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Munawwar Rana death: भारत के जाने माने-माने शायर मुनव्वर राणा का रविवार देर रात निधन हो गया। वह दिल की बीमारी से जूझ रहे थे। वह मां पर लिखी शायरी के कारण मशहूर हुए थे।

Munawwar Rana death: भारत के जाने माने शायर मुनव्वर राणा का रविवार को निधन हो गया।  संजय गाँधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल  साइंस में 71 साल की आयु में उन्होंने अंतिम सांस ली। कार्डिक अरेस्ट होने से उनका निधन हुआ । मुनव्वर लंबे समय से बीमार चल रहे थे। लखनऊ के संजय गांधी पीजीआई संस्थान में उनका इलाज चल रहा था। बेटी सुमैया राणा ने मौत की पुष्टि की है। पिछले दिनों उनकी तबीयत खराब होने के बाद उनको पीजीआई के आईसीयू वॉर्ड में शिफ्ट किया गया था।

मुनव्वर का  सीटी स्कैन हुआ था।  इसकी जांच में मुनव्वर के गॉल ब्लैडर में इन्फेक्शन मिला था। इसकी सर्जरी भी हुई थी। सर्जरी के बाद भी समस्या बनी रही। तबीयत में खास सुधार नहीं हो रहा था। उसके बाद वह काफी समय वेंटिलेटर पर रहे। वह बीपी, शुगर और क्रोनिक किडनी डिजीज से पीड़ित थे। उनके निधन से पूरे देश में शायरी प्रेमियों में शोक की लहर दौड़ गई है। 

मुनव्वर राणा का जन्म 26 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के एक गांव में हुआ था। विभाजन के दौरान उनके परिवार के ज्यादातर लोग पाकिस्तान चले गए थे। लेकिन उनके पिता ने भारत में रहने का फैसला किया।

मुनव्वर की लोकप्रिय कृतियां
मुनव्वर उर्दू के साहित्यकार थे। राणा के की एक कविता शाहदाबा के लिए उन्हें 2014 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा किया गया था। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय उनके बहुत से नजदीकी रिश्तेदार और पारिवारिक सदस्य देश छोड़कर पाकिस्तान चले गए। लेकिन साम्प्रदायिक तनाव के बावजूद मुनव्वर राणा के पिता ने अपना देश नहीं छोड़ा। उल्लेखनीय है कि मुनव्वर राणा ने ग़ज़लों के अलावा संस्मरण भी लिखे हैं। उनके लेखन की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी रचनाओं का ऊर्दू के अलावा अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। यहां पेश हैं कुछ ऐसी रचनाएं, जो सबसे ज्यादा चर्चित रहीं। 

हम तो इस मुल्क की मिट्टी को भी मां कहते हैं

तुम्हारी आंखों  की तौहीन है जरा सोचो 
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है... 

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आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए....

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अपनी फजा से अपने जमानों से कट गया 
पत्‍थर खुदा हुआ तो चट्टानों से कट गया....

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बदन चुरा के न चल ऐ कयामते गुजरां 
किसी-किसी को तो हम आंख उठा के देखते हैं....

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झुक के मिलते हैं बुजुर्गों से हमारे बच्चे
फूल पर बाग की मिट्टी का असर होता है ....

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कोई दुख हो, कभी कहना नहीं पड़ता उससे 
वो  जरूरत हो तलबगार से पहचानता है... 

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एक क़िस्से की तरह वो तो मुझे भूल गया
इक कहानी की तरह वो है मगर याद मुझे...

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ला पाना बहुत मुश्किल है सब कुछ याद रहता है
मोहब्बत करने वाला इस लिए बरबाद रहता है...

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हम कुछ ऐसे तेरे दीदार में खो जाते हैं
जैसे बच्चे भरे बाज़ार में खो जाते हैं....

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अंधेरे और उजाले की कहानी सिर्फ़ इतनी है
जहां महबूब रहता है वहीं महताब रहता है....

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किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकां आई
 मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई....

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मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता
अब इस से ज़यादा मैं तेरा हो नहीं सकता....

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वो बिछड़ कर भी कहां मुझ से जुदा होता है
रेत पर ओस से इक नाम लिखा होता है....

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मैं भुलाना भी नहीं चाहता इस को लेकिन
मुस्तक़िल ज़ख़्म का रहना भी बुरा होता है....

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ये हिज्र का रस्ता है ढलानें नहीं होतीं
 सहरा में चराग़ों की दुकानें नहीं होतीं....

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नये कमरों में अब चीजें पुरानी कौन रखता है
 परिंदों के लिए शहरों में पानी कौन रखता है....

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मोहाजिरो यही तारीख है मकानों की
बनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा...

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तुझसे बिछड़ा तो पसंद आ गयी बे-तरतीबी
इससे पहले मेरा कमरा भी ग़ज़ल जैसा था....

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तुझे अकेले पढूं कोई हम-सबक न रहे
मैं चाहता हूं कि तुझ पर किसी का हक न रहे...

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सिरफिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जां कहते हैं
हम तो इस मुल्क की मिट्टी को भी मां कहते हैं....

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