानून में संशोधन
आयोग ने 2004 के चुनावों में एग्जिट और ओपिनियन पोल पर रोक लगाने के लिए कानून मंत्रालय से संपर्क किया था। छह राष्ट्रीय और 18 क्षेत्रीय दलों के समर्थन से चुनाव आयोग ने मांग की कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 126 (ए) में संशोधन किया जाए। यह संशोधन 2010 में लागू किया गया था, जिसके तहत चुनाव की घोषणा के बाद और मतदान के अंतिम चरण की समाप्ति से पहले एग्जिट पोल पर रोक लगा दी गई थी।