Supreme Court on Private Property: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसमें कहा कि सरकार हर निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति मानकर कब्जा नहीं कर सकती। 9 जजों की पीठ ने 7:1 के बहुमत से यह निर्णय सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल कुछ खास संपत्तियों को ही सरकार सामुदायिक संसाधन मानकर आम जनता के हित में उपयोग कर सकती है। इस फैसले से निजी संपत्ति धारकों को बड़ी राहत मिली है।
1978 के अपने ही फैसले को पलटा
इस मामले में कोर्ट ने 1978 में दिए गए फैसले को पलट दिया, जिसमें जस्टिस कृष्णा अय्यर ने सभी निजी संपत्तियों को भी सामुदायिक संसाधन के दायरे में लाने की वकालत की थी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में यह बेंच महाराष्ट्र सरकार के एक कानून से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। कोर्ट का मानना है कि संपत्तियों पर सरकारी कब्जा उचित नहीं है जब तक कि वह सीधे तौर पर समाज के लिए लाभकारी न हो।
अनुच्छेद 39(B) के इस्तेमाल को लेकर हिदायत
यह मामला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(B) से जुड़ा है, जिसमें समाज की भलाई के लिए सामुदायिक संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने की बात कही गई है। इस अनुच्छेद का इस्तेमाल करते हुए महाराष्ट्र सरकार ने अपने कानून में कुछ बदलाव किए थे, जिससे कि वह जरूरतमंदों के लिए जमीन अधिग्रहण कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि निजी संपत्तियों पर कब्जे के लिए इस अनुच्छेद का असीमित उपयोग नहीं किया जा सकता।
महाराष्ट्र सरकार के MHADA कानून पर विवाद
महाराष्ट्र सरकार के MHADA कानून के तहत राज्य सरकार उन इमारतों और जमीन को अधिग्रहण कर सकती है, जो कि जर्जर स्थिति में हैं, बशर्ते कि मकान मालिक इसके लिए सहमत हों। इस कानून को प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन (POA) ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। कोर्ट ने इस मामले में POA की याचिका को स्वीकारते हुए अपनी राय रखी और निजी संपत्तियों के अधिग्रहण की सीमाएं तय की।
POA ने याचिका में कानून को चुनौती दी
1992 में POA ने इस कानून को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। POA का कहना था कि सरकार द्वारा इस कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है। सरकार निजी संपत्तियों को मनमाने ढंग से अपने कब्जे में ले रही है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने MHADA कानून को अनुच्छेद 31C के तहत सुरक्षित बताने की कोशिश की, लेकिन कोर्ट ने इसे मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने साफ साफ कहा कि कि सरकार हर निजी संपत्ति पर अधिकार नहीं जता सकती।
जजों की राय बंटी नजर आई
9 जजों की पीठ में से 7 जज इस फैसले से सहमत थे, जबकि एक जज ने आंशिक असहमति जताई और एक जज ने पूरी तरह से असहमति जताई। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कुछ मामलों में कोर्ट के फैसले से अलग राय जाहिर की, जबकि जस्टिस सुधांशु धूलिया ने पूरी तरह से असहमति जताई।