Himanta Biswa Sarma on Indian Muslims: भाजपा के फायरब्रांड नेता और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पर अक्सर इस्लामोफोबिया का सहारा लेने का आरोप लगता है। इन आरोपों का हिमंत ने एक इंटरव्यू में जवाब दिया। उन्होंने कहा कि भारत के मुसलमानों को वाराणसी (काशी) के ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह पर दावा छोड़ देना चाहिए। इन जगहों को हिंदुओं के लिए छोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से इस्लामोफोबिया खत्म हो जाएगी।
मुसलमानों का एक वर्ग हिंदुओं से करता है नफरत
हिमंत ने कहा कि हममें से कई लोगों के लिए इस्लामोफोबिया वास्तविक है। क्योंकि हमारे देश में मुसलमानों का एक वर्ग बहुसंख्यक समुदाय से नफरत करता है। अगर आप असम में मेरे चुनावी भाषणों को देखें तो मैंने मुस्लिम शब्द का बिल्कुल भी उल्लेख नहीं किया है। जबकि मैंने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में खूब प्रचार किया है। मैंने मुस्लिम समुदाय के एक बड़े हिस्से को हिंदू विरोधी से बदलकर हिंदुओं के साथ सह-अस्तित्व में रहने वाले लोगों में बदल दिया है। इसलिए लव जिहाद, जमीन हड़पने की घटनाओं में कमी आई है। हमने जमीनों पर अवैध कब्जे हटवाकर उन्हें मंदिरों और मठों को वापस कराया है। असम में, हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सद्भाव अब तक के उच्चतम स्तर पर है। मैंने कोई मुस्लिम विरोधी टिप्पणी नहीं की है, क्योंकि उन्होंने वास्तव में परिसीमन प्रक्रिया को स्वीकार कर लिया है।
इस तरह कम होगी इस्लामोफोबिया
सीएम हिमंत ने कहा कि एक बार जब असम जैसा मॉडल राज्य के बाहर स्थापित होगा तो स्थितियां बदल जाएंगी। मुसलमानों को समान नागरिक संहिता स्वीकार करने दें। मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि और काशी में ज्ञानवापी मस्जिद हिंदुओं को दे दें, तो चीजें बदल जाएंगी। इससे हिंदुओं के बीच इस्लामोफोबिया कम हो जाएगा। कश्मीर में भारी मतदान हुआ है, लोगों ने अनुच्छेद 370 को हटाने को स्वीकार किया है। इसने परिदृश्य को बदल दिया है।
आने वाले 5 साल में सब मुद्दे सुलझ जाएंगे
इस्लामोफोबिया को तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों द्वारा कम नहीं किया जा सकता है। इसे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संवाद से कम किया जाना चाहिए। आप हिंदुओं को यह पूछकर दोष नहीं दे सकते कि वे मुसलमानों के खिलाफ क्यों बोल रहे हैं। आपको मुसलमानों से भी पूछना होगा कि वे हिंदुओं के खिलाफ क्यों बोल रहे हैं। मुझे लगता है कि अब हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कुछ ही मुद्दे बचे हैं। मोदी सरकार के आने वाले पांच सालों में ये सभी मुद्दे सुलझ जाएंगे। धीरे-धीरे हम विकास की राजनीति देखेंगे। हमें भारत को विकसित बनाना है और सभी समुदायों को सद्भाव से रहना है। उन्हें शाही ईदगाह (मथुरा में) को किसी दूसरे स्थान पर ले जाना चाहिए। अगर ज्ञानवापी मस्जिद को जबरन नहीं बल्कि आपसी परामर्श से स्थानांतरित किया जा सकता है, तो स्थिति अलग होगी।
पूर्वोत्तर में कितनी सीटें आएंगी?
असम सीएम ने दावा किया कि भाजपा गठबंधन को पूर्वोत्तर की 25 सीटों में से कम से कम 21-22 सीटें मिलेंगी। उन्होंने कहा कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के पारित होने का सबसे ज़्यादा असर असम में देखने को मिला। आशंका थी कि इसके लागू होने से फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू हो जाएंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। क्योंकि पहले बहुत सारी गलतफहमियां थीं।