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NCPCR: बाल आयोग ने मुस्लिम पर्सनल लॉ में 15 साल की उम्र में निकाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसे बाल विवाह निषेध कानून का उल्लंघन बताया गया है।

NCPCR: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत 15 साल की उम्र में विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। आयोग का कहना है कि यह प्रावधान बाल विवाह निषेध कानून का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए सहमति दी है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले को जल्द से जल्द सुनने का आग्रह किया क्योंकि अलग-अलग हाईकोर्ट से इस पर अलग-अलग फैसले आ रहे हैं। 

उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का दिया था हवाला
पिछले साल जून में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत दिए गए विवाह के प्रावधान का हवाला देते हुए आदेश दिया था कि जब मुस्लिम लड़की युवावस्था में प्रवेश करती है, तो उसे अपनी मर्जी से विवाह करने की अनुमति है। इस उम्र को 15 वर्ष निर्धारित किया गया है। इस आदेश को NCPCR ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि मुस्लिम लड़कियों की कम उम्र में शादी हो रही है, जो कानून के खिलाफ है। 

NCW ने भी उठाई थी 15 साल में मुस्लिम लड़कियों के विवाह की बात
राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि मुस्लिम लड़कियों की न्यूनतम विवाह उम्र को अन्य धर्मों की लड़कियों के समान किया जाना चाहिए। देश में फिलहाल लड़कियों की न्यूनतम विवाह उम्र 18 साल और लड़कों की 21 साल है। लेकिन मुस्लिम महिलाओं के मामले में यह उम्र प्यूबर्टी यानी युवावस्था के बाद मानी जाती है। NCW ने कहा था कि मुस्लिम महिलाओं को 15 साल की उम्र में विवाह की अनुमति देना मनमाना, तर्कहीन और भेदभावपूर्ण है।

बाल आयोग ने बाल विवाह निषेध कानून का हवाला दिया
बाल आयोग ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए 2006 के बाल विवाह निषेध अधिनियम और POCSO के प्रावधानों का हवाला दिया है। आयोग का कहना है कि यह आदेश बाल विवाह को रोकने वाले कानून का उल्लंघन है, जो सभी पर लागू होता है। आयोग ने यह भी तर्क दिया कि POCSO के तहत 18 साल से कम उम्र के बच्चे की सहमति को वैध नहीं माना जा सकता। आयोग ने संविधान के तहत बने कानूनों को लागू करने की मांग की है ताकि मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जा सके।

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