Modi 3.0 BJP MP cabinet share: केंद्र में एक बार फिर NDA गठबंधन की सरकार बनने जा रही है,लेकिन इस बार बिल्कुल अलग है। लाेकसभा चुनाव के नतीजों ने भारतीय जनता पार्टी (BJP) को ऐसे कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है, जहां पर पार्टी को सरकार बनाने के लिए पर्याप्त सीटे नहीं मिली है। यही वजह है NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को सरकार बनाने के लिए अपने सहयोगी दलों पर निर्भर रहना होगा। इस नई परिस्थिति में भाजपा सांसदों की कैबिनेट में हिस्सेदारी कम होने के आसार हैं। आइए जानते हैं मोदी 3.0 सरकार के सामने किस तरह की चुनौतियां आने वाली हैं।
नई सरकार के गठन की तैयारी तेज
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंप दिया है। इस बीच नई सरकार के गठन की तैयारियां शुरू हो गई हैं। एनडीए रात आठ बजे सरकार बनाने का दावा पेश करने जा रहा है। एनडीए गठबंधन में शामिल 10 से ज्यादा पार्टियों ने बुधवार शाम हुई बैठक में अपना समर्थन बीजेपी को सौंप दिया। अब सहयोगी दलों की बैठक 7 जून को होगी। इसमें नरेंद्र मोदी को अपने संसदीय दल का नेता चुन लिया जाएगा। इसके साथ ही एनडीए सरकार के गठन और पीएम मोदी के तीसरी बार देश की कमान संभालने का रास्ता साफ हो जाएगा।
कम से कम बीजेपी के 15 सांसद होंगे कम
मौजूदा समय में एनडीए गठबंधन दलों की बैठक के बाद आसार ये नजर आ रहे हैं कि संसद में इस बार बीजेपी के कम से कम 15 सांसद कम होंगे। टीडीपी ने 6 मंत्री पद और स्पीकर पद की डिमांड रखी है। नीतीश कुमार ने केंद्रीय कैबिनेट में 3 पद , चिराग पासवान ने एक कैबिनेट और एक स्वतंत्र प्रभार समेत दो पोस्ट की मांग रखी है। हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष और बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने एक कैबिनेट पोस्ट, एकनाथ शिंदे ने एक कैबिनेट और एक स्वतंत्र प्रभार का पद, जयंत चौधरी ने एक पद और अनुप्रिया पटेल ने एक पद मांगा है। अगर यह मांगे मान ली जाती हैं तो कैबिनेट में कम से कम बीजेपी के 15 सांसद कम होना तय है।
सहयोगी दलों के दबाव से निपटना होगी चुनौती
2019 की मोदी कैबिनेट में शिरोमणि अकाली दल और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को कैबिनेट में स्थान दिया गया था। लेकिन इस बार, बीजेपी के पास अकेले अपने दम पर सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं है। इस स्थिति से एनडीए के सहयोगी दल भी अच्छी तरह से वाकिफ हैं। ऐसे में जेडीयू, टीडीपी, शिवसेना और चिराग पासवान की लोजपा जैसे गठबंधन दलों ने भी केंद्रीय मंत्रीमंडल में अपनी भागीदारी बढ़ाने के एक तरह से कहें तो दबाव बनाया है। अपनी अपनी क्षमता के हिसाब से केंद्रीय मंत्रीमंडल में पद मांगा है। ऐसे में यह देखना अहम होगा कि बीजेपी किस पार्टी को कितने पद देकर मना पाती है।
अहम कैबिनेट पोर्टफोलियो कैसे बचाएगी बीजेपी
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी को कम सीटें मिलने का असर कैबिनेट पोर्टफोलियो आवंटन पर भी होगा। पहले सरकार में सभी अहम पोर्टफोलियो बीजेपी के पास थे। पिछली सरकार के कैबिनेट में अहम पोर्टफोलियो सिर्फ बीजेपी के सांसदों पर पास थे। गठबंधन के सहयोगी दल इस बार केंद्र के सामने कु़छ अहम पोर्टफोलियो की मांग कर सकते हैं। इनमें रेल मंत्रालय जैसा विभाग भी हो सकता है। ऐसे में बीजेपी के सामने यह चुनौती होगी वह कैसे सहयोगी दलों को राजी करके अहम पाेर्टफोलियो अपने पास बनाए रखे।
सहयाेगी दलों के पलटने का बना रहेगा डर
मोदी 3.0 के सामने सबसे बड़ी चुनौती सहयोगी दलों को पलटने से रोकना होगा। चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार दोनों ही ऐसे नेता है जिनका बैकग्राउंड ऐसा रहा है कि वह फायदा देखते ही पलट जाते हैं। कांग्रेस भी सत्ता से लंबे समय से दूर है। ऐसे में इस बात की पूरी संभावना है कि कांग्रेस भी एनडीए के सहयोगी दलों को तोड़ने की कोशिश कर सकती है। कांग्रेस और इंडी गठबंधन के कई नेता ऐसे बयान दे भी रहे हैं कि आगे देखिए क्या हाेने वाला है। इंडिया गठबंधन में शामिल संजय राऊत और तेजस्वी यादव ने साफ तौर पर कहा है कि आने वाले समय में कुछ भी हो सकता है।