Gandhi Jayanti 2024: महात्मा गांधी की हत्या के बाद, नाथूराम गोडसे की पहचान कैसे की गई? भले ही गोडसे ने हजारों लोगों के सामने गोली चलाई थी, फिर भी एक पहचान परेड कराई गई थी। इस प्रक्रिया में कई चौंकाने वाले पहलू सामने आए। आइएश् इस खबर में हम जानेंगे बापू की मौत के बाद उनके हत्यारे गोडसे की पहचान कैसे हुई। गोडसे के बचाव में कोर्ट में क्या दलीलें दी गई और आखिरकार कैसे गोडसे को सजा सुनाई गई
गोडसे हुआ था मौके से गिरफ्तार
महात्मा गांधी की हत्या के बाद, नाथूराम गोडसे को पुलिस ने मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद गोडसे और साजिश में दूसरे लोगों जैसे नारायण डी. आप्टे और विष्णु करकरे के खिलाफ मामला दर्ज किया गया। पुलिस ने गोडसे की पहचान के लिए कई परेड कराई। इस प्रक्रिया में कई गवाहों ने गोडसे की पहचान की, जिनमें राम चंदर, सी. पाचेको, और सुरजीत सिंह प्रमुख थे।
पहचान में क्या आए मुद्दे?
पहचान परेड के दौरान, बचाव पक्ष ने कई सवाल उठाए। पहला मुद्दा था सिर पर बंधी पट्टी का। बचाव पक्ष का दावा था कि गोडसे की पहचान इसलिए की गई क्योंकि उसके सिर पर पट्टी बंधी हुई थी, जबकि अन्य आरोपी कैदियों के सिर पर कोई पट्टी नहीं थी। इस पर मैजिस्ट्रेट किशन चंद ने स्पष्टीकरण दिया कि गोडसे की पहचान सिर पर पट्टी के कारण नहीं, बल्कि दूसरे कारणों से हुई थी।
बचाव पक्ष ने पहचान परेड में क्या दिए तर्क
दूसरा तर्क यह था कि नारायण आप्टे और विष्णु करकरे की पहचान इसलिए की गई क्योंकि वे मराठी थे। बचाव पक्ष का कहना था कि गवाहों ने उन्हें इसलिए पहचाना क्योंकि वे बाकी कैदियों से अलग लग रहे थे। हालांकि, मजिस्ट्रेट ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि आप्टे और करकरे की पहचान केवल उनके मराठी होने के कारण नहीं हुई थी।
जानें क्या था गोडसे का कबूलनामा
नाथूराम गोडसे ने खुद कबूल किया कि उसने महात्मा गांधी की हत्या की। 30 जनवरी 1948 को बिरला हाउस में उसने बापू को गोली मारी थी। इसके बाद गोडसे और आप्टे को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया गया। गोडसे ने अदालत में दिए गए अपने बयान में कहा कि उसने यह हत्या अपने राजनीतिक विचारों के चलते की थी, न कि किसी व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण।
गांधी की हत्या में सावरकर पर भी लगे आरोप
नाथूराम गोडसे के अलावा, इस मामले में नारायण डी. आप्टे और विष्णु करकरे भी प्रमुख साजिशकर्ता थे। इनके अलावा विनायक दामोदर सावरकर की भूमिका पर भी सवाल उठाए गए थे। सावरकर पर आरोप था कि उन्होंने इस साजिश में प्रमुख भूमिका निभाई, लेकिन अदालत में पेश किए गए सबूतों के अभाव में सावरकर को बरी कर दिया गया।
211 पन्नों में कोर्ट ने सुनाया फैसला
इस मामले में कोर्ट का फैसला 211 पन्नों की एक फाइल में दर्ज किया गया था। गोडसे और आप्टे को मौत की सजा सुनाई गई और 15 नवंबर 1949 को उन्हें फांसी दी गई। यह स्वतंत्र भारत में पहली मौत की सजा थी। अदालत ने इस मामले में कड़ी सजा दी और इसे ऐतिहासिक न्यायिक फैसलों में से एक माना गया।
गोडसे के बचाव में क्या दी गई दलीलें
बचाव पक्ष ने गोडसे की पहचान पर भी सवाल उठाए और कहा कि उसे सिर्फ सिर पर बंधी पट्टी के कारण पहचाना गया। हालांकि, यह तर्क अदालत में खारिज कर दिया गया था। गोडसे की खुद की स्वीकारोक्ति के बाद बचाव पक्ष के पास ज्यादा बचाव की गुंजाइश नहीं बची थी। इस मामले में अन्य साजिशकर्ताओं के भी नाम सामने आए, लेकिन सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया।