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Supreme Court Order: शीर्ष अदालत ने मिलिट्री सेवा से बर्खास्त महिला नर्स को 60 लाख रुपये का हर्जाना देने का आदेश केंद्र सरकार को दिया है।  

Supreme Court Order: सुप्रीम कोर्ट ने शादी करने के बाद महिला नर्स को सेना की नौकरी से हटाने के मामले में अहम फैसला दिया है। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को कहा कि शादी के आधार पर किसी महिला की सेवाएं खत्म करना लैंगिक भेदभाव है, ऐसे पूर्वाग्रह पर आधारित कोई भी कानून संवैधानिक तौर पर स्वीकार्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए केंद्र को निर्देश दिया है कि वह मिलिट्री नर्स को 60 लाख की बकाया रकम का जल्द भुगतान करे। 

आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल ने दिया था बहाली का आदेश
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने सेलिना जॉन की याचिका पर यह आदेश दिया है। सेलिना सेना में बतौर मिलिट्री नर्स कार्यरत थीं। 1988 में उन्हें शादी के बाद नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था। तब वह लेफ्टिनेंट के पद पर कार्यरत थीं। सेलिना ने 2012 में आर्म्ड फोर्स ट्रिब्यूनल में भी गुहार लगाई थी। तब ट्रिब्यूनल ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए बहाली के आदेश दिए थे। हालांकि, 2019 में केंद्र सरकार ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

1995 में वापस ले लिया गया था सेना का नियम
सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि अब ट्रिब्यूनल के फैसले में किसी तरह के हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। शादी के आधार पर मिलिट्री नर्सिंग सेवा से हटाने की इजाजत देने वाला नियम 1977 में पेश किया गया था, जो 1995 में वापस ले लिया गया था। यह नियम साफ तौर पर मनमाना था। लैंगिक आधार पर पूर्वाग्रह से युक्त कानून और नियम स्वीकार नहीं किए जा सकते हैं।  

लैंगिक भेदभाव वाले नियम असंवैधानिक: SC
अदालत ने आगे कहा- एक महिला की शादी होने के बाद उसकी नौकरी खत्म करना पूरी तरह से लैंगिक भेदभाव और असमानता का मामला है। ऐसे पितृ सत्तात्मक शासन को स्वीकार करना मानवीय गरिमा, भेदभाव रहित और निष्पक्ष व्यवहार के अधिकार को कमजोर करेगा। महिला कर्मचारियों की शादी और घरेलू जिम्मेदारी को अपात्रता का आधार बनाने वाले नियम असंवैधानिक हैं। 

महिला नर्स को 60 लाख रु. का मिलेगा मुआवजा  
सुप्रीम कोर्ट ने महिला कर्मचारी की बहाली और बकाया वेतन से जुड़े ट्रिब्यूनल के फैसले में थोड़ा बदलाव किया है। बेंच ने मुआवजे के तौर पर 60 लाख रुपये के भुगतान का आदेश केंद्र सरकार को दिया है। कोर्ट ने कहा कि सेलिना जॉन ने थोड़े समय के लिए प्राइवेट संस्थान में बतौर नर्स काम किया था। अदालत के निर्देशों के अनुसार अब केंद्र को मुआवजे का भुगतान 8 हफ्ते में करना होगा। 

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