S Jaishankar on Katchatheevu: कच्च्चातीवू द्वीप और इसके आसपास भारतीय मछुआरों के मछली पकड़ने का अधिकार छीनने पर विदेश मंत्री एस जयंशकर ने सोमवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान उन्होंने कहा कि जनता आज जान चुकी है कि कच्चातीवू द्वीप को श्रीलंका का सौंपने का जून 1974 का एग्रिमेंट कैसे हुआ। इसके लिए दो समझौते हुए, पहले समझौते में द्वीप दे दिया गया और दूसरे समझौते में मछली पकड़ने का अधिकार भी श्रीलंका को दे दिया गया।
1976 में हुए समझौते में छीने गए अधिकार
एस जयशंकर ने कहा कि जून 1974 में हुए समझौते के तहत कई ऐसी बातों पर सहमति बनी थी जो भारत के हित में था। इसमें कहा गया था कि भारत के मछुआरों को कच्चातीवू द्वीप पर जाने का अधिकार होगा और इसके लिए उन्हें कोई ट्रेवल डाॅक्यूमेंट लेने की जरूरत नहीं होगी। इसके साथ ही इस द्वीप के पास दोनों देशों का विशेष अधिकार क्षेत्र और नियंत्रण होगा। वहीं, 1976 में एक और समझौता किया गया जिसमें इन सभी सहूलियतों को वापस ले लिया गया।
#WATCH | Delhi: On the Katchatheevu issue, EAM Jaishankar says, "... We are talking about 1958 and 1960... The main people in the case wanted to make sure that at least we should get the fishing rights... The island was given away in 1974 and the fishing rights were given away in… pic.twitter.com/HYCIEjbz2A
— ANI (@ANI) April 1, 2024
कच्चातीवू पर भारत और श्रीलंका दोनों के दावे
एस जयशंकर ने कहा कि आज समय आ गया है कि बताया जाना चाहिए कि लोगों से क्या छुपाया गया। लोगों को यह पता होना चाहिए कि इस मुद्दे पर क्या हुआ।कच्चातीवू द्वीप पर श्रीलंका और भारत दोनों के दावे थे। भारत के दावे के मुताबिक कच्चातीवू द्वीप का अधिकार रामनाथ के राजा के पास था। इस आधार पर भारत अपनी दावेदारी मांग रहा था। वहीं, श्रीलंका के पास इसका एक ऑरीजिनल टाइटल सूट था, जो 17 वीं शताब्दी का था।
नेहरु ने बताया था इसे अप्रसांगिक मुद्दा
एस जयशंकर ने संसद के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू ने कहा था कि मेरे लिए इस छोटे आईलैंड का कोई महत्व नहीं है। उन्होंने कहा था कि मैं नहीं चाहता कि इस अप्रसांगिक मुद्दे को बार बार संसद में उठाया जाए। इस मुद्दे का जल्द से जल्द निपटारा हो जाना चाहिए। विदेश मंत्री ने कहा कि इससे साफ पता चलता है कि देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू के लिए इस द्वीप का कोई महत्व नहीं था।
संसद में कई बार उठाया गया यह मुद्दा
विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि संसद में भी कई बार कच्चातीवू द्वीप का मुद्दा उठाया गया। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते तत्कालीन डीएमके सांसद जी विश्वनाथन ने संसद में कहा था कि मुझे हैरानी है कि हम डिएगो गार्सिया के लिए चिंतित हैं लेकिन हम अपने द्वीप के बारे में चिंतित नहीं है। एआईसीसी की मीटिंग में प्रधानमंत्री ने कहा कि यह एक छोटे से पत्थर का टुकड़ा है और इसके जाने से हमारी सीमा पर कोई असर नहीं होगा। विदेश मंत्री ने कहा कि पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के लिए यह एक पत्थर का टुकड़ा था। यही कच्चातीवू पर कांग्रेस का ऐतिहासिक दृष्टिकोण है।
कच्चातीवू पर था रामनाथ के राजा का अधिकार
विदेश मंत्री ने कहा कि कच्चातीवचू द्वीप पर रामनाथ के राजा का अधिकार ईस्ट इंडिया कंपनी के समय से था। इसमें मछली पकड़ने का अधिकार भी शामिल था। आजादी के बाद भी इंडियन कस्टम लगातार कच्चातीवू द्वीप पर जाती रही है, इसमें कोई बाधा नहीं थी। लेकिन 1974 में कच्चतीवू द्वीप को श्रीलंका का सौंपने के बाद इंडियन कस्टम का कच्चातीवू द्वीप पर आना जाना रुक गया।
1960 से चल रहा कच्चातीवू द्वीप का मुद्दा
विदेश मंत्री ने कहा कि 1960 से यह मुद्दा चल रहा है। 1974 में इस पर सिरिमावो बंडारनायके और इंदिरा गांधी के साथ समझौते से कुछ दिन पहले चर्चा हुई थी। इससे पहले तत्कालीन अटॉर्नी जनरल शीतलवाड़ ने अपने लीगल ऑपिनियन में कहा था हालांकि यह पेचीदा मामला है लेकिन साक्ष्यों के आधार पर यह लगता है कि इस द्वीप पर भारत की संप्रभुता है। अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि अगर भारत के हित में भी इस मुद्दे पर बात नहीं बन पाती है तो ऐसेी स्थिति में भारत के कस्टम को अधिकार दिया जा सकता है, जिससे मछुआरों को मछली पकड़ने का अधिकार दिया जा सके।
इस पर क्या बोले थे विदेश मंत्रालय के कानूनी विशेषज्ञ
एस जयशंकर ने कहा कि विदेश मंत्रालय के तत्कालीन कानूनी विशेषज्ञ डॉ के कृष्णा राव ने कहा था कि मैं यह नहीं कह सकता कि यह मामला जटिल नहीं है लेकिन इस मामले में इस मछुआरों को मछली पकड़ने का अधिकार दिलाया जा सकता है। हालांकि, इसको लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री ने इस पर ध्यान नहीं दिया और पहले तो 1974 में पहले आईलैंड दे दिया गया और इसके दो साल बाद फिशिंग राइट्स भी दे दिया गया। भारतीय मछुआरों के मछली पकड़ने के अधिकार को बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।